Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२३२
सिरिवम्मकुमारचरियं
तयणु महाबलराया जंपइ पढमं पि अम्ह सचिवेण । आसि निसिद्धं एयं परं मए एरिसं विहियं ।।७४६२।। इण्हि तु तस्स दोसे दिट्टे सचिवेण अहमुवालद्धो । तो तेण समं सुवियारमंतिणा जंपउ कुमारो ।।७४६३।। तो तुह जस्स य जं होइ सम्मयं तं अहं अणुढेमि । अह एयं निववयणं पडिवज्जइ कुमरसिरिवम्मो ।।७४६४।। अह राया सुवियारं मंतिं हक्करिउं भणइ एवं । कुमरसुदंसणविसए सद्धि सिरिवम्मकुमरेण ।।७४६५।। तुम्हेहि मंतिऊणं जं किंचि वि उभयसम्मयं होइ। तं अम्ह कहेयव्वं इय भणिउं उट्ठियं तत्तो ।।७४६६।। जवणियपिहिए सयणे गंतूण निवज्जए तयासन्ने । मंतिकुमराण वयणं जंपिज्जतं निसामेइ ।।७४६७।। चितइ य अम्ह मंती नियबुद्धीए गुरुं पि तियसाण । मन्नइ जडं व इण्हि नायव्वमिमस्स सामत्थं ।।७४६८।। मइनिज्जियसुरगुरुणा कुमरेण समं पयंपमाणस्स । कुमरेण मंतिणा सह काऊणं कं पि आलावं ।।७४६९।। तक्कालुचियं अन्नं पत्थुयवत्थम्मि तो पयंपेइ । सचिव ! सुदंसणविसए को तुम्हं फुरइ अभिपाओ? ॥७४७०।। जोग्गो रज्जस्स इमो अहव न जोग्गो? तओ भणति मंती । कुमर! जया होसि तुमं तया न अन्नस्स अवयासो कज्जविणिच्छयकरणे इय भणिए मंतिणा भणइ कुमरो। धणियं पि सुमइणो जइ अम्हे तह वि हु सिसुप्पाया तुम्हे परिणयमइणो थेरा बहुदिट्ठकज्जपरिणामा । जं जाणह तं अम्हे कहमवि नो जाणिउं सक्का ।।७४७३।। तो मंती भणइ जहा वलिपलियाइं न कि पि जाणंति । कज्जविणिच्छयजणणी पन्ना सा तुम्ह अइविमला।७४७४। थेरेहिं वि अम्हेहिं वइरपरिक्खा न सक्किया काउं । तुम्हेहि दिट्ठमेत्तम्मि तम्मि निव्वाडियं तत्तं ।।७४७५।। तो जंपइ सिरिवम्मो पुणरुत्तेणं किमेत्थ भणिएण। एयम्मि रायवंसे कमेण तुम्हाण मंतिपयं ।।७४७६।। ता इह कज्जं अन्नं पि सह तए होइ मंतिउं उचियं । कह पुण रज्जारिहपुरिसमंतणं होति तुह बझं ।।७४७७।। जम्हा सुहमसुहं वा इहच्चयं तुम्ह सव्वमारुहइ । आगंतुया उ अम्हे विणासिउं चेव वच्चामो ॥७४७८।। न उण यिण? कज्जे अम्हाणं किंचि एइ मज्झम्मि। तुम्हाणं चिय चिंता संजायइ तत्थ सव्वा वि ।।७४७९।। किच महाबलरन्नो तुम्हाणमएण सव्वमवि कज्जं । कायव्वं पडिहासइ न अन्नहा निच्छओ एसो।।४८०।। तो सुवियारो पभणइ रन्ना सह को वि निच्छओ तह वि । तुम्हेहि अत्थि विहिओ इह कज्जे अम्ह वि परोक्खे ।। कुमरो जंपइ काउं इच्छामो निच्छ्यं बहुं अम्हे । किंतु महाबलराया तुम्हेहिं विणा न तं कुणइ ।।७४८२।। पभणइ पुणो वि मंती रन्ना सह तुम्ह कोवि संलाबो । जो जाओ इह कज्जे तं साहह ताव पढमं पि ।।७४८३।। तो कुमरो तं साहइ सव्वं पि हु तस्स मंतिणो पुरओ । ता जाव तत्थ रन्ना मंती हक्कारिउं वुत्तो ।।७४८४।। अह पभणइ सो मंती आयन्नसु कुमरा कारणं जमिह । कुमरसुदंसणविसए पडिसेहे मज्झ कायव्वे ।।७४८५।। दंतउराओ दाहिणदिसाए चउकोसअंतरे अत्थि । खीम्बजदेवीए पुरं जणसंकिन्नं सपायारं ।।७४८६।। तीसे देवीए भोप्पयस्स आएसकारओ एक्को । तस्स य धूया सा बालविहविया दुलहिया नाम ।।७४८७।। सा य सहावेणं चिय रूवेण मणोहरा विसेसेण । जोव्वणमारोहंती तओ पिया से विचितेइ ।।७४८८।। जह देमि कस्सइ इमं घरगरणेणाणुरूवपुरिसस्स । नाऊण तस्स भावं भोप्पेण तओ निसिद्धो सो।।७४८९।। भणियं च जहा एयं अहं सहत्थेण कस्सइ नरस्स । दाहामि तए चिंता कायव्वा का वि न इमीए ।।७४९०।। भोप्पयभएण अहसा तीसे जणएण कस्स वि न दिन्ना। जम्हा लद्वमणो सो तीसे सयमेव संजाओ ।।७४९१।। धूयत्ताए संभासिऊण समुहेण तंसि सुत्तम्मि । जोब्वणपत्तं पि तओ न सेवए लोयलज्जाए ।।७४९२।। एमेव दिट्ठिछूहं धरेइ सयलं पि सो अहोरत्तं । आएसदाणमिसओ तह चेव गमेइ दियहाइं ।।७४९३।। वत्थाईयं पि न देइ सुंदरं भोप्पओ तओ तीसे । जमिमा कयसिंगारा लोएण विणासियव्व त्ति ।।७४९४।।
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