Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 258
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं ३२५ पाएण इह मणुस्सा पुराणगोहूमसालिजवभत्तं । भुंजंति पियंति तहा कूवसमुत्थं जलं लहुयं ।।७२३३।। परिसुक्कं लहुनिद्धं उण्हं लवणंबिलं च सेवंति । जेण न कुप्पइ पवणो न पीणसोतं व इयरं पि ।।७२३४।। चिट्ठति अदूरासनमुक्कअंगारसगडिए भवणे । घंसणउव्वणन्हाणधूमगंधागुरुपिया य ।।७२३५।। आरूढा जंति करेणुयासु वरवत्थकुसुमकयसोहा । वायाममक्ककिरणे पयगमणं दियहसयणं च ।।७२३६।। नइजलपाणं अइमेहुणं च वज्जति अतिदवाहारं । इय अतिकंते पाउसकालम्मि समागओ सरओ ।।७२३७।। मेहावरणविमुक्कं जायं सयलं पि नहयलं विमलं । परिमुक्कपंकपडला जाया मग्गा वि पाएण ।।७२३८।। कालवसा जइ वि रवी मेहेहिं कओ तिरोहियपयावो। कइवि दिणाई तह विहु पुणो वि जाओ दुगुणतेओ।।७२३९।। सविसेसं (सं) पत्तो जुन्हाविमलत्तणं मयंको वि । कुसुमियकासपयासियमुहीउ जाया दिसिवहूओ ।।७२४०।। बहुसलिलपाणवसओ उट्ठियसासं वसुंधरं दटुं । उन्हुण्हेहिं करेहि फासइ निच्चं सहस्सकरो ॥७२४१।। संपन्नतंदुलाई दियंतपसरंतपरिमलगुणाइं । सालिवणाई कीरा सरंति पायडियमुहराया ।।७२४२।। अब्भवहरिऊणं पइदिणं ति सुस्साउ अहिणवंकूरं । उवचयसंपत्तपयं जायं गोमंडलं सयलं ॥७२४३।। चत्तकलसुत्तणाइं अंतो विमलत्तणं पवन्नाई । सेवंति रायहंसा जलासयाई पि नीसंकं ॥७२४४।। उम्मग्गपरिब्भमणं पुव्विल्लं अत्तणो सरेऊण । लज्जाए व नईओ परिसंकुइयाओ जायाओ ।।७२४५।। इह कुव्वंति मणुस्सा विरेयं (गंय? ) रुहिरकड्ढणं पायं । अब्भवहरन्ति सीयं लहुयं अन्नं च पाणं च।।७२४६।। गोहूमसालिसट्ठियजवमुग्गे सक्करं महुपडोलं । दक्खं साउ कसाए तित्ते य रसे निसेवंति ॥७२४७।। रविकरतत्तं दियहे निसाए पल्हाइयं ससिकरेहि । सलिलं पियंति निव्विसमगत्थिउदएण निम्मवियं ।।८२४८।। सिसिरोसीरविलित्ता पलहुयविमलंबरा सकुसुमा य । सेवंति चंदजुण्हं उण्हहरं जामिणिमुहम्मि ।।७२४९।। तित्ति दहिआयवखारतेल्लवससम्मुहानिलं मज्जं । दियह निद्दाकरणं वज्जति तु सारसंगं च ।।७२५० ।। एवं पयट्टमाणे समए सरयस्स कुमरसिरिवम्मो । दंतउरे गंतुमणो लद्धावसरो निवं जाव ।।७२५१ ।। किर विनविस्सइ तओ हयसाहणिएण तत्थ आगंतु । विन्नत्तं देव ! जहा सारंगतुरंगमो इण्हि ।।७२५२।। अइसयदुट्ठो जाओ दंतेहिं पुरोठियं नरं डसइ । पच्छागयं तु निहणइ पच्छिमपाएहि समतालं ।।७२५३।। वल्लीए तेण इमं छोडेउं को वि सक्कए नेय । दूरट्ठिएहिं उल्लालिऊण निक्खिप्पए घासो ।।७२५४।। तस्स पुरो पाणीयं निक्खिप्पइ गरुयकट्ठजोएण । अढोइज्जइ खाणं पुण न को वि बंधइ दिणं तइय ।।७२५५।। पुरओ पुण बज्झंतं कहकह वि हु आसि जाव दुसृत्तं । थेवं चिय पयडतो इन्हि माणाहिओ जाओ ।।७२५६।। इय हयसाहणिएणं विन्नत्ते नरवई कुमरभणियं । पुव्वुत्तं सरिऊणं विम्हयपूरिज्जमाणमणो ।।७२५७।। सिरिवम्मकुमारेणं सह गंतुं मंदुराए तं तुरयं । कहियसरूवं दटुं तं कुमरं एवमाइसइ ।।७२५८।। जह चेव तए कहियं पुरा सरूवं इमस्स तुरयस्स । तह चेव य तं जायं ता सिक्खावेहि तुममेयं ॥७२५९।। रन्नो उवरोहेणं तं तह पडिवज्जिऊण कुमरेण । विन्नतं देव ! जहा वित्ते सरए इय करिस्सं ।।७२६० ।। जम्हा गिम्हाईयं उउत्तिगं सव्वसत्थयारेहिं । हयवाहणे निसिद्धं हेमंताइतियमणुनायं ।।७२६१।। रना भणियं इन्हि सरयस्स तिभागमेव अवसेसं । तम्मि गयम्मि तुरंगो वाहेयव्वो तए एसो ।।७२६२।। किंतु परं इह एयं न को वि सक्किहइ खाणपाणेहिं । परिपालेउं तम्हा निययावासम्मि नेहि तुमं ॥७२६३।। अह रन्नो वयणाणंतरं पि कुमरेण नियनरा तरुणा । बत्तीसं आहूया मल्ल व्व महाबलिट्ठयरा ।।७२६४।। चत्तारि खाइराओ दीहयराओ दढाओ वलियाओ। आणावेउं तत्तो एक्केक्का अप्पिया वलिया।।७२६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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