Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 320
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिंदचरियं २८७ ठावेइ निवो नाम जिणस्स तं चेव पुव्वमुवइटें। जायइ जया तिसा वा छुहा व तइया जिणो निययं ।।९२३२।। हत्थंगुलि नियमुहे पक्खिवइ सुरा य परिणमावेति । तत्थ समग्गरसाइं भक्खाइं अणेगरूवाइं ।।९२३३।। सव्वेसि पि जिणाणं बालत्ते होइ एस आहारो। धावंति न ते थन्नं पुव्वज्जियसुकयपब्भारा ।।९२३४।। तयणु महंतीभूया अब्भवहारेति रसवइं सिद्धं । उसभस्स उ गिहवासे देवकओ आसि आहारो ।।९२३५।। किंच जिणमायरो होंति लीणगब्भाओ ताण य जिणेसु । जररुहिरकलमलाईणि जाय माणेसु न हवंति ।।९२३६।। अह वड्ढइ सो भयवं सुरलोयचुओ अणोवमसिरीओ। दासीदासपरिवुडो परिकिन्नो पीढमद्देहिं ।।९२३७।। नरनाहमंतिसामंतसेट्टिमंडलवईण तणएहिं । सरिसवएहिं सेविज्जमाणचरणारविदजुओ ॥९२३८।। कारइ तस्स निमित्तं सुमित्तराया अणेगरूवाइं। खेलणयाई नाणामणिरयणसुवन्नमइयाइं ।।९२३९।। सुंदरदारुमयाई काइं वि वरलिहियचित्तकम्माइं। रहकरितुरंगवसहागिईणि मणनयणहरणाई ।।९२४०॥ भयवं तिनाणसहिओ अवगयसंसारसव्वपरमत्थो । बालो वि सरीरेणं अबालचरिओ सहावेण ।।९२४१।। कोउयरहिओ वि सयं समाणवयसेवयाणुरोहेण । कीलइ तेहिं जहिच्छं तेसि मणरंजणट्टाए ।।९२३४२।। ढोइयखेलणयाणं उचियं जं किचि होइ न दुइज्जं । तं आणिऊण तियसा ढोयंति सयं पि जयपहुणो ।।९२४३।। पइदियह पि पवड्ढइ तणुलट्ठी तस्स तिजयनाहस्स। पूरंती कंतिभरं सियपक्खमयंकलेह व्व ॥९२४४।। पुव्वभवज्जियजिणनाहपुन्नपब्भारजणियखोहेहि । चउविहदेवेहिं निरंतरं पि एंतेहिं जंतेहिं ।।९२४५।। जिणरूवदंसणुक्कंठिएहि जिणपायपणइलुद्धेहिं । सग्गपुरं व विरायइ कुसग्गनयरं तयाकाले ॥९२४६।। जायम्मि तिजयनाहे अडसंवच्छरपमाणवयजुत्ते । सुयनेहमोहियमणो चितेइ सुमित्तनरनाहो ।।९२४७।। जह संपयं कुमारो वयम्मि वट्टइ कलागहणजोग्गे । अप्पेमि कलायरियस्स ता इमं सोहणे दियहे ।।९२४८।। एयं जणयवियप्पं जाणइ जिणपुंगवो सनाणेण । तह वि हु न कि पि जंपइ चिट्ठइ एमेव गरिमाए ।।९२४९।। अन्नम्मि दिणे राया सद्दावेऊण नियसमीवम्मि । लेहायरियं उववेसिऊण जा कि पि जंपेही ।।९२५०।। ता तम्मि खणे मुणिसुव्वओ वि पिउणो पणामकरणत्थं । पत्तो तत्थ तओ सो कयपणिवाओ नरिदेण ।।९२५१॥ आलिगिऊण गाढं चुंबेऊणं सिरम्मि उच्छंगे। संठविओ उज्झायं पुच्छइ नरनाहपासम्मि ।।९२५२।। को एस अउन्बो ताय ! अंतिए तुम्ह चिट्ठइ निसन्नो? । राया कहइ जहसो लेहाइकलाणुवज्झाओ ।।९२५३।। तो मुणिसुव्वयनाहो पिउणो मइविब्भमावणयणत्थं । जं जं विसमट्ठाणकलाण जाणइ न उज्झाओ ।।९२५४।। तं तं पुच्छइ तस्संतियम्मि नियनाणनायपरमत्थो । उज्झाओ पुण सव्वत्थ उत्तरं कुणइ न मुणेमि ॥९२५५ ।। अह मुणिसुव्वयनाहो पुच्छियठाणाई कहइ तस्स सयं । विवरेउं सो वि तह त्ति पंजली पडिसुणइ सव्वं ।।९२५६।। अह बालस्स वि मुणिसुव्वयस्स वयणाई अइपगब्भाई। पन्हेसु उत्तरेसु य सोऊणं सयलनिवलोओ ॥९२५७।। पमुइयमणो विचितइ न विम्हओ को वि एत्थ वत्थुम्मि । जं एस जिणो जाणइ जणसामन्नं कला तत्तं ।।९२५८॥ इंदियअगोयरं पि हु अवहिन्नाणेण जो मुणइ वत्थु । राया वि रंजिओ लज्जिओ य सुयगुणसबुद्धीहिं ।।९२५९।। चिंतइ विमूढमइणा कहं मए अणुचियं समारद्धं? । नाणनिही वि जिणो जं इट्ठो सिक्खविउमियराओ।।९२६०।। वेसमणो रोराओ अदलिद्दीकाउमीहिओ नूणं। पूरेउं पारद्धो जलही ओसायसलिलेहिं ।।९२६१।। निग्गुणसक्कारगुणाहियावमाणुब्भवं महापावं । अविवेयजणियमयसं अवणीयं मज्झ तणएण ॥९२६२।। ता गोविउं जहट्ठियमठें काऊण उत्तरं अवरं । उज्झायमिमं सगिहे विसज्जिमो चितिउं एवं ॥९२६३।। जंपइ लेहायरियं मए तुमं एत्थ कारणेणिमिणा। सद्दाविओ जहा तुज्झ संसयं छिदइ कुमारो ॥९२६४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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