Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं एत्थंतरम्मि तत्तो समुट्ठिऊणं गओ सजणणीए । सम्मि माहवो तेण पत्थिया भोयणं एसा ।।५४४४।। तीए भणियं पुत्तय ! लहुए नियभाउयम्मि छुहियम्मि। तुह समुचियं न भोत्तुं जेट्ठस्स सहोयरस्स तओ ।।५४४५।। तेण भणियं मए सो आहूओ परमुवागओ ने य । तो जणणीए भणियं कि सो चिट्ठइ पकुव्वंतो ।।५४४६।। तेण भणियं न किंचि वि एमेव य सो महाई पासंतो। चिट्ठइ उज्झाय-निवाण भासमाणाण अन्नोन्नं ।।५४४७।। तीए पूणा सो भणिओ निहयं हक्कारिऊण आणेहि । मइवद्धणसिरिवम्मे दोन्नि वि तं मज्झ वयणेण ।।५४४८।। जेण तए सह ते वि हु दोवि कुमारा करेंति कि पि लहुं । भोयणमेत्तं जह पित्तदूसणं दीवए ने य ॥५४४९ ।। अह माहवेण गंतु ते पत्तेयं पि कन्नलग्गेण । भणिया दोन्नि वि जुगवं उज्झायमुहं पलोयंति ।।५४५०।। उज्झायस्स वि तो माहवेण होऊण कन्नमूलम्मि । साहियमेयं तेणावि ते दुवे सन्निया तत्तो ।।५४५१।। मइवद्धण-सिरिवम्मा समुट्ठिया झत्ति तो निवकुमारो। रन्नो मुहम्मि दिट्ठि खिवइ तओ बेइ उज्झाओ ।।५४५२।। रन्ना संपइ अम्हं समप्पिओ तंसि तो तए भणियं । अम्हं चिय करणिज्ज रन्नो वि सयं भणंतस्स ।।५४५३।। उज्झायवयणमेयं समत्थियं पत्थिवेण तो झत्ति । दो वि चलिया कुमारा पडिसेहेउं इमं भणिया ॥५४५४।। जयसम्मेणं तुब्भे गिन्हह पढम सरस्सई सेसं । तीसे पभावओ जह विसेसओ होइ तुम्ह सुयं ।।५४५५।। देवी पडिमाए पुरओ आणावेऊण केत्तियाइं च । सीसाण समीवाओ थालाई तेसि मज्झाओ ॥५४५६।। एक्क दक्खा थाल अप्पेउं पेसिओ नरो एक्को । तेहि समं भज्जा सोमसिरीए समीवम्मि ।।५४५७।। सा भाणियाय एवं पढमं पि इमं सरस्सई सेसं । दाऊण कुमाराणं दायव्वं भोयणं सेसं ।।५४५८।। तेसु गएसु तत्तो नीसेसाई पि सेसथालाइं । पविभंजिउं पयच्छइ सेसाणं सव्वसीसाणं ।।५४५९।। तो जयसम्मेण पुणो पारद्धा पत्थुया कहा कहिउं । नरपुंगवस्स पुरओ पुहइवइणो जहा देव ! ॥५४६०।। विज्जागहणम्मि समुज्जयस्स पुरिसस्स दस गुणा होति । पंचेवयबाहिरिया अब्भितरया वि पंचेव ।।५४६१।। आरोग्गबुद्धिविणया उज्जमसत्थाणुरायनामाणो । पंचवि अब्भितरया बाहिरया पुण इमे अन्ने ।।५४६२।। पोत्थयमायरिओ तह निवासठाणं सहाय आहारो । एएसु बुद्धिपमुहा चिट्ठति गुणा नव कुमारे ।।५४६३।। गंभीरया गुणो पुण बालस्स वि को वि निरुवमो चेव । एयस्स देवगुणमंदिरस्स सिरिवम्मकुमरस्स ॥५४६४।। कंठागए वि जाए जं एसो माइयाए पाढम्मि । गिन्हइ दिज्जंतीओ परिवाडीओ थिरप्पगई ॥५४६५।। पुढेण तओ कहियं कंटगया मज्झ माइया जाया । परिवाडीए भंगभएण अक्खियं न उण सयमेव ।।५४६६।। इच्चाइकुमरपन्नाइ गुणगणं तस्स वन्नयंतस्स । जयसम्मस्स नरिंदो निसुणतो जाइ नो तित्ति ।।५४६७।। एत्थंतरम्मि पत्तो तत्थ कुमारो वि भोयणं काउं । अह सो निवेण भणिओ वच्छ ! तुम चिट्ठ एत्थेव ।।५४६८।। आराहतो निय गुरुपयाइं गिन्हंतओ कलानिवहं । जइया एस विसज्जइ तइया तं निय गिहं एही ।।५४६९।। इय सिक्खविउं कुमरं मोत्तूणं तस्स सनिहाणम्मि । परिवारं च समुचियं सहियं अवरोहदासीहिं ।।५४७०।। जयसम्मेण वि कुमरस्स दंसियं मंदिरं चउदुवारं । सययं निवासठाणं दो भूमीयं सुवित्थिन्नं ।।५४७१।। तो उठ्ठिऊण रन्ना सयमेव पलोइयं इमं गंतुं । जयसम्मो वि समं चिय नरवइणा तत्थ संपत्तो ॥५४७२।। भणिओ इमो निवेणं उज्झायनरिंदमंदिरसमाणं । गिहमेयं अन्नेहिं वि भूसियं भूरिभवणेहिं ॥५४७३।। आह तओ जयसम्मो कलिंगदेसाउ आगओ आसि । को वि पुरा निवपुत्तो तस्स निमित्तं तओ एयं ।।५४७४।। तुम्हाण पुव्वपुरिसेण केणई कारिऊण से दिन्नं । ठाऊण इह चिरं सो पिउणा हक्कारिओ पच्छा ।।५४७५।। रज्जोववेसणत्थं गओ सदेसम्मि ठाविओ रज्जे । तो अम्ह पुब्वपुरिसस्स पत्थिवेणं इमं दिन्नं ।।५४७६॥
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