Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 300
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिंदचरियं अह अन्नया कयाइ वि एसा पउमावई महादेवी । अमरविमाणसमाणम्मि वासभवणम्मि निययम्मि ।।८५९५।। निव्वणमहग्घसुंदरदारुविणिम्मवि (य) उब्भिय (ए)क्खंभे । खंभुग्गयसुविभत्तंगुवंगवरसालहंजीए ।।८५९६।। वरवत्थुकम्मकुसलेण विस्सकम्मोवमेण वढ्डइणा । निप्फाइयम्मि नीसेसभवणपडिछंदयत्थं व ।।८५९७।। वरसालहंजियासुं उज्जलवरबहुपयारवन्नेहिं । कणयरसेण य ठाणुचियलिहियसुइचित्तकम्मम्मि ।।८५९८।। मणिकणयरयणथूभियविडंगजालढ्डचंदनिज्जूढे । सुविभत्तचंदसालाकलियम्मि विलासनिलयम्मि ।।८५९९।। सरसच्छधाऊवलरइयरुइरवन्नम्मि उचियठाणेसु । अरणेट्टयअब्भगसेडियाहिं धवलीकए बाहिं ।।८६००।। घणघट्ठलट्ठमट्ठम्मि विमलआयंसतलसमाणम्मि । अब्भितरम्मि सुविचित्तलिहियसुइचित्तकम्मम्मि ।।८६०१।। नाणाविहजाइदसद्धवन्नमणिबद्धकुट्टिमतलम्मि । पउमलयपुप्फजातीपडिमुवरितलालिहियचित्ते ।।८६०२।। नवचंदणरसचच्चियमंगलकलसेहिं कंचणमएहिं । सपउममुहेहि कुसुमच्चिएहि सोहंतदारम्मि ।।८६०३।। लंबियमणिमुत्ताकणयदामसंजणियदारसोहम्मि । कयकुसुमपयरपम्हलमिउसणसणाहमज्झम्मि ॥८६०४।। चंदणकालागरुकुंदुरुक्ककप्पूरवरतुरुक्काण । डझंतधूवअइमघमघंतगंधाभिरामम्मि ॥८६०५।। गंधवरगंधिए सव्वओ वि वरगंधवट्टिभूयम्मि । मणिकिरणनियरनासियनीसेसतमंधयारम्मि ।।८६०६।। तम्मज्झगए सयणे सालिगणवट्टिए उभयओ वि । बिब्बोयणसंजुत्ते समुन्नए दोसु अंतेसु ॥८६०७॥ अमरसरिपुलिणवालुयउद्दालयसालिसे विसालम्मि । ओयवियखोमदोगुल्लपट्टपच्छाइयतलम्मि ॥८६०८।। पच्चुत्थुयम्मि अत्थरयमलयनवतयकुसत्तलिबेहिं । सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए रम्मे ॥८६०९।। आईणरूवनवणीयबूररवितूलतुल्लफासम्मि । मज्झिमरत्तम्मि पसुत्तजग्गिरी चिट्ठए जाव ॥८६१०।। ताव सिरिवम्मदेवो तिनाणसहिओ गहेसु बहुएसु । उच्चट्ठाणगहेसुं सावणसियपनरसितिहीए ॥८६११।। चंदम्मि सवणरिक्खेण संगए पाणयाओ कप्पाओ। चविउं पुत्तत्तेणं तीसे गब्भम्मि उप्पन्नो ।।८६१२।। अह सक्को आसणकंपनायजिणगब्भसंभवो झ त्ति। आणंदपुलइयतण उप्फुल्लियनयणकमलवणो ।।८६१३।। संभमवसचलियकिरीडकडयमणिकुंडलाइआहरणो । रयणमयाओ सीहासणाओ उ8 इ परितुट्टो ।।८६१४।। ओरुहइ पायवीढाओ ओमुयइ रयणपाउयाओ य । एगाए साडियाए काऊणं उत्तरासंगं ॥८६१५।। भालतलघडियकरकमलसंपुडो सम्मुहं जिणवरस्स । सत्तट्ठव पयाइं अणुगच्छइ तयणु नियजाणुं ।।८६१६।। वामं अंचित्ता दाहिणं तु धरणीयले निवेसित्ता। तिक्खुत्तो मुद्धाणं संघट्टइ मेइणीवीढे ।।८६१७।। काऊण अंजलि मत्थयम्मि सक्कत्थयं तओ भणइ। तत्तो इह आगंतुं कुसग्गनयरम्मि वासहरे ।।८६१८।। सुहसयणिज्जनिवन्नं देवि पउमावइं पणमिऊण । संथुणइ पंजलिउडो सोहम्मवई पहिट्ठमणो ।।८६१९।। वंदामि देवि ! पायपंकयाइं सुलक्खणवराई। जीए तए नियउयरे तिलोयबंधू जिणो धरिओ ।।८६२०।। कस्स न सलाहणिज्जा तिजयम्मि वि एत्थ हवसि देवि! तुमं । जीए तुह कुच्छिकुहरे उप्पन्नो तिजयकप्पतरू ।। तुज्झ तिसंझं पि नमो सामिणि! सुगिहीयनामधेज्जाए। तियणभवणपईवं उयरम्मि जिणं वहंतीए ।।८६२२।। संपाइयं तए च्चिय तिजए इत्थित्तणस्स माहप्पं । तिहुयणचिंतामणिणो जिणस्स जायऽसि जं जणणी ।।८६२३।। इय थुणिउं जिणजणणि तीसे कहिऊण जिणवरुप्पत्ति। भरिउ रयणेहि गिह वच्चइ तियसालयं सक्को।।८६२४।। अह नियउयरम्मि जिणे अवयरमाणम्मि तम्मि सुमिणाई । गयवसहमाइयाइं पासइपउमावई देवी ।।८६२५।। तं जहा-चंदुज्जलचउदंतं गंडत्थलगलियमयजलपवाहं । उल्लसिरथोरहत्थं गिरिंदरुंदं सियगइंदं ॥८६२६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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