Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 273
________________ २४० सिरिवम्मकुमारचरिय । सो नरवइणो चाओ अरुट्ठपुट्ठाए कामसेणाए । गहिओ तओ नरिदो एगंते पुच्छइ कुमारं ।। ७७२६।। जइ नट्टियाए चाओ दिन्नो वंठेण असमए वि तओ । कीस कुमार ! पसाओ तए कओ तक्खणे तस्स ? ।।७७२७ ।। आहत सिरिवम्मो तस्स पसाओ मए तयणुरूवो । न कओ तुम्ह भएणं संभावणमेत्तमेव कयं ॥ ७७२८ ।। जह से जो जाणइ न कओ वंठेण अणुचिओ चाओ । अन्नह कह सिरिवम्मों करेइ एयस्स सम्माणं ? ।। ७७२९ ।। -राया जंपर कह पुण नाचियं तस्स मन्नसे चायं । तो विन्नवइ कुमारो कयावहाणो सुणउ देवो ।।७७३० ।। नच्चतीए दाहिणपओहरे कामसेणगणियाए । उह पाणिरुहपए दीसंते कंचुयंतरिए ।। ७७३१ ।। आगम्म समल्लीणा दूमंती मच्छिया पयमुहेहिं । गोफुरणं काऊणं सिग्धं उड्डाविया तीए ।। ७७३२ ।। पारद्धनट्टट्ठाणगवाधाओं रक्खिओ तया होतो एयं गुरुविन्नाणं सच्चवियं तीए दहूणं ॥ ७७३३।। परितु णं ण रहसवसओ नियंगओ ज्झगओ । उत्तारिऊण दिन्नो तीसे सेट्ठविरहम्मि ।।७७३४।। एयं तसाचियं नमन्नियव्वं तु उचियमेवेयं । जं रहसवसे दाणं घाओ रोसम्म विष्फुरिए || ७७३५।। देवस्स वि परिसाए अन्नाणदोसो हमेण अवणीओ । सच्चवियठाण' तो सं जाणावंतेण वंठेण ।। ७७३६ ।। जे नट्टवि पुरिसा देवेणिह दंसणत्थमाणीया । पुट्ठेहिं विनय तेहि सिद्ध गोफुरणविन्नाणं ।।७७३७।। सामने दोसा गुणा य नट्टस्स साहिया तुम्ह । एईए नच्चियस्स उ निद्दोसत्तं च अक्खायं ||७७३८ || सहिययहिययचमक्कारकारओ जो गुणो पुण इमीए । सो कह वि न सक्को तेहि जाणिउं पयडदिट्ठे वि ॥ ७७३९ ता निउणमती एसो गुणाणुरागी य चायसीलो य । तो अरिहइ देवाओं सम्माणपयं इमो गरुयं ।। ७७४० ।। इसिरिवम्मकुमारस्स जंपियं निसुणिऊण नरनाहो । उव्वहमाणो हिययम्मि विम्हयं चितए एवं || ३७७४१ ।। जइ इह समए कुमरो सिरिवम्मो कवि नागओ होतो । वासवदत्तातीणं निवईणं मंडलेहितो ।। ७७४२ ।। तो अविवेण अहं गरुयमकज्जं कुणंतओ इण्हि । पुव्वज्जियं असेसे पि नियजसं लहु फुसंतो य निक्कारणको वेणं वंठ सगुणं पि निग्गहिउमेयं । वित्थारंतो सयलम्मि मंडले नियमकित्ति च ता एम्म समथे गुणनिलए नंदणम्मि चिट्ठते । एयावेक्खाए निग्गुणस्स स्स मह इहिं नखणं विखमं काउं रज्जं ससिणो उ ताव पहपसरो । जाव न उएइ सूरो तम्मि टिए सो न किपि भवे ।। ७७४६ ।। इचितिऊण पुच्छर पुणो वि राया कुमारसिरिवम्मं । दिन्नो वंढेण नियंगलग्गझगओ वि एईए ।। ७७४७ ।। गहिओ जयंती महापसाओ त्ति सिरठियकराए । जं पुण मए विइन्नं वत्थाहरणाइ बहु तीसे ।।७७४८ ।। तमणायरेण गहियं तीए दूरे पसायभणणं तु । कहसु कुमार ! निमित्तं किमिह महासंसओ मज्झ ।।७७४९।। अह विन्नवइ कुमारो देव ! इमं नज्जए पयडमेव । सगुणो जणो गुणनुत्तणेण तूसइ परस्स परं ।। ७७५०। थेवं बहु व दिन्नं अवेक्खए नेय तेण वंठस्स । गुणजाणगत्तणेणं तुट्टाए तीए तं विहियं ॥ ७७५१ ॥ नियविवावेक्खाए चाओ वि बहू विसज्जिओ तेण । परिहाणप्पावरणो इरित्तसव्वस्स दाणेण ||७७५२।। देवेण पुणो तीसे विन्नाणगुणं अजाणिउं चाओ । दिन्नो सो वि न विउलो नियविहवस्साणुसारेण ।।७७५३।। तो एवं मुणिऊणं देवेण न रूसियव्व मेएसि । दोन्हं पि नट्टियाए वंठस्स य दोसरहियत्ता ।।७७५४ । एवं कुमारवयणं सत्तियं निसुणिऊण नरनाहो । गयसंसओ स सुट्ठो कुमारमेवं तओ भणइ ।।७७५५ ।। देह पुण नट्टयाए पसायमिहि पि समहियं अन्नं । बेइ कुमारो इण्हि पि तुम्ह दाउं पुणोऽणुचियं ॥ ७७५६।। अहमेव नियावासे नेऊणं संपयं पि एतीए । देवकयपसायसमं कंचि वि चायं पयच्छस्स ।। ७७५७ ।। ।। ७७४३ ।। ।। ७७४४ ।। ।।७७४५ ।। १. मणो पा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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