Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 351
________________ ३१८ कत्तियसेट्ठिकहा नियमंदिरम्मि भोयणकरणत्थं पत्थए पयत्तेण । राया तं परिवायगमेसो वि न मन्नए कह वि ।।१०२४५।। अइगरुए निब्बंधे कयम्मि रन्ना पभासए एसो। निव! तुह नयरपहाणो जइ सेट्ठी कत्तिओ नाम ।।१०२४६।। परिवेसइ मज्झ तओ करेमि तुह मंदिरम्मि! पारणयं । तो राया नियहियए चितइ जह दुग्धडं एयं ।।१०२४७।। जकिर कत्तियसेट्ठी मोत्तूण जिणिददसणं एक्कं । अन्नस्स कुणइ किचि वि ता पडिसेहेमि एयमहं ।।१०२४८।। इय चितिऊण रन्ना भणियं कि तुह इमेण वणिएण? । सामंतमंडलीयाइणो समीवाओ अन्नस्स ।।१०२४९।। कस्स वि गरुयस्स अहं परिवेसावेमि तुज्झ अहं एसो । नो मन्नइ तं वयणं तो राया भणइ तं भुज्जो ॥१०२५०॥ परिवेसेमि सयं चिय तुज्झ अहं मुयह इममसग्गाहं । परिवायगेण भणियं कि नरवर! वयसि पुणरुत्तं ।।१०२५१॥ एसा मज्झ पइन्ना जइ सेट्ठी कत्तिओ सहत्थेण । परिवेसइ मज्झ तओ भुंजामि गिहे तुहऽनह नो ॥१०२५२।। तो राया निब्बंधं तस्स परिव्वायगस्स नाऊण । मिच्छत्तमोहियमई पडिवज्जइ तं पि तव्वयणं ।।१०२५३।। तं पणमिऊण तत्तो कत्तियसेट्ठिस्स वच्चइ गिहम्मि । सो दट्ठ ण नरिदं एतं अब्भुटिओ समुहो ।।१०२५४।। अइगरुयसंभमेणं नमिउं तं आसणे मणुन्नम्मि । उववेसइ परियणमवि जहुचियपडिवत्तिकरणेण ।।१०२५५।। सयमवविसिउं तत्तो जोडियपाणी पुरो नरिंदस्स । विन्नवइ किमज्ज कओ देवेण महापसाओ मे ।।१०२५६।। निकिकरस्स उवरि जं आगंतूण सपयपउमेहिं । महमंदिरं फरसियं तो राया भणइ सुपसन्नो ।।१०२५७।। मा वयह सेट्रि ! एवं न किकरो तं सि किंतु मह नयरे । सव्वुत्तमो सि सव्वस्स माणणिज्जो मह दुइज्जो।।५८ अइबलियभत्तिजुयजणगिहम्मि कइया वि गरुयपीइवसा । सामी सयभेव उवेइ विम्हओ को वि इह नत्थि ।।५९ इय जंपियम्मि रन्ना कत्तियसेट्ठी समग्गनियविहवं । आणेऊणं ढोयइ पुरओ जियसत्तुनो रन्नो ।।१०२६०॥ विन्नवइ जोडियकरो जह देवो गरुयऽणुग्गहं काउं। गिन्हउ समग्गमेयं जम्हा अम्हेच्चयं सव्वं ।।१०२६१।। जीवियकुडुंबविहवप्पमुहं देवस्स चेव पडिबद्धं । तो को वि इह विगप्पो होइ न देवेण कायव्वो ।।१०२६२।। तो जपइ नरनाहो सेट्टि ! तुम जारिस समुल्लवसि । तं तारिसं चिय धुवं थेवं पि न अन्नहा एत्थ ॥१०२६३।। किंतु जया उप्पज्जइ किचि वि कज्ज तहाविहं तइया । भंडारियाउ दव्वं निययाउ वि गिन्हए सामी ।।१०२६४ कज्जेण विणा वि पुणो वत्तं पि न तस्स पुच्छइ कया वि । तह मह पडिबद्धो च्चिय संतो एसो समग्गो वि।१०२६५। विहवो सेट्ठि इयाणि संचिट्ठउ तुज्झ चेव पासम्मि। तुह संतिएण अम्हे आणाकारित्तणेणेव ।।१०२६६।। संतुट्ठा चिट्ठामो सयावि ता संपयं न कि पि तए । भणियव्वं इह अट्ठ मज्झ च्चिय संतियाणा ते ।।१०२६७।। तो विन्नवइ नरिंदं कत्तियसेट्ठी सिरट्ठियकरग्गो । संभावउ मं देवो आणादाणेण केणा वि ॥१०२६८।। तो आह तं नरिंदो मज्झाणा जइ तए कया होइ । पढमा सेट्टि ! तओ हं देमि दुइज्जं पि ते आणं ।।१०२६९।। इय जंपियम्मि रन्ना सेट्ठी सव्वं पि तं विहवसारं । ऊसारावेऊणं तत्तो ठावइ नियट्ठाणे ॥१०२७०॥ राया पयंपइ तओ सेट्ठि ! कहिज्जउ सकज्जमिन्हि ते । सेट्ठी जंपइ सिग्घं देवो सपसायमाइसउ ॥१०२७१।। तो बेइ तं नरिंदो सयमागमणे इहऽम्ह कज्जमिणं । इन्हि चिय सेट्ठि ! जओ निमंतिओ चिट्ठए सगिहे ।।१०२७२।। अज्ज मए परिवायग खवगवरो भोयणस्स करणत्थं । तो मे गिहमागंतुं परिवेसिज्जा तुमं तस्स ।।१०२७३।। इय सोऊणं सेट्ठी सज्जो वज्जेण ताडियसिरो व्व । जाओ न कि पि जंपइ नियचित्ते चिंतए एवं ।।१०२७४।। परलोयविरुद्धमिणं रन्ना जियसत्तुणा समाइट्ठ। तो मज्झ काउमुचियं संजायइ नो इमं कह वि ।।१०२७५।। इहलोयपभू राया रुट्टो मे विहवजीवियं हरइ । सम्मत्तमइलणे पुण पणस्सए मज्झ परलोओ ।।१०२७६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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