Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिवम्मकुमारचरियं
तो आह निवो कुमरं नटुं चिट्ठइ न कि पि अज्ज वि य । जइ तुम्ह इमं वइरंपवरं पडिहाइ नो कह वि ।।७३९६।। तो मुल्लं वारिज्जइ दिज्जतं तस्स वइरवणियस्स । तो जंपइ सिरिवम्मो न होइ जुत्तं इमं मज्झ ।।७३९७।। देवस्स विसेसेणं न जुत्तमेयं तु छुहियरंकस्स । कवलो मुहप्पविट्ठो जं कड्ढिज्जइ पुणो बाहिं ।।७३९८।। तो नरनाहो चितइ जुत्तमिणं जंपियं कुमारेण । किंच मए मुक्कम्मि वि इमम्मि वइरम्मि नो लब्भं ।।७३९९।। किंचि वि तस्स समीवे मुल्लं वणिजारयस्स जं तेण । नियधुत्तिमाए छलिए अहं भयंतेण इय वयणं ।।७४०० ।। सव्वसहापच्चक्खं जं किर वइरं मए इमं दिन्नं । देवस्स सभत्तीए ता मुल्लमहं न गिन्हिस्सं ॥७४०१॥ जइ देइ पसाएणं देवो गिण्हामि तो अहं कणयं । इय पडिवज्जतेणं मए वि इह हारियं चेव ।।७४०२।। ता कुमर जंपियं चिय पमाणमिह कीरमाणमुचियं मे । इय चिंतिऊण जंपइ राया कुमरं तओ एवं ।।७४०३।। जइ वि न पवरं होही वइरमिमं तह वि तस्स पासाओ। वणिजारयस्स मुल्लं अहं न उद्दालइस्सामि ।।७४०४।। ता कहसु निव्विसंकं कुमार ! दोसं इमस्स वइरस्स । इय जंपियम्मि रन्ना जहट्ठियं कहइ सिरिवम्मो॥७४०५।। जह लोहसंभवमिमं वइरागारं धरेइ. पडिपुन्नं । न उणो जच्चं वइरं एयं वइरागरप्पभवं ॥७४०६।। भणइ निवो अतिगरुयं कस्स वि विन्नाणमेयमेरिसयं । लोहेण जेण घडियं वइरं बहुलोयदुल्लक्खं ।।७४०७।। तो सिरिवम्मकुमारो जंपइ लोहेण न घडियं एयं । देव ! सयं निप्फन्नं विहिवसओ लोहधाउम्मि ॥७४०८।। आह निवो इह अह्र कुमार! को पच्चओ तओ कुमरो। विन्नवइ निवं जह पच्चयं पि देवस्स दंसिस्सं ।।७४०९।। वणिजारयं समीवे काऊण जहा वियाणए सो वि। अह रायाएसेणं पत्तो वणिजारओ वि तहि ॥७४१०।। पुट्ठो निवेण एसो गहियं कणयं तए ? इमो आह । देवपसाओ सो मंगलं ति गहिओ मए सिग्धं ॥७४११॥ तो रन्ना नियहियए हसियं एएण तस्स वयणेण । जह एस संकियमणो करेइ इय अत्तणो रक्खं ।।७४१२।। इय चितिऊण रन्ना पयडं चिय सो तओ इमं भणिओ। तुह वइरस्स परिक्खं करिस्सए संपयं कुमरो॥७४१३।। सो आह देवसंतियमेयं वइरं न होति मह तणयं । तो हं न पुच्छियव्वो इह देवो कुणउ नियरुइयं ।।७४१४।। अह रायाएसेणं तेल्लं नवलोणभरियभंडं च । कुमरो आणावेउं तं वइरं करयले गहिउं ॥७४१५।। सव्वसहापच्चक्खं भणइ जहा लोहसंभवं एयं । वइरं न होइ जच्चं इमा परिक्खा इमस्स तओ ॥७४१६।। तेल्लेण मक्खिऊणं एवं खिविऊण लोणमज्झम्मि । धरिऊण अहोरत्तं कड्ढयव्वं दिणे बीए ॥७४१७।। लग्गिस्सइ जइ कट्टो एत्थ तओ नुण लोहमेवेयं । अह न वि लग्गो कट्टो तो जच्चं चिय इमं वइरं ।।७४१८।। इय भणिऊणं तेल्लेण मक्खिउं तं खिवेइ लोणम्मि । वत्थेण लोणभंडस्स बंधए तो मुहपएसं ।।७४१९।। दावेइ गंठि मुदं वणिजारयपासओ तओ तत्थ । तदुवरिजलद्दमट्टियपिंडे दावइ निवइमुटुं ।।७४२०।। अत्थाणसमीवट्ठियधवलहरोवरयमज्झभायम्मि । तं भंडं ठविऊणं दावइ मुहूं कवाडेसु । ७४२१।। बाहिम्मि जामइल्ले ठावति नरनाहसंतिए तत्तो। उट्ठइ सह नरवइणा कुमरो वच्चइ नियावासे ।।७४२२।। बीयदिणे अवरण्हे अत्थाणगए महाबलनिवम्मि । ओवरयदारमुदं विहडावेऊण मज्झाओ ।।७४२३।। बाहिं कड्ढावेउं भंडं लोणस्स तस्स मुहमुहं । फेडावेऊण तओ तं वइरं कड्ढिउं तत्तो ।।७४२४।। दटुं विलग्गकट्टं कुमरो वणिजारयस्स दंसेउ । अप्पइ निवस्स हत्थे सो अप्पइ सव्वसम्भाणं ।।७४२५।। अह सो रायाइजणो तं तह दड्ठण अवितहं जायं । कुमरेण भणियवयणं विम्हइओ धुणइ सीसाइं॥७४२६।। भणइ य अहो अउव्वं रयणपरिक्खासु कि पि कुसलत्तं। सिरिवम्मस्स कुमारस्स जं न दीसइ कहिं पि जए।।७४२७। इय जंपंतम्मि सहायणम्मि वणिजारओ विलक्खमुहो। विन्नवइ निवं मह देव! जो कओ को वि तुम्हेहि।।७४२८।।
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