Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिवम्मकुमारचरिय
ता तुज्झ पत्तयालं करणिज्जं संपयं किमेत्थ तओ । जंपेइ वसंतसिरी सयंवराहं गमिस्सामि ॥ ५७७० ॥ तायं विन्नविऊणं ठाटियस्सेव तस्स कुमरस्स । तो वणसिरीए भणियं जइ तत्थ गया तुमं कह वि ।। ५७७१ ।। तस्स न रुच्चसि चित्ते भविस्सए तो अईव लहुयत्तं । तो नियरूवं लिहिऊण तस्स पेसिज्जए इन्हि ।।५७७२ ।। तो इस दट्ठणं तुहरूवं होइ साहिलासमणो । तो इह सयं पि एही अहवा वच्चसि जइ तुमं पि ।। ५७७३ ।। तत्थ तहा विहु लठ्ठे तो एवं जंपए वसंतसिरी । एवं तया हु कीरइ होइ जया संसओ मज्झ ।। ५७७४ ।। जाव पुणनिच्छ ओ मे एसो च्चिय इह भवम्मि मह भत्ता । ताव न को वि वियप्पो कीरंतो सुंदरी होइ ।। ५७७५।। किं च सिरिवम्मकुमरो गरुओ दक्खिन्नसंजूओ दूरं । मं तत्थ सयं पि गयं नूणं चिय नो परिच्चयइ ॥ ५७७६।। ता वणसिरि गंतूण वइयरमेयं तुमं ममंबाए । वासवसिरीए पुरओ साहेहि जहा इमा तायं ॥ ५७७७ ।। विन्नविऊणं कारइ संवाहं मह सयंवरागमणे । तीए तह चेव कयं इयराए वि साहियं रन्नो ।।५७७८ ।। [ हक्कारिऊण रन्ना धूया भणिया तओ वसंतसिरी । पुत्ति ! सयंवरमंडवमिहेव कारेमि तुह हेउ ।। ५७७९ ।। हक्कारेमि समग्गे नरवइणो निवइनंदणे तह य । वसुहावलयपसिद्धे वरेहि सेच्छाए तेसु वरं ।। ५७८० ।। तो आह वसंतसिरी ताय ! अजुत्तं न तुम्ह वयणमिणं । जइ होइ मज्झ चित्ते वरविसए संसओ कोवि ।। ५७८१ । कीर एवं पितओ जाव पुणो वि गयसंसयं चेव । मज्झ मणो अणुरत्तं कुमरे सिरिवम्मनामम्मि || ५७८२ । तावक कारिज्जति भूसामिणो कुमाराय । मग्गागमणपरिस्स ममणत्थमत्थक्खओ तुम्ह ।।५७८३।। अह तीसे निब्बंधं वासवदत्तो निवो मुणेऊण । संवाहिऊण एयं कइवयकरि तुरय-रहसहियं ॥ ५७८४ ।। बहुपुरिससहायजुयं बहुवत्थाहरणदविणसंजुत्तं । चंदउरी नयरीए आगमणत्थं विसज्जेइ ।। ५७८५ ।। सा जाव वसंतसिरी अज्ज वि नियनयरओ न नीहरइ | सामग्गीए कयाए संचिट्ठइ पगुणिया जाया ।। ५७८६ ।। ताव इमं नाऊणं सुदंसणेणं महाबलसुण । सिक्खवणं दाऊणं तीसे पासम्म नियपुरिसा ।। ५७८७।। अब्भितरया दक्खा सुजत्तिजुयवयणकोसलसमेया । पट्टविया संपत्ता ते नरे वासवउरस्मि || ५७८८।। मयणपडिमागिहे तेहिं का वि पुट्ठा वसंतसिरिदासी । जह तुम्ह सामिणीए वयंसिया कारहस्त पयं ।। ५७८९ ।। उवलाभियाय तीए तंबोलाईहिं पवरवत्थूहिं । कहिया धणसिरि नामा पुणो वि सा पत्थिया तेहि ।।५७९० ।। अवरोहेण तुमं तीए सह दंसणं करावेहि । पडिवज्जिऊण तीए करावियं झत्ति तं तेसि ।। ५७९१ ।। उवयरिऊणं तंबोलमाइणा तेहि साहियं तीसे । जह अम्हे पट्टविया सुदंसणेणं निवसुण ॥। ५७९२।। तु सामिणी पासे विन्नत्ती तेण कारिया तीसे । अम्ह समीवाउ इमा जहा अहं मयणचरण ।। ५७९३ ।। दूरं दूमिज्जतो चिट्ठामि असरणो अणाहो य । तो केरं काऊणं अप्पणियं रक्ख मं तत्तो ॥ ५७९४।। गिन्हेऊण करं मह तुमं सहत्थेण अप्पणी दासं । काऊण मं वि मुंचह जेण सुही होमि सयकालं ।। ५७९४ । तो वणसरी भणियं तुम्हेहिं इहागएहिं वि किमेयं । नो विन्नायं जमिमा कयसंवाहा वसंतसिरी ।। ५७९६ ।। चलिया चंदउरीए सिरिवम्मकुमारबद्ध अणुराया । तेहि तओ संलवियं अम्हेहि य अम्ह पहुणाय ।।५७९७।। L दंतउरे विन्नायं पुणो व तो वणसिरीए ते भणिया । जइ नायं चिय एयं तो कह तुब्भे इमं वयह ।।५७९८ ।। हिंसा भणिया आएसगरेहिं सामिणो वयणं । करणिज्जं चिय भद्दे ! तत्थ वियारो न कायव्वो ।।५७९९ ।। ता अम्हाणं उवरि महापसायं तुमं करेऊण । नियसामिणीए पुरओ कहेहि विन्नत्तियं एयं ।। ५८०० ।। तो वणसरी एवं विक्कियं नियमणम्मि जह एयं । साहिज्जउ तीए पुरो उभयं पि जहाकयं होइ ।। ४८०१ ।।
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