Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 327
________________ २९४ सिरिमुनिसुव्वयजिनवण्णणं सिबियारूढस्स जिणस्स पढमओ अट्ठ अट्ठ मंगलगा। एए पुरओ संपट्ठिया जहा आणुपुब्बीए ॥९४६१।। सिरिवच्छमच्छदप्पणभद्दासणकलसनंदियावत्ता । तह वद्धमाणसोत्थियनामाणो सव्वरयणमया ।।९४६२।। गयणयलमणुलिहंती समूसिया विजयवेजयंती य । वाउद्धयाभिरामा पुरओ संपट्ठिया कमसो ॥९४६३।। तयणंतरं च चलियं वेरुलियभिसंतविमलवरडंडं । कोरिटमल्लदामोवसोहियं चंदबिबनिभं ॥९४६४।। विमलं सियायवत्तं समूसियं तयणु रयणनिम्मवियं । सीहासणं महरिहं सपाउयाजोयपयवीढं ।।९४६५।। बहुकिंकरामरहिं परिखित्तं ससियछत्तभिंगारं । संपट्ठियं पुरत्था तयणु तुरंगाण अट्ठसयं ॥९४६६।। वियडुद्धरबंधुरकंधराण चलचवलचंचलगईण । मुहदिन्नजच्चकंचणकवियाण मणुन्नवग्गाण ॥९४६७।। लंघणवग्गणधावणखमाण कयपवरभूसणाणं च। संपग्गहियाणं किंकरेहि वरतरुणपुरिसेहिं ॥९४६८।। तयणन्तरमट्ठसयं कंचणकोसीपिणिद्धदंताण । सारोहगमत्तमहागयाण संपट्ठियं पुरओ ॥९४६९।। तयणु सछत्तपडागा तोरणघंटाण नंदिघोसाण । सकणगतेणिसदारूणलोहसंजमियनेमीण ॥९४७०।। सुसिलिट्ठचक्कमंडलधुराण आइन्नतुरयजुत्ताण । कुसलनरछेयसारहिसंपग्गहियाण सज्जाण ॥९४७१।। कंचणगवक्खजालगखिखिणिघंटावलीपरिगयाण । बत्तीसतोणपरिमंडियाण कंकडगजुत्ताण ॥९४७२॥ चावसरपहरणावरणभरियसंगामजोग्गविहयाण । अट्ठोत्तरं सयं रहवराण संपट्ठियं पुरओ ।।९४७३॥ तयणंतरं च सन्नद्धबद्धकवयाण गहियचावाण । उप्पीलियतूणाणं पिणद्धवरविमलचिंधाण ॥९४७४।। संपट्ठियमट्ठसयं पुरओ वरतरुणजोहपुरिसाण । तयणु तुरंगाणीयं गच्छइ तत्तो गयाणीयं ॥९४७५।। तत्तो य रहाणीयं पयत्ताणीयमणुवयइ तत्तो। तत्तो वइरामयवट्टसंठिउक्किट्ठलट्ठिठिओ ॥९४७६।। वरपंचवन्नकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामो य । छत्ताइछत्तकलिओ अंबरतलमणुलिहंतसिहो ।।९४७७॥ जोयणसहस्समेगं समूसिओ पट्ठिओ महिंदझओ। पुरओ तत्तो असिलट्ठिगाहिणो कुंतगाहा य ।।९४७८।। चावग्गाहा तह पासगाहिणो चामरग्गहा के वि । पोत्थयगाहा फलगग्गाहा तह पीढयग्गाहा ॥९४७९।। वीणग्गाहा केइ वि क्यग्गाहा हडप्पयग्गाहा। तत्तो य डंडिणो मुंडिणो य तह ढंढिणो जडियो ।।९४८०॥ केइ वि सिहंडिणो पिछिणो य संपट्ठिया पुरो बहवे । हासकरा डमरकरा खेड्डुकरा चाडुयकरा य ।।९४८१।। दवकारगा य कदंप्पिया य कुक्कुइयगा य गायंता । वाएंता नच्चंता तह य हसंता रमंता य ॥९४८२।। हासावेंता य रमाता भासेंतगा य सासेंता । सावेंता रक्खंता तह आलोयं करेंता य ।।९४८३।। जयजयसदं च पउंजमाणया पट्ठिया पुरो बहवे । तत्तो उग्गाभोगा रायन्ना खत्तिया चेव ॥९४८४।। तह सत्थवाहपमहा न्हाया परिविहियसंतिबलिकम्मा । सुनियत्थविमलवत्था अप्पमहग्घाहरणधारी ॥९४८५।। केइ वि पायविहारेण के वि तुरगेहि तरलतुरगेहि । केइ वि पवररहेहिं केइ वि जंपाण जाणेहिं ।।९४८६।। के वि करिदारूढा महया नरवग्गुरापरिक्खित्ता । सामिस्स पुरो पच्छा पासेसु य पट्ठिया कमसो ।।९४८७।। एवं बहवे देवा देवीओ नियनिएहिं रूवेहि । तह नियनियवेसेहि नियनियएहि निओगेहिं ।।९४८८।। नियनियचिंधेहिं जुया पुरओ तह पिट्ठओ उभयपासे । संपट्ठिया कमेणं तत्तो सुव्वयमहीनाहो ॥९४८९।। न्हाओ कयबलिकम्मो विलित्तदेहो नियत्थवरवत्थो । हारोत्थय पिहुवच्छो कुंडलउल्लिहियगंडयलो ।।९४९०।। मणिमउडदित्तसिरओ जहा सुमित्तो निवो तहेवेसो । सव्वंगभूसणधरो रेहंतो कप्परुक्खो व्व ।।९४९१।। नरवसहो नरसीहो अब्भहियं रायतेयलच्छीए । दिप्पंतो मत्तमहाहत्थिवरक्खंधमारूढो ॥९४९२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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