Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 272
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं पडिलाभइ सक्कारइ सम्माणइ गस्यभत्तिराएण । एक्कारसदियहाइं गमेइ इय परमतोसेण ।।७६९२।। इय ऊसवम्मि वित्ते बहिगामागरसमागए लोए। सयले विसज्जियम्मि वासारत्तम्मि संपत्ते ।।७६९३।। जिणसासणप्पभावणपरायणो जणयविणयसंपन्नो। रंजतो सव्वजणं गमइ दिणे कुमरसिरिवम्मो ।।७६९४।। जो पयतीण पयाण य निवम्मि नरपुंगवम्मि अणुराओ। सो सिरिवम्मकुमारे दुगुणयरो वट्टए निच्चं ।।७६९५ ।। नरपुंगवो वि राया सिरिवम्मकुमारगुणगणं दर्छ । तं रज्जे ठविऊणं परभवहियमिच्छए काउं ।।७६९६।। नट्टगुणलद्धकित्तीवित्ते कोमुइमहूसवे तत्थ । देसंतरं भमंती समागया नट्टिया एगा ॥७६९७।। लायन्नरूवजोव्वणविन्नाणगुणेहि लोयमणहरणा । अवसरगयस्स रन्नो सा पडिहारेण विन्नत्ता ।।७६९८।। तयणुनाएण पवेसिया .य काऊण उचियपडित्ति । उवविट्ठा निवपुट्ठा साहइ सव्वं नियसरुवं ।।७६९९।। जह कंचीनयरीए वत्थव्वा हं अणंगसेणाए । वरगणियाए धूया नामेणं कामसेण त्ति ।।७७००।। अहिणवसिक्खियनट्टा लद्धपसंसा निवाइलोयाओ । तयणुन्नाया तत्तो निग्गंतूणं ससमुदाया ।७७०१।। आउज्जियवेणुवीणावायगसहिया भमामि देसेसु । अप्पुव्वं पासंती नियनट्टगुणं पयासंती ॥७७०२।। तत्तो तुम्ह पसिद्धि सिरिवम्मकुमारगुणपसिद्धि च । सोउं उक्कंठाए समागया हं इह इयाणि ।।७७०३।। दिहा य देवपाया दिलै सिरिवम्मकुमरमुहकमलं । आइसह जइ इयाणि तो नट्टविहिं पयंसेमि ।।७७०४।। इय तीए विनत्ते राया पासइ मुहं कुमारस्स । कुमरो वि मउलियकरो विन्नवइ निवं जहा इण्हि ।।७७०५।। अतिवेला संजाया कल्लदिणे उग्गमंतसूरे वि । एउ इमा संवहिउं जह दीसइ कोउयमिमीए ।।७७०६।। इय कुमरेणं भणिए विसज्जिया नट्टिया नरिदेण । पगया नियम्मि ठाणे समागया पुण पभायाम्म ।।७७०७।। नियसमुदाएण समं संवहिऊणं निवो वि अत्थाणे । कुमरेण सह निसन्नो नट्ट विहिण्णूहि य नरेहिं ।।७७०८।। रायाएसेण तओ कुंकुमचंदणरसेहि सित्तम्मि । रंगम्मि कामसेणा पविसइ कयचारुसिंगारा ॥७७०९।। कच्छियचरणगपयडियअणंगभवणंतऊरुखंभजया । अइसच्छकंचुययंतरदीसंतपओहराभोया ॥७७१०।। संचरणरणिरमणिनेउरेहि चरणेहि सावहाणमणं । नीसेसं पि कुणंती रायसहासन्निविट्ठजणं ॥७७११।। आउज्जे वज्जते वंसे उभिज्जमाणकलसद्दे । महुररवगायणेहि गिज्जते गहियतालम्मि ।।७७१२।। कन्नसिरनयणभुमयागीवाकरचरणचारसंचारं । तह महिचारीकरणंगहारवलणेहि मणहरणं ।।७७१३।। सत्थोवइट्टविहिणा तंतीसरतालगीयरवमीसं । विम्हय मुप्पायंती पणच्चिया कामसेणा सा ।।७७१४।। तत्थ य रायसहाए एगो देसंतरागओ वंठो । नरपुंवनिवसेवं पडिवन्नो चिट्ठइ निविट्ठो ७७१५।। सोय तरुणो सुरूवो चाई कुसलो कलासु सयलासु । उचियन्नू सविसेसं वियाणओ गेयनट्टेसु ॥७७१६।। तेण पणच्चंतीए तीसे नियअंगओ नवोज्झगओ । उत्तारिऊण दिन्नो गहिओ तीए करजुएण ॥७७१७।। आरोविऊण सीसे महापसाओ त्ति जपमाणीए । तं दट्ठण नरिंदो रुट्ठो वंढम्मि इय हेउं ।।७७१८।। जह किर पणच्चमाणी पुरओ अम्हाण चिट्ठए एसा । पडिपुन्नं नट्टविहि न दंसए ताव अज्ज वि य ॥७७१९।। अम्हे वि पयच्छामो न चायमज्ज वि इमीए तो कम्हा । पढम पि एस वंठो होऊणं देइ नियचायं ।।७७२०।। सिरिवम्मो उण पुट्ठो वंठे कुवियं निवं निएऊण । नियकंठाओ उत्तारिऊण वंठस्स कंठम्मि ।।७७२१।। निक्खिवइ कणयदोरं तहसणओ निवो सिढिलकोवो । वंठम्मि झत्ति जाओ सविम्हओ कुमरचरियम्मि।।७७२२ नट्टपरिसमंती (मत्ती? )ए नट्टविऊ पुच्छए निवो पुरिसे । साहह नट्टसरूवं जं इण्हिं नच्चियमिमीए ॥७७२३।। ते दोसगुणा नट्टस्स सविवरं अक्खिऊण नरवइणो । साहेति जहेयं चारु नच्चियं सव्वमेईए ।।७७२४।। अह नियसमुदायसमन्निया वि सम्माणिया निवेणेसा। वत्थालंकारेहि विउलेण य अत्थदाणेण ॥७७२५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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