Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरिय
२५३
उग्गाहइ वरधूवं तत्तो मुहमंडवस्स तस्सेव । पच्चत्थिमम्मि दारे अह उत्तरखंभपंतीए ८१५१ ॥ तोपुव्विल्लेदारे तत्तो वि य दाहिणम्मि दारम्मि । तो दाहिणिल्लपेच्छाघ रमंडवमज्झबहुभागे ।।८१५२। अक्खाडयमणिपेढी सीहासणगेसु पच्छिमे दारे । तो पुव्विल्ले दारे तो दाहिणचेइयत्थूभे ॥। ८१५३ ।। तो तस्स पच्छिमुत्तरपुब्बुल्ल यदाहिणासु पडिमासु । तो दाहिणचेइदुमे अह दाहिणए महिंदझए ।। ८१५४ ।। तो दाहिणिल्लनंदापुक्खरिणीतोरणत्तिसोमाणे । तत्तो सिद्धाययणं अणुप्पयाहिणीकुणेमाणो ।। ८१५५ ।। उत्तरनंदापोक्खरिणितोरणे वयइ तह तिसोमाणे । तत्तो य उत्तरिल्ले पयाइ एसो महिंदझए ।।८१५६ ।। तो उत्तरचेइदुमेतत्तो उत्तरगचेइयत्थूभे । तो पच्छिमाइचउदिसिठियासु तित्थयरपडिमा ।।८१५७।। तो उत्तरपेच्छाघर मंडव बहुमज्झदे सभायम्मि । तो पुव्विल्ले दारे तत्तो उत्तरदुवारम्मि ।। ८१५८।। अह सो सिरिवम्मसुरो वच्चइ दाहिणगखंभपंतीए । तत्तो उत्तरमुहमंडवस्स बहुमज्झभायम्मि ।। ८१५९ ।। तो पच्चत्थिमदारे तत्तो ( उण ? ) उत्तरिल्लदारम्मि । तत्तो य दाहिणिल्लाए वच्चए खंभपंतीए ॥ ८१६० ॥ अह सिद्धाययणस्स पुरत्थिमदारम्मि वच्चए एसो । तत्तो य पुव्वमुहमंडवस्स बहुमज्झभायम्मि ||८१६१ ।। तत्तों दाहिणदारे तत्तो पच्छिमगखंभपंतीए । तो उत्तरिल्लदारे तत्तोपुव्विल्लदारम्मि ॥। ८१६२ ।। तत्तोपुव्विल्लमि विच्छाघरमंडवे तहा सव्वं । एवं थूभे य जिणपडिमा य चेइयमेसु ॥ ८१६३।। तत्तो य महिंदझए नंदापुक्खरिणि तोरणे तत्तों । तह तीए तिसोमाणगपडिरूवे अच्चणं कुणइ ।।८१६४।। इय भणियकमेण इमो पुव्वत्तसमत्थवत्थुसंघायं । लोमगहत्थेण पमज्जिऊण पुब्वं तच्छा ||८१६५ ।। गंधोदयधाराए धोऊणं पूयए सुपुप्फेहि । उग्गाह य धूयं कालागुरुकुंदुरुप्पभवं ॥ ८१६६।। जो को वि इह विसेसो सो भन्नइ सव्वदारदेसेसु । सह सालहंजियाहि तह चेव य वालरूहि ||८१६७।। मेयाउ दारवेड्डाओ खंभपंतीसु होंति न इमाओ । चिट्ठेति केवलं सालहंजिया वालरूवा य ।।८१६८।। मुहमंडवपेच्छाघर मंडवगाणं तु मज्झबहुभाए । पंचगुलितलमंडलया लिहणं चंदणरसेण ।।८१६९ ।। किंबहुना ? जह चेव य सिद्धाययणस्स मज्झबहुभाए । दारे य अत्थि भणियं तह सेसे मज्झदारे य ।। ८१७० ।। जह सिद्धाययण जिप डिमाणं तह य थूभपडिमाणं । आलोए च्चिय पणमणपमुहं काऊण पज्जते ।।८१७१ ॥ अट्ठोत्तरवित्तसयत्थुइकरणानंतरं तु सक्कथयं । संपन्नं भणिऊण वंदे तहा नम॑से ।। ८१७२ ।। तो पुब्विल्लयनंदापुक्खरिणीतोरणे तिसोमाणे । परिमज्जणाइ काउं धूवं उग्गाहए तत्तो पुव्विल्लदुवारेणं पविसेऊणं पुणो सुहम्मसहं । गंतूणं माणवगे चेइयखंभम्मि वइरमए गोलगवट्टसमुग्गे लोमगहत्थेण संपमज्जेउं । उग्घाडिउं च तत्तो जिणसकहाओ मज्जेइ गंधोदएण धोयइ अच्चेइ सुगंधपवरमल्लेहि । दावेइ पवरधूवं जिणसकहाओ पुणो वि तओ गोलगवट्टसमुग्गेसु निक्खिवेऊण मुयइ तह चेव । माणवचेइयखंभं पमज्जए लोमहत्थेण दिव्वोदगेण धोयइ चच्चइ गोसीसचंदणरसेण । पुप्फारुहणातीयं काऊणं दावए धूयं तो माणवचेइयभपुवओ मणिमयाए पेढीए । सीहासणं पमज्जइ लोमगहत्थेण तत्तो उ ।।८१७९ ।। दिव्वोदण धोय इच्चाई जाव दावए धूवं । खंभस्स पच्छिमे मणिपेढीए देवसय णिज्जे ||८१८० ।। काउं पमज्जणाती धूवपयाणावसाणमच्चणियं । तत्तो सयणिज्जुत्तरपुव्वे खुड्डामहिंदझए ||८१८१ ।। गंतूण तहेव मज्जणाइयं सव्वमायरड तत्तो । तस्सेव महिंदझयस्स पच्छिमे जाइ दिसिभाए ॥ ८१८२ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
॥ ८१७३ ।।
|| ८१७४ ।।
।। ८१७५ ।।
।।८१७६ ।। ।।८१७७ ।। ॥। ८१७८ ।।
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376