Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिवम्मकुमारचरियं
तेण नयविक्कमेहि पसाहियं सुविउलं महीवलयं । उट्ठाविया य ठविया तत्थ अणेगे महीवइणो ।।७८५६।। देंतेहिं नरिंदेहि धूयाओ तस्स परिणयणहेउं । जायाइं पंचमहिलासयाइं सुररमणिसरिसाइं ।।७८५७।। गामे वा नगरे वा पुराणचेश्यहराइं सयलाई। तेणुद्धरियाई कारियाइं तह अहिणवाइं च ।।७८५८।। रहजत्ताओ अट्टाहियाओ कारेइ सयलदेसम्मि। साहम्मियवच्छल्लं कुणइ मुणीणं च विणयाई ।।७८५९।। आणंदणो वि सूरी नरपुंगवसाहुणा समं तत्थ । आगच्छइ बहुवारं' रायाइजणोवयारकए।।७८६०।। सिरिवम्मनिवइकित्ती सयलजए संखकुंददलधवला । दियहे दियहे पसरइ सियपक्खमयंकजुण्ह व्व ।।७८६१।। एवं पुरिसत्थतियं निसेवमाणस्स तस्स बहुकाले । वच्चंते जह भणियं मुणिणा तह चेव संजायं ।।७८६२।। पुत्तविसयम्मि सव्वं अह जाए कित्तिवम्मकुमरम्मि । गहियकले रज्जखमे सो चिट्ठइ दिक्खगहणमणो ।।७८६३।। नरपुंगवो उ साहू नियगुरुणा सह बहिं विहरमाणो । पालियनिम्मलसीलो गओ समाहीए सुरलोयं ।।७८६४।। आणंदणो वि सूरी ठविउं नंदणमुणि नियपयम्मि । पडिवन्नउत्तिमट्ठो अंतगडो केवली सिद्धो ॥७८६५।। अह नंदणे मुणिदो बहुसीससमन्निओ विहरमाणो । चंदउरीए पत्तो पुव्वुज्जाणे समोसरिओ ॥७८६६। नाऊण तं समागयमाणंदसुनिन्भरो तओ राया । रज्जम्मि अत्तणो कित्तिवम्ममभिसिचिउं तणयं ।।७८६७।। जह नरपुंगवराया महाविभूतीए गंतुमुज्जाणे । सिरिवम्मनिवो दिक्खं गिन्हइ नंदणगुरुसमीवे ।।७८६८।। अन्ने वि तयणाएण मंतिणो मंडलि (ली)य सामंता। आसन्नसेवयाती गिण्हति वयं समं तेण ।।७८६९।। सव्वो वि रायलोओ चंदउरिनिवासिनायरजणो य । सिरिवम्मेण विमुक्को मन्नइ सुन्नं व अप्पाणं ।।७८७०।। सेसे वि सयलदेसे गामागरनगरपट्टणमडंबे । जेण सुयं तस्स वयं तेण परुन्नं गरुयसइं ।।७८७१।। मन्नतेण अणाहं अप्पाणं कतिवयाइं दियहाइं । भत्तं पि न भुत्तं आयरेण गुरुखेयभरिएण ॥७८७२।। देवी वि वसंतसिरी कइवयदेवीहिं अणुगयाहिं समं । गिण्हइ वयं समीवे पवित्तिणीए विणीयाए ॥७८७३।। गहिऊण दुविहसिक्खं सो अहिणवसाहुसाहुणीवग्गो। नियगुरुगुरुणीपासे जहोचियं आगमं पढइ ।।७८७४।। सिरिकित्तवम्मराया सयं तहा सेसजणुवरोहेण । विन्नविऊणं सूरि धारइ तत्थेव मासदुगं ॥७८७५।। राया जणणीहि समं सपरियणेणं च नायरजणेण । गंतूणं उज्जाणे नमिउं सूरि सपरिवारं ॥७८७६।। सिरिवम्मरायरिसिणो एगते आगमं पढंतस्स । गंतूण सन्निहाणे निच्चं उवविसइ भत्तीए ।।७८७७।। सिरिवम्मो पुण साहू पढम चिय ताण पणिवयंताण । दाऊण धम्मलाभं एगग्गमणो पुणो पढइ ।।७८७८।। दूरे आलावकहा दिटिक्खेवं पि तेसु न करेइ । सो निम्ममो महप्पा एगंतेणं भवविरत्तो ।।७८७९।। अह मासदुगे वत्ते सिरिवम्ममुणि तओ समं गुरुणा । बाहि विहरिउकामं रायाइजणो समग्गो वि ।।७८८०।। अणुगच्छिऊण दूरे पुण पच्चागमणहेउविन्नत्ति । काऊण पडिनियत्तो मुयमाणो बाहजलपवहे ॥७८८८१।। सिरिवम्मो वि महप्पा महामुणी खंतिविणयसंपन्नो। गुरुणा सह विहरन्तो पढिउं एक्कारसंगाई ।।७८८२।। चिंतेइ पच्छिमवए मए गिहीयं वयं तओ इण्हि । जावज्ज वि मम सत्ती का वि सरीरे परिप्फुरइ ।।७८८३।। ताव तवोकम्मम्मिवेयावच्चे य उज्जमेमि अहं । इय चितिऊण सूरी तेण तयट्ठम्मि विन्नत्तो ।।७८८४।। सो वि सुए उवउत्तो नाऊणं तस्स थेवमेवाउं। तं भणइ जहा जुत्तं तुह संपइ एरिसं काउं ॥८७८५।। जम्हा थेवं आउं सिरिवम्मो पुच्छए कतिपमाणं ? । सूरी साहइ संवच्छराइं पंचेव तो तस्स ।।७८८६।। अह सिरिवम्मो साहू विनवइ गुरुं कयंजली सीसे । भयवं महापसायं काऊण अभिग्गहं मज्झ ।।७८८७।। देह इमं जाजीवं जहन्नमवि अट्ठमं तवोकम्मं । काउं पारेयव्वं मए सया अंबिलेणेव ।।७८८८।। १. संघा० पा० ।
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