Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
एवं अभिक्खणं चिय सुमिणाणुववूहणं कुणंतम्मि। नरनाहम्मि सुमित्ते तत्तो पउमावती देवी ।।८६६०।। अतिहट्ठतुहियया पाणिजुयं जोडिऊण तं एवं । जंपइ देवाणुपिया ! एमेव इमं जहा वयह ।।८६६१।। इय जपंती देवी रन्नो वयणं पडिच्छए सम्म । अह सा सुमित्तरन्ना अब्भणुनाया सम? उं ।।८६६२।। भद्दासणाओ वच्चइ नियसयणिज्जं निसीयए तत्थ। चितइ य जहा एए कल्लाणा सुमिणया मज्झ ।।८६६३। निद्दापमाइणीए मा पडिहम्मंतु पावसुमिणेहिं । तो देवयगुरुपडिबुद्धियाहिं सुकहाहि जागरइ ।।८६६४।। अह सो सुमित्तराया जाए पच्चूसकालसमयम्मि । इय कोडुंबियपुरिसे सद्दावेउं समाइसइ ।।८६६५।। जह भो देवाणुपिया ! अज्ज विसेसेण कुणह खिप्पं पि । बाहिरियमुबट्ठाणस्स सालमइपरमरमणिज्जं ।।८६६६।। गंधोदगच्छडाहिं सित्तं सम्मज्जियं च उवलित्तं । कुसुमेहि पंचवन्नेहिं सुरहिसरसेहिं कयपयरं ।।८६६७।। डझंतपवरकालागुरुधूवतुरुक्ककुंदुरुक्केहिं । अतिमघमघेतगंधं सुगंधवरगंधवट्टि व ॥८६६८।। एवं काऊण सयं कारेऊण य परेहि सिग्धं पि । तो तुब्भे मज्झ पुरो आगंतूणं निवेएह ।।८६६९।। इय ते सुमित्तरन्ना आणत्तागुरुपमोयपडहत्था। गंतूणं तं तह सव्वमेव निव्वत्तिऊण तओ ।।८६७०।। आगंतूण सुमित्तस्स निवइणो अग्गओ निवेएंति। अह सो सुमित्तराया पाउपभायाए रयणीए ।।८६७१॥ उम्मीलंते पंकयवणम्मि अह पंडरे पभायम्मि । रत्तासोयपगासे किसुयसुयमुहसमाणम्मि ॥७६७२।। गुंजद्धबंधुजीवगपारावयपायलोयणच्छाए। जासुयणकुसुमपज्जलियजलणतवणिज्जकलसनिभे ॥८६७३।। लक्खारसहिंगुलुयाइरेगअरुणप्पहेदिणयरम्मि । उइयम्मि पहापसरेण पवसिए अंधयारम्मि ॥८६७४।। पसरंतनयणविसयप्पगासवियसंतदंसिए लोए। उट्ठइ सयणिज्जाओ निक्खमिउं वासभवणाओ ।।८६७५ ।। अट्टणसालाभिमुहं आगच्छइ तत्थ पविसिऊण तओ। वायामजोग्गवग्गणवामद्दणमल्लजुज्झाई ।।८६७६ ।। काऊण परिस्संतो सयपागसहस्सपागतेल्लेहिं । पसरंतसुरहिगंधेहि सव्वओ पीणणिज्जेहि ।।८६७७।। मयणिज्जदीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहि बिहणिजेहिं । विदियपल्हायणजणएहि विरइयभंगो ॥८६७८।। पुन्नसुकुमालकोमलतलपाणिपएहि तरुणपुरिसेहिं । छेएहि दक्खेहि मेहावीहिं च कुसलेहि ।।८६७९।। पट्टहिं निउणसिप्पोवगएहि जियस्समेहिं निरुएहिं । अभंगमद्दणुव्वलणकरणनिम्मायगत्तेहि ॥८६८०।। ठावेऊणं नवणीयमउयफासम्मि तेल्लचम्मम्मि । मंसट्ठिरोमसुहकारएहि संवाहणविहीहि ॥८६८१।। अवगयनीसेसपरिस्समो कओ अह सुमित्तनरनाहो। अट्टणसालाओ निक्खमेइ मज्जणहरे विसइ ।।८६८२।। जालकडयाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमयलम्मि । वरन्हाणमंडवे सव्वओ वि सुइपरमरमणिज्जे ॥८६८३।। तत्थ वरनाणवीढे नाणामणिरयणभत्तिचित्तम्मि। पुव्वाभिमुहनिसन्नो गंधोदयपुप्फउदएहि ।।८६८४।। संवाहिओ समाणो पुणो पुणो सुद्धसलिलकलसेहिं । कल्लाणपवरमज्जणविहिणा बहुकोउयसएहिं ।।८६८५।। निव्वत्तियम्मि मज्जणकम्मम्मि सुगंधवरकसाईए । पम्हलसुकुमालाए लूहियगत्तो समतेण ॥८६८६।। अह य सुमहग्घदूसाइं परिहिओ चारुचंदणरसेण । अणुलित्तसव्वगत्तो सुइवन्नमंडणाणुगओ ।।८६८७।। पसरंतबहलपरिमलमालाकयसेहराभिरामसिरो। आविद्धमणिसुवन्नो कप्पियहारढ्डहारो य ॥८६८८।। तिसरयपालंबपलंबमाणकडिसुत्तकयमहासोहो । गेवेज्जअंगुलिज्जगकेऊराभरणभासुरिओ ॥८६८९।। मणिकडयतुडियथंभियभुयजुयलो अहियरुयसस्सिरिओ। वरकणयकुंडलुज्जोइयाणणो मउडदित्तसिरो। ८६९०। हारोत्थयपिहुवत्थो मद्दियमालाहि पिंगलंगुलिओ। पालंबलंबमाणयपडेण कयउत्तरासंगो ॥८६९१।। मणिकणयरयणरेहिरसुविउलआविद्धवीरवरवलओ। कि बहुणा सुयलंकियविसिओ कप्परुक्खो व्व ।८६९२।
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