Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२५२
सिरिवम्मकुमारदेवस्सभवो गंठिमवेढिमपूरिमसंघाइमएहि कप्परुक्ख च । अप्पाणमलंकियभूसियं करेऊण तत्तो य ॥८११८।। दद्दरमलयसुगंधियगंधेहि भुकुंडए समग्गतणुं । दिव्वं च सुमणदामं पिणिधए तयणु सो देवो ।।८११९।। वरकेसमल्लवत्थाहरणालंकारभयभिन्नण । चउविहलंकारेणं अलंकिओ भसिओ संतो ॥८१२०।। आलंकारियभवणाओं पुव्वदारेण निक्खमेऊण । आयाहिणीकरेंतो ववसायसहं वयइ तत्तो ॥८१२१।। तत्थ पुरमिल्लदारेण विसइ सीहासणम्मि उवविसइ। तो सामाणियदेवा तस्साणेउं समति ॥८१२२।। पोत्थयरयणं सो तं गिन्हइ उग्घाडिऊण वाएइ । धम्मियमिह ववसायं अवहारेऊण चित्तम्मि ।।८१२३।। पोत्थयरयणं पडिनिक्खिवेइ सीहासणाउ उठेइ । ववसायसहाए पुरत्थिमेण दारेण नीहरइ ॥८१२४।। नंदापुक्खरिणीए पुवेणं तोरणेण पविसेउं । पुव्विल्लतिसोमाणगपडिरूवेणं समोयरइ ।।८१२५।। पक्खालइ करचरणे चोक्खो होऊण परमसुइभूओ । सेयं महंतमेगं रययमयं विमलजलपुन्नं ॥८१२६।। मत्तगयमहारहमुहसमागिइं गिन्हिऊण भिंगारं । उप्पलसयवत्तसहस्सवत्तमाईणि गिण्हेइ ।।८१२७।। नंदापुक्खरिणीओ नीहरइ तओ समग्गदेवेहिं । सामाणियपमुहेहि केहिं वि करकलियकलसेहिं ।।८१२८।। जा वरधूयकडच्छुयकरेहि केहिं वि पहिट्ठहियएहिं । पच्छा अणुगम्मतो देविड्ढीए समग्गाए ॥८१२९।। महयाहयतलतन्ती-ताल-मुइंगप्पवाइयरवेण । सिद्धाययणे वच्चइ पविसइ पुग्विल्लदारेण ॥८१३०।। गंतूण पुरो देवच्छंदठियाणं जिणिंदपडिमाणं । आलोयम्मि पणामं करेइ आणंदपडिपुन्नो ।।८१३१।। गहिऊण लोमहत्थं जिणपडिमाओ पमज्जए तत्तो । गंधोदएण न्हावेइ सुरहिणा दणरसेण ॥८१३२।। गोसीसेणं लिपइ जिणपडिमाणं समग्गगायाइं । तयणु नियंसावइ देवदूसजुयलाई अहयाइं ॥८१३३।। वरपुप्फमल्लगंधाणचुन्नवत्थाण कुणइ आरुहणं । आहरणारहणं तह करेइ पडिमासु सव्वासु ।।८१३४।। वरसुरहिकुसुममालाकलावकलियं करेइ तं ठाणं । करगहियविमुक्कदसद्धवन्नकुसुमोवयारं च ॥८१३५।। अच्छहि सन्तेहिं सयलेहिं तंदुलेहिं सेएहिं । रययामएहि अट्ठमंगले आलिहइ पुरओ ॥८१३६।। तयणंतरं च चंदप्पहरयणविसुद्धवेरुलियडंडं । कंचणमणिरयणविचित्तभत्तिकलियं विमलछायं ॥८१३७।। डझंतं पवरकालागुरुसुरहितुरुक्ककुंदुरुक्कं च । गंधुत्तमाणुविद्धं सुगंधवट्टि विणिमुयंतं ॥८१३८।। वेरुलियमयं गहिउं कडच्छयं जिणवराण पत्तेयं । दावेऊणं धूयं संथुणइ तओ जिणवरिदं ॥८१३९।। अट्ठसएणं वित्ताण अपुणरुत्ताण अत्थजुत्ताण । थुणिउं पच्चोसक्कइ सत्तट्ठपयाई तत्तो य ॥८१४०।। अंचइ वामं जाणूं भूमीए दाहिणं निवेसेइ । तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियले तो निवाडेइ ॥८१४१।। ईसि पच्चुन्नमिउं करयलजुयलं सिरम्मि ठविऊण । पयओ वयइ नमोत्थुणमिच्चाई सव्वसक्कथयं ।।८१४२।। वंदइ नमसइ तओ सिद्धाययणस्स मज्झबहुभाए । गंतूण तं पमज्जइ करपगहियलोमहत्थेण ।।८१४३।। दिव्वोदगधाराए अब्भुक्खेऊण चंदणरसेण । पंचंगुलितलमालिहइ मंडलं वित्थडं तत्थ ।।८१४४।। पयरं काऊण दसद्धवन्नकुसुमेहिं दावए धूयं । सिद्धाययणस्स तओ वच्चइ दारम्मि दाहिणए ॥८१४५।। तो तत्थ दारवेड्डाए वालवे य सालहंजीओ । लोमगहत्थेण पमज्जिऊण दिव्वोदगस्स तओ ।।८१४६।। धाराए अब्भुक्खइ चच्चइ गोसीसचंदणरसेण । पुष्फारुहणं जावाभरणारुहणं समायरइ ॥८१४७।। वरसुरहिकुसुममालाकलावकलियं करेत्तु दावेइ । कालागुरुवरधूवं तो दाहिणदारभायस्स ।।८१४८।। मुहमंडवम्मि वच्चइ तस्स य बहुमज्झदेसभायम्मि । लोमगहत्थेण पमज्जिऊण अब्भुक्खइ जलेण ।।८१४९।। पंचंगुलितलमालिहइ मंडलं सुरहिचंदणरसेण । पयरइ दसद्धवन्नाई तत्थ गंधड्ढकुसुमाइं ।।८१५०।।
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