Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 321
________________ २८८ सिरिमुनिसुव्वयजिनवण्णणं इय भणिऊणं सम्माणिऊण तं नियगिहे विसज्जेइ। राया कुमरं मुणिसुव्वयं तु आलिगिउं गाढं ।।९२६५।। काऊण कं पि समुचियमालावं तग्गुणाणुरायस्स । पहरिसरियहियो तओ विसज्जेइ मुहुत्तंते ।।९२६६।। सव्वत्थ वि वित्थरिओ एस पोसो जहा कलायरिओ । मुणिसुव्वयकुमरेणं कलासु गयसंसओ विहिओ।।९२६७।। तहिणपभिई मुणिसुव्वयस्स कुमरस्स पट्ठिमणुलग्गो। कलगहणत्यी परिभमइ सुबहुलोओ विसेसेण ।।९२६८।। मुणिसुव्वओ वि सेवयजणाणुरोहेण देइ उवएसं । विसए सव्वकलाणं अन्नत्थ वि संसयं हरइ ।।९२६९।। करितुरएहि रहेहि य कयाइ कीलेइ काणणाईसु । पुव्वुत्तसबसेवयजणेहिं परिवारिओ संतो ।।९२७० ।। पाउब्भूओ कमसो तस्स सरीरम्मि जोव्वणुब्भेओ। पूरंतो सविसेसं लायन्नरसेण अंगाई ।।९२७१।। तस्स मुहे सामलए नवुग्गया सहइ मंसुरोमाली। अंजणछायानीलुप्पलम्मि लीणालिमाल व्व ।।९२७२।। नवघणतमालसामलमरुणाहरचरणकरयलनहेहि । संझब्भपाडलं नहयलं व पडिहाइ तस्संग ।।९२७३।। अहवा कह उवमिज्जइ तस्स सरीरं न जस्स तिजए वि। पाविज्जइ उवमाणं निज्जियसुरमणुयरूवस्स।।९२७४।। चकमियपलोइयजंपियाइनाणाविलासचेट्टाहि । तियसाण वि हरइ मणं दिट्ठो मुणिसुव्वयकुमारो ।।९२७५ ।। अच्चब्भयजिणरूवालोयणकोऊहलेण केइ जणा। केइ वि तम्विन्नाणाइसयायन्नणकउक्कंठा ॥९२७६।। के वि बहपुन्नकारणतइंसणसंभवाहिलासेण । इय के वि कि पि कारणमहिगिच्च वि दूरदेसाओ ।।९२७७।। एंति कुसग्गे नयरे अणवरयमणेयलोयसंघाया। तेहिं अउव्वमउव्वं सोहंतं वहइ निच्चं पि ।।९२७८।। सोऊण सुरगणेहि सया वि सेविज्जमाणपयजुयलं । पुत्तं सुमित्तरन्नो भीयमणा के वि दुट्ठनिवा ।।९२७९।। जिणपुन्नपगरिसुन्भूयविउलबलवाहणं निएऊण । के वि नरिंदा जिणजणयभावओ जायबहुमाणा ॥९२८०।। रहकरितुरंगदिव्वंसुयदिव्वाहरणरयणपमुहाई। पेसंति पाहुडाइं पणमंति सयं पि आगंतुं ।।९२८१।। कि जंपिएण बहुणा तइया भरहद्धचक्कवट्टि व्व । जाओ सुमित्तराया तव्वासिनरिंदनमणिज्जो ।।९२८२।। मुणिसुब्बओ वि भयवं सुपसत्थसमत्थलक्खणेहि जुओ। वटुंतो भोगखमे वयम्मि संपुनसव्वंगो।।९२८३।। पुन्निमससिसमवयणो विसट्टकंदोट्टदीहवरनयणो। कुंदकलिओहदसणो सुगंधिनीसासरुहससणो ।।९२८४।। पुरपरिहदीहबाहू सुरकुंजरकरसरिच्छसयलोरू । चंदद्धभालफलओ मरगय सिलवियडवच्छयलो ।।९२८५।। परिणाविओ सुमित्तेण पत्थिवेणं अणेयनिवईण। कन्नाओ अणन्नसमाणरूवपरिणिज्जियरईओ ।।९२८६।। ताहि समं सद्दाईविसयसुहं सोऽणुहवइ पंचविहं । निरुवमममरगणाण वि सलाहणिज्जं पइदिणं पि ॥९२८७।। वज्जतवेणुवीणाविलासिणीगयसहमणहरणं । पेच्छणयनाडयविहि पासंतो गमइ दियहाई ।।९२८८।। विज्जाहरमिहुणाणं किन्नरमिहुणाण वा वि अन्नोन्नं । जायम्मि विसंवाए गेयवियारे व नट्टम्मि ।।९२८९।। पासे समागयाणं संसयमवहरइ ते वि भत्तीए। नाणाविहनट्टविहि दंसित्ता जंति सट्ठाणे ।।९२९०॥ तइलोयस्स वि विम्हयजणणं एवं विलाससुहमसमं । अणुहवमाणस्स पभावइ त्ति भज्जा जिणिदस्स ।।९२९१।। पसवइ सुव्वयनाम पुत्तं सुकुमालपाणिपायजुयं । कमलदलदीहनयणं पुन्निमससिबिबसमवयणं ।।९२९२।। अह मुणिसुव्वयनाहं वाससहस्साई सत्तसड्ढाई । पालियकुमारवासं रज्जे अहिसिंचइ सठाणे ।।९२९३।। अइगरुयविभूईए सुमित्तराया सुरा वि नियत्ति । तत्थ कुणंति मुणंता तीए सुकयत्थमप्पाणं ।।९२९४।। ठविऊण जिणे रज्जं राया पउमावईए देवीए । सहिओ गिन्हइ दिक्खं पासे केसि पि सूरीणं ।।९२९५।। परिवालिऊण विमलं पव्वज्ज पाविऊण पज्जते। परमं समाहिमरणं दोन्नि वि माहिदकप्पम्मि ॥९२९६।। उप्पन्नाई देवत्तणेण मुणिसुव्वओ वि जयनाहो । नीईए परिवालइ पुहई तिसमुद्दमज्जायं ।।९२९७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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