Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 260
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरिय २२७ वाहणदियहे पुब्वप्पओगओ आणिऊण तं तुरयं । हयवाहियालिमज्झे जंतविही कीरए तस्स ।। ७२९९।। वाहणविहिम्मि विहिए दामेऊणं पएसु सो तुरओ । छोडियजंतो काउं निज्जइ बाहिम्मि नियठाणे ।।७३००।। हयवाहियालिनियडे दिन्नावासे नियम्मि कुमरो वि । सिरिवम्मो गंतूणं भोयणसयणाइयं कुणइ ।।७३०१।। निगुडुरनियडाए कुडी बंधावए तुरंगं पि । तं सारंग तह तस्स कारए उचियपडियारं ।।७३०२ । जम्मि दिने वाहिज्जइ न तुरंगो तम्मि उभयकाले वि । वाहणदिणे उ कुमरो अवरण्हे जाइ नियपासे ।।७३०३।। इ कहियवाणं वाहिज्जतो तुरंगमो एसो । कइ वि दियहाई कोवं काऊणं अहिगमहिगयरं ।।७३०४ ।। पच्छामिज्जतो देहे जंतेहि कसनिवाहिं । सणियं सणियं लग्गो छड्डेउं अंतरकसायं ॥ ७३०५।। कुमरो वि अदूरासन्नदेसपरिसंठिओ मुणेऊण । तुरयसरूवं तो देइ वाहगाणं उचियसिक्खं ।। ७३०६ । तत्तो कमेण तुरए थेवकसाए हवंतए तम्मि । कुमरो हयपासट्टियनराण पासाओ एक्केक्कं ।। ७३०७।। हत्थं हयपट्ठीए दावेइ कमेण तम्मि सहियम्मि । कइवयदिणपज्जते थडियं बंधावर तत्थ ।।७३०८।। ती विहु सहियाए गएसु कइवयदिणेसु पल्लाणं । आरोहावइ पिट्ठे तम्मि वि सहिए इयरपुरिसं ।।७३०९।। तत्तो यदुदमणसमुचिएहिं विणा वि जंतेहिं । केवलपल्लाणजुयं आरूढ नरस्स पासाओ ।।७३१० ।। खेडावइ तं तुरयं तह वि न दंसइ वियारलेसं पि । सो जाव तओ कुमरो तं नाऊणं विगयदप्पं ॥।७३११।। सिक्खसुहतिहीए दिणयरचंदाण अन्नयरवारे । हत्थोत्तरसवणस्सिणिमज्झे एगयररिक्खम्मि ।।७३१२।। पट्ठिनिवेसियसुंदरपल्लाणे वयणदिन्नअविलाणे । पुव्वाभिमुहं ठविए सारंगे वरतुरंगम्मि ।।७३१३।। वामकरगहियवग्गो दाहिणकरताडियासणपएसो । चाडुवयणं भणतो जहणं जंघाए फासतो ॥ ७३१४।। आरूढो झत्ति अणेयबंदिविदेहिं संथुणिज्जतो । निग्गंतूणं निययावासाओ वाहियालीए ।।७३१५।। पत्तो दुवारदेसे सेसजणं बाहिमेव धारेउ । अट्ठहिं जणेहिं सद्धि पविसेउं मज्झभायम्मि || ७३१६।। सत्यणि विहिणा वाहइ एवं कमेण दियहेहि । अइकंतेहि केहि वितं तुरयं सव्वमवि सिक्खं ।।७३१७।। दढचित्तविभाएहि सिक्खावेउं करेइ निवजोग्गं । दंसइ पुराणहयवाहियालिपत्तस्स तस्स पुरो ।।७३१८ ।। रन्ना सपरियणेणं पसंसिओ सतुरओ वि सो कुमरो । तस्तुवरि भामिया निउँछणाई बहुजणेहिं ।।७३१९।। हयदमगमोसरायं तो पुच्छइ पत्थिवो हयसरूवं । सो वयइ संपयमिमो कुमरेण सुवाहिओ विहिओ ।।७३२०।। सव्वंगेसु वि नज्जइ मुक्ककसायत्तणं इमस्स जओ । जावज्जीवं पि तओ दंसिस्सइ एस न वियारं ॥ ७३२१ ।। अहराया हक्कारइ कुमरं सिरिवम्ममप्पणो पासे । आलिंगइ अतिगाढं उववेसइ सन्निहाणम्मि ।।७३२२।। सव्वंगं आहरणं वत्थाई देवससरिसाई । आणावेउं राया पयच्छए झत्ति कुमरस्स ।।७३२३॥ तह वत्थाहरणाती किंपि निवो देइ आसरायस्स । अह सिरिवम्मकुमारो रायाणं विन्नवइ एवं ।।७३२४।। देवेण जया दिनो आएसो तुरयवाहणे मज्झ । तइया हं दंतउरे गंतुमणो विन्नवणहेउं ।।७३२५।। देवपयाणं पासे समागओ आसि तयणु देवेण । दिन्नाएसे एयम्मि नो मए किं पि विन्नत्तं ॥७३२६।। ता इन्हि मं देवो अणुजाणउ जेण जामि दंतउरे । पुव्वं पिनियावासो मए बहिं दाविओ अत्थि ।।७३२७ ।। नववाहियालिवंसे जवणीओ संवरावऊ देवो । तो रन्ना पञ्चदिणे तत्थ विलंबाविओ कुमरो ।।७३२८ ।। अह राया सुहदियहे सारंगतुरंगमं समारुहिउं । हिंडा (व) इ सो वि मणं निवस्स नाउं तहा चलइ ।।७३२९।। तो राया मुइयमणी उभओ कालं पि तम्मि तुरयम्मि । आरूढो पइदिणमेव हिंडए तत्थ तत्थ वि य ।। ७३३० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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