Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 292
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं २५९ अत्तेइया पयंपइ तओ जहा मंत-ओसहाईणं । विज्जाण सउन्नाण य कि पि असज्झं न भुवणे वि ।।८३४५।। ता कहसु निव्वियप्पं खामोयरि! मा खणं चिरावेसु । जेण समीहियमट्ठ सिग्घं चिय तुज्झ साहेमि ।।८३४६ ।। वणमाला भणइ तओ अज्जे ! अज्जेव करिवरारूढो। उज्जाणवणाभिमुहं वच्चंतो सुमुहनरनाहो ।।८३३७।। सगिहासन्नो दिट्ठो जया मए साहिलासदिट्ठीए । आरब्भ तओ समयाओ संगम तस्स झायंती ।।८३४८।। इममेरिसं अवत्थं पत्ता हं जारिसं तुमं नियसि । अत्तेइया पयंपइ सगव्वमेयं तओ वयणं ।।८३४९।। चंदो सूरो सक्को ईसाणो वा हवेज्ज जइ को वि । आणेमि तं पि गयणंगणाओ मंतेहिं तुह पासे ।।८३५०।। मणुयाहिवमेत्तस्स उ का वत्ता एगपुरनिवासिस्स । अज्जेव पओसे जइ घडेमि न तए समं एयं ॥८३५१।। तो हं पज्जलियहुयासणम्मि नूणं खिवेमि अप्पाणं । इय काऊण पइन्नं अत्तेई निग्गया तत्तो ॥८३५२।। वणमालाभवणाओ गंतुं मतिसागरस्स सचिवस्स । सव्वं कहेइ वियणे हिट्ठो सो होइ हिययम्मि ।।८३५३।। सम्माणिऊण अत्तेइयं तओ कि पि सिक्खवइ कन्ने । पच्छा विसज्जिऊणं तं सचिवो चितइ सकज्ज ।।८३५४।। अह पत्तम्मि पओसे पसमियनीसेसजंतुसंतावे । सुद्धमयंकमऊहे विलासिमणुयाण सुजणए ।।८३५५।। अत्तेई गंतूणं वीरकुविदस्स मंदिरे तुरियं । वणमालाए साहइ पुत्ति ! मए तुइ समीवाओ ।।८३५६।। एत्तो गंतूण नियम्मि आसए जावएत्तियं वेलं। तह कहवि मंतजावो एगग्गमणाए परिविहिओ ।।८३५७।। जह सो सुमुहरिदो सव्वंग विसमबाणसरविद्धो। चिट्ठइ मणम्मि तं चिय झायंतो परमजोइ व्व ।।८३५८।। एयं मह विज्जाए कहियं कन्नम्मि तो मए जावो। संवरिओ झत्ति इहागया अहं तुज्झ पासम्मि ।।८३५९।। ता सिग्घं चिय इन्हि एहि तुम नेमि जह निवसमीवे । जावज्जवि य कुविदो न वीरओ मंदिरं एइ ।।८३६० ।। अत्तेइयाए वयणे एयम्मि गयम्मि कन्नकुहरम्मि। वणमाला संजाया मय व्व उज्जीविया झ त्ति ।।८३६१॥ डढ्डा सिसिरेण जहा होइ वसंते पुणो वि सच्छाया । नलिणी तह वणमाला तव्वयणायन्नणे जाया ॥८३६२।। अह सिग्धं तीए समं विणिग्गया नियगिहाओ वणमाला । पत्ता नरिंदभवणे सिग्धं सचिवस्स सरिऊण ।।६३६३।। अत्तेइया अमच्चं भणइ जहा अम्ह सीसिणी एसा। निववल्लहेण केणइ परिभूया आगया एत्थ ।।८३६४।। तो रन्ना सह एईए दंसणं कारवेह सिग्घं पि। सचिवेण तओ भणियं मज्झ इमं वइयरं कहह ।।८३६५।। अत्तेई भणइ तओ पडियारं काउमक्खमा तुब्भे । एयम्मि वइयरे तो कह तुम्ह कहिज्जए एयं ।।८३६६।। तो भणियं सचिवेणं अणवसरो संपयं नरिंदस्स । पासे गंतुं अन्नस्स तो अहं जामि सयमेव ।।८३६७।। इय भणिउं उट्ठ उं गंतुं सचिवेण साहियं रन्नो। जह वणमाला तुम्हं किंच पि विन्नविउकामा ।।८३६८।। चिट्ठइ दुवारदेसे पत्ता को देव ! तीए आएसो। तो चितइ नरनाहो एसो सो खलु महाणत्थो ।।८३६९।। समुवट्ठिओ पुणो वि हु अहवा सचिवस्स चेट्ठियं कि पि । इय चितिऊण भणिओ रन्ना मइसागरो एवं ॥८३७०।। तं चिय तव्वयणममच्च ! निसुणिउं उत्तरं सयं देहि । विन्नवइ तओ निवइं सचिवो जह देव ! सयमेव ।। भणिया बहुहा वि मए एसा एवं न मन्नए कितु । इय जंपेइ चिरेण वि एत्तो नाह गमिस्सामि ।।८३७२।। जाव न सयं मुहेणं विन्नत्तो नरवई मए सुमुहो। तो जइ आएसो देवसंतिओ होइ ता एयं ।।८३७३।। कढ्डावेऊण खुरेहि अंगरक्खाण पासओ बाहिं। नेयावेमि खणेण वि तो राया आइसइ मंतिं ।।८३७४।। जइ एसो च्चिय तीए विणिच्छओ निम्मिओ नियमणम्मि । तो कारिज्जउ एसा मए समं दंसणं वरई ॥८३७५।। भवियव्वयावसेणं मंती एवं निवेण आइट्ठो । हिट्ठो हियए गंतूण आणए तत्थ वणमालं ।।८३७६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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