Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
२२६
सिरिवम्मकुमारचरिय अट्ठन्हें अट्ठन्हें तेसिं पुरिसाण हत्थजुयलेसु । चउरो चउरो पुरिसा लग्गा एक्केक्कवलियंते ।।७२६६।। चउसु वि दिसासु तत्तो पविसेउं मंदुराए जुगवं पि । भीडंति तं तुरंगं चउसु वि गत्तेसु अइगाढं १७२६७।। अट्ठउडकप्पडेणं वाम पाणिं पवेढिऊण तओ । गहिऊण दाहिणेणं करेण कुमरो खइरकीलं ।।७२६८।। गंतूण सयं तुरयं मुहकुहरे गिन्हए तलविभाए। वामकरेणं दाहिणकरेण कीलं खिवइ वयणे ।।७२६९।। तिरियं करजुयलेणं तत्तो तं गिण्हिउं उभयभाए । अच्छीसु तस्स पढें बंधावइ चउपुडं तत्तो ।।७२७०।। अतिथूलकक्खडेहिं वालागरडेहिं दोहिं दोरेहिं । बंधावेऊण मुहं धरावए दोसु पक्खेसु ।।७२७१।। एक्केण दावणेणं अग्गिमपच्छिमपयाइं दाहिणओ । बंधावइ दुइएणं अग्गिमपच्छिमपए वामे ।।७२७२।। फेडावइ वलियाओ तत्तो चउरो वि तुरयपासाओ । छोडावइ वल्लीए सारंगतुरंगमं तत्तो ॥७२७३।। नियआवासे नेयाविऊण मुहरज्जुबद्धपट्टेहिं । दोहिं उ चम्ममएहिं बंधावइ दोसु पक्खेसु ।।७२७४।। ऊरुट्ठियवल्लीए तह कह वि जहा सुहेण चालेइ । गीवं उभओ पासेसु देहकंडूयणनिमित्तं ॥७२७५।। वालागरडे दोरे छोडावइ दो वि वयणबंधाओ । ओसारावइ तह दिट्ठिबद्धयं पट्टयं तस्स ॥७२७६।। खद्धं खद्धं घासं खिवावए तस्स अग्गओ उचियं । दूरट्ठियपुरिसाणं पासाओ अइपयत्तेण ।।७२७७।। चम्ममयकुंडियाए चम्ममयाइं करेवि कडयाई । सलिलस्स तं भरेउं खिविउं कडएसु दढवंसं ॥७२७८।। दोसु विभाएसु दुवे समत्थपुरिसा तमुक्खिवेऊण । तस्स तुरयस्स पुरओ सणियं नेऊण ठावेंति ।।७२७९।। खाणं पि सलिलनाएण पइदिणं तस्स दिज्जइ हयस्स । इय सारंगं तुरयं कुमरो पालइ अहन्नदिणे ॥७२८०।। आरुहिउमियरतुरयं बाहिं नयरस्स परिभमेऊण । हयवाहणस्स उचियं ठाणं अवलोयइ विवित्तं ।।७२८१।। जत्थ विहारो नयरं आरामो देउलं मढो वडवा। रायपहो पाहाणा कंटयवम्मी य गड्डाओ ।।७२८२।। ऊसरं विय सरिसेलो हत्थिप्पमुहं च तुरयतासयरं । एएसि मज्झाओ नियडं किंचि वि न जत्थत्थि ।।७२८३।। अंतो कढिणा उप्पि पंसुयपयरेणपेलवा पुहई । न य उन्नया न निन्ना विवज्जिया खाणुरुक्खेहिं ॥७२८४।। तं ठाणं दळूणं विनविऊणं नरेसरं तत्तो । धणुहसयतियपमाणे समचउरंसम्मि भूभाए ।।७२८५।। कारावइ परिवेढं नवरयणिपमाणवेणुवाडीहिं । फेरावइ जवणीओ बाहिं जह को वि न हु अन्नो ।।७२८६।। अभितरम्मि पासइ कीरंतं किपि तह तयासन्नं । गुड्डरमंडवियाई नियआवासं दयावेइ ।।८२८७।। तीसे य कारियाए अहिणवयरवाहवाहियालीए । पुव्वदिसिवंकदारं सतोरणं कारए एगं ॥७२८८।। अन्नदियहम्मि सरए वित्ते हेमंतउउसमारंभे । पायकयदामणं विय सारंगतुरंगमं कुमरो ।।७२८९।। दावेउं अविलाणं वयणे चउपासठवियपुरिसेहिं । हत्थतलगहिय दीहरअतिनिठुरचम्मलट्ठीहिं ।।७२९०।। परिवेढियमुभओ पासधरियअविलाणरस्सि हत्थेहिं । चालिज्जंतं दोहिं उ तरुणनरेहि समत्थेहिं ।।७२९१।। मत्तं व वणगइंदं सुदुद्धरं नियलियं चउपएसु । कुडिलाए दिट्ठीए पासंतं पासठियलोयं ॥७२९२।। सणियं आणेऊणं पुव्वदुवारेण वाहियालीए । अंतो परिसेऊणं अतिदुवाणं तुरंगाणं ॥७२९३।। सत्थभणिएण सिक्खावणविहिणा तह नियाभिपाएण । दाऊण वालदोरिय जंतं पुरओ य पच्छा य ।।७२९४।। छोडावेउं पयदावणाई पारंभिओ पुलावेउं । दंसेइ दुट्ठिमं जम्मि जम्मि अंगम्मि सो तुरओ ।।७२९५।। हम्मइ तहिं तहिं चिय कसाभिघाएहिं पासपुरिसेहिं । जंतनि जंतणयाए बाढं छिज्जइ य देहम्मि ।।७२९६।। एएण पओगेणं एगंतरवासरम्मि पुव्वण्हे । खेडिज्जइ ते (सो) तुरओ पोसिज्जंतो पयत्तेण ॥७२९७।। नवविहियवाहियालीमज्झम्मि न अत्थि कस्स वि पवेसो । मोत्तूण अप्पनवमं तं कुमरं तं च नवतुरयं ॥७२९८।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376