Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
२३३
देवीपुरस्स तस्स य अदूरदेसम्मि अत्थि वणसंडं । आरन छाणयाइं आणेउं जाइ सा तत्थ ।।७४९५।। तीसे तत्थ गयाए अन्नम्मि दिणे महाबलनिवो वि । तत्थगओ आहेडयकज्जेण तओ जणं सेसं ।।७४९६।। तेण ठविऊण दूरे धणुबाणकरेण अग्गओ गंतुं । जालीए पविसेउं हरिणाण तिरोहिओ अप्पा ।।७४९७।। तत्थ ठिओ सो राया तं पासइ दुलहियं जहिच्छाए। छाणयगहणनिमित्तं हिंडती अडइयनियंगं ।।७४९८।। तो हरिणहणणहेउं जो तत्थ गओ किरासि नरनाहो । सो चिय सयं विणिहओ मयणेण सुतिक्खबाणेहिं ।। तो जालीनियडट्ठियछाणयगहणत्थमागयं बालं । तं कामाउरहियओ सयं पवेसेइ तत्थ निवो ॥७५००।। नियमुहखित्तं कप्तरखंडमद्धं करेण गहिऊण । तीसे मुहम्मि खिविउं तं रमइ निवो जहिच्छाए ।।७५०१।। . सुरयपसंगे वित्ते तं पुच्छइ बालियं निवो तत्तो। कासि तुमं ससिवयणे ! किं ते नामं च ? इच्चाई ।।७५०२।। अह सा निवस्स पुरओ पुव्वृत्तं नियसरूवमक्खेउ। सव्वं पि तओ सिग्धं सजलाई करेइ नयणाई ।।७५०३।। तो राया तं पुच्छइ कीस तुमं दुलहिए ! सजलनयणा । सा कहइ निवस्स तओ में परिभत्तं वियाणेउं ।।७५०४।। भोप्पो दढं हणिस्सइ रन्ना भणियं महाबलो नाम । निवई अहं कहिज्जसु तओ तुमं पुरओ मं ॥७५०५।। नामम्मि मज्झ गहिए न भणिस्सइ कि पि सम्महं तुह सो। सा भणइ एत्थ वयणे कह होही पच्चओ तस्स।।७५०६।। तो रन्ना नामंकिय नियमुहारयणमप्पियं तीसे । भणियं च इमं दटुं भविस्सए पच्चओ तस्स ।।७५०७।। अह सा पसन्नवयणा महारयणं निवाओ गहिऊण। नियपरिहणगंठीए गोवेउं जालिमज्झाओ ।।७५०८।। नीहरिऊणं छाणयपिडयं आरोविऊण सीसम्मि । पत्ता भोप्पयभवणे एगते एडए पिडयं ॥७५०९।। दळूण भोप्पओ तं हक्कारइ जाव अप्पणो पासे । ताव निवअंगसंभोगसंभवो परिमलो सुहओ ।।७५१०।। तीसे देहाओ भोप्पएण अग्घाइओ तओ तेण। घडिया भिउडी भीमा भणिया य इमा जहा दुट्टे ! ।।७५११।। पाविठू ! निल्लज्जे ! किमज्ज एयं तए समायरियं । बाहिम्मि निग्गयाए जमेस गंधो तुह उवेउ ।।७५१२।। तीए भीयाए तओ जहट्ठियं सव्वमेव अक्खायं । पच्चयहेउं मुद्दारयणं च पयंसियं तस्स ॥७५१३।। एत्थंतरम्मि केणइ कस्स वि कहियं जहा निवो अज्ज । देवीवणसंडे आगओऽत्थि आहेडयनिमित्तं ।।७५१४।। तं वयणं सोऊणं मुद्दारयणं च तं निएऊण । सो जायपच्चओ चत्तसव्वकोवो दुयं जाओ ।।७५१५।। अह तीसे पासाओ गहिउं तं रायमुडियारयणं । एगते गोवेउं धारइ सो अतिपयत्तेण ।।७५१६।। तह दुलहियं पि रागं समुज्झिउं उज्जुएण चित्तेण। धूयं व नियं पासइ सगोरवं कारइ न कम्म ।।७५१७।। राया पुणो वि सारं एईए करिस्सए इय मतीए । आहारवत्थमाइ पि तीसे सो देइ सारयरं ।।७५१८।। दुलही विउ रिउण्हाया आसि दिणे तम्मि जम्मि परिभुत्ता । रन्ना सा वणसंडे संभूओ तेण गब्भो सो ।। पाउन्भूयं गब्भं नाऊणं भोप्पएण तो पुट्ठा । कस्सेसो तुह गब्भो तो कहइ जहट्ठियं एसा ॥७५२०।। वच्चंतेसु दिणेसु दाहिणकुच्छीए डोहलेणं च । नाओ गब्भे पुत्तो निवस्स जाणाविओ तेण ।।७५२१।। रन्ना वि सपच्चयवयणसवणसंभरियनिययचरिएण । पुत्तरहिएण दुलही तत्तो आणाविया एत्थ ।।७५२२।। पूरियडोहलयाए तीसे पडिपुन्नमासदियहेसु । जाओ सुदंसणो कारिओ य काले कलग्गहणं ॥७५२३।। एसो थेवं पयडियदुविणओ तह वि वल्लहत्तेण। मज्झ निवारंतस्स वि जुवरायपए कओ रन्ना ।।७५२४।। कलगहणं कुव्वते इमम्मि पियदंसणा समुप्पन्ना। काराए तए खित्ते उप्पन्नो हरिसदेवो वि ।।७५२५।। एस सुदंसणकुमरो दिणे दिणे दसए य दुव्विणयं । जइ सिक्खवह नरिंदो तहा वि सिक्खं न य करेइ ।।७५२६।। तत्तो य वसंतसिरीगहणनिमित्तं जया इमो चलिओ। तइया निवेण खित्तो देसो एयस्स कोढाए ।।७५२७।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376