Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
सिरिमुनिसुव्वयजिणिंदचरिय
२७१
एएसि चिय चउदससुमिणाणं के वि सत्त अन्नयरे। पासंति महासुमिणे जणणीओ वासुदेवाणं ॥८७२६।। बलदेवमायरो पुण चउरो सुमिणाई तेसु पासंति । मंडलियचरमदेहाण मायरो दोन्नि एक्कं वा ।।८७२७।। ता सामि ! इमे सुमिणा दिट्ठा पउमावईए देवीए । जे ताण फलं मन्ने उप्पज्जिस्सइ सुओ तीसे ।।८७२८।। तिजयपहू तित्थयरो बत्तीससुरिंदयपणयपयकमलो । अहवा वि चक्कवट्टी बत्तीससहस्सनिवनमिओ।।८७२९।। ता सामि ! इमे सुहया देवीए पलोइया महासुमिणा । कल्लाणरिद्धिआरोग्गभोगसुहसिद्धिसंजणया ॥८७३०।। एएसि एक्को वि हु सुमिणो दीसइ पभयपुन्नेहिं । कि पुण जुगवं चउदस एए एवंविहा सुमिणा ।।८७३१।। एवं भुज्जो. भुज्जो ते सव्वे सुमिणपाढगा पुरिसा। पउमावइ देवीए दिट्ठ सुमिणे पसंसंति ॥८७३२।। अह सो सुमित्तराया इममट्ठ सुमिणपाढरोहितो । सोच्चा पहिट्ठहियओ कयंजली जंपए एवं ॥८७३३।। एमेव इमं भो भो देवाणुपिया ! जहा वयह तुब्भे । तं तह चेव त्ति पुणो पुणो तमट्ठ पडिच्छेइ ।।८७३४।। तो सुमिणपाढए ते आहारेणं चउविहेणं पि । वरवत्थगंधमल्लालंकारेणं च विउलेण ।।८७३५।। सक्कारइ सम्माणइ विउलं तह जीवियारिहं तेसिं । पीईदाणं दलयइ तओ इमे पडिविसज्जेइ ॥८७३६।। उ?इ तओ सीहासणाउ राया पयाइ पासम्मि । पउमावइदेवीए जहनिसुयं साहए तोसे ।।८७३७।। तत्तो सा पउमावइदेवी सोच्चा सुमित्तनरवइणो। पासम्मि एयमट्ठ पहिहियया वियसियच्छी ॥८७३८॥ तं सुमिण8 सम्म पडिच्छए सविणयं अविणयंगी। एत्थंतरम्मि गयणंगणाउ चारणमुणी एक्को ।।८७३९।। अवइन्नो सो रन्ना दिन्नम्मि वरासणे सुहनिसन्नो । सह पिययमाए पणओ पुट्ठो य फलं सुमिणयाण ।।८७४०।। अह सो दिन्नुवओगो नाणम्मि वियाणिऊण परमत्थं । चारणसमणो साहइ पुरओ रन्नो सुमित्तस्स ।।८७४१।। जह नरवरिंद ! एते सुमिणा अइउत्तमा जिणमयम्मि । परिकहिया तह बहुहा सव्वे पुव्वंपि दिट्ठफला ।।८७४२।। तो एसिं सुमिणाणं पभावओ सयलभुवणनमणिज्जो। पुत्तो तुम्ह भविस्सइ अरहा हरिवंसकुलतिलओ ।।८७३।। मुणिसुव्वओ त्ति नामं वीसइमो तित्थनायगो एत्थ । तिसमुद्दमेहलाए महिमहिलाए पई होउं ।।८७४४।। समयम्मि चत्तरज्जो दिक्खं गहिऊण घाइकम्मखए। उप्पन्नविमलनाणो तित्थस्स पवत्तणं काही ।।८७४५।। इय कहिउं सो साहू तमालदलसामलम्मि गयणयले । उप्पइओ सूरो इव तवतेएणं पभासंतो ।।८७४६।। इय मुणिवयणं सोउं राया पउमावई तहा देवी। दोन्नि वि जायाइं विसेसपहरिसूससियहिययाई ।।८७४७।। तह ठाऊण मुहुत्तं तत्तो पउमावई महादेवी। रन्ना समणुन्नाया वासहरे वच्चइ नियम्मि ।।८७४८।। ण्हाया कयबलिकम्मा भुंजती विउलभोगभोगाइं । तं अच्चब्भुयभूयं गब्भं उव्वहइ सा देवी ।।८७४९।। जे पुव्वं उप्पन्ना रोगईया उवद्दवा के वि । देसम्म तम्मि आसी ते तित्थयराणुभावेण ॥८७५०।। सव्वे वि समु वसंता रिद्धिसमिद्धा वसुंधरा जाया। पणया पच्चंतियपत्थिवा वि सव्वे समत्था वि ।।८७५१।। रहकरितुरंगमणिकणगरयणवत्याइवत्थुदाणेण । पूएंति ते सुमित्तं नरनाहं जिणपभावेण ॥८७५२।। पउमावई वि देवी गब्भपभावेण दोहले जाए। जिणवयणामयपाणं करेइ कनंजलीहि सया ।।८७५३।। पूयइ जिबिंबाई भत्तीए वंदए जतिजणं च। विहिणा पडिलाभेई चउव्विहाहारपभिईहि ।।८७२४।। जिणपवयणप्पभावणपरायणा सा विसेसओ कालं । गमइ परिवालयंती सुद्धाइं सावयवयाइं ।।८७५५।। वढ्डतो सो गब्भो पयडइ पउमावईए देवीए । सह देहोवचएणं सोहग्गविसेसलायन्नं ॥८७५६।। तं गब्भमुव्वहंती देवी पउमावई विराएइ। अंतोनिहित्तसूरा विमला सरयब्भमाल व्व ।।८७५७।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376