Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
२१७ पुरओ पच्छा य तह। कलि त्ति एए वि होंति वन्नेण । उवरि खुरीए जंघाए हेटुओ होइ वलिहत्थो ।।६९७०।। वलिवत्थसनीवत्था कुच्चा तम्मज्झओ पुणो वि किणा । कुच्चाणं पुण हेट्ठा खुरसंधी कुट्ठिया भणिया ।।६९७१।। तत्तो खुरा मह सिहा खुरपच्छा पन्हि सीसपन्हीओ । एवं चिय पायतलं पायतलट्ठा य मंडुक्की ।।६९७२।। कक्खा उ बाहुपच्छा कोडोयरमज्झओ भवे हिययं । नाहिहिययाण मज्झे उयरं तत्तो परा नाही ।।६९७३।। पासाई कक्खाणं पच्छा तत्तो हवंति कुच्छीओ । कुच्छीणुवरि कुकुंडुरतिगमज्झे होंति कुप्पाओ ।।६९७४।। गत्ताण तिण्ह संधी होइ तिगं तयणु साहियं जहणं । तयणंतरं च कहिओ पुच्छुवरि जहणनीरोहो ॥६९७५।। तस्सुभयओ वि कहियाओ भासलाओ हयस्स विबुहेहि। कहिया रोहिणिसंधीतिगस्स पासेसु दोसु वि य।।६९७६। जहणस्स अहे पुच्छं नीरोहं तं तु वत्तिया तत्तो । होइ सवाला पुच्छेण छाइयं पुण गुयं होइ ॥६९७७।। गुयभासलाण हेट्ठा फिउपिडा वट्टया य तदुभयओ। होति अवाणस्स अहे आसाणं सीवणी नाम ।।६९७८।। सत्थीण अंतराले वसणा तेसि च अग्गओ सिसिणं । रंधा तह उवरंधा ऊरूणं अंतरे होति ।।६९७९।। सत्थी उ पंडुमूले ऊरूण अहे य वत्तसत्थीणि । हेट्ठा य वत्तसत्थीण जाणियव्वाओ थूराओ ।।६९८०।। थूराणं पुण हेट्ठा नायव्वा होंति मंदिराओ त्ति । तासि पि पुणो हेट्ठा तप्पुवाओ य नेयाओ॥६९८१।। तुरयसरीरावयवाभिहाणकहणं कयं समग्गं पि। एएसु लक्खणाइं होंति सुहाइं च असुहाई ॥६९८२।। रणसीह ! तो इमं जं तुरयसहस्सं तुम कहसि मज्झ । केणइ केणइ अवलक्खणेण तं दूसियं सव्वं ॥६९८३।। एयस्स संतिया जं एए तुरया अओ इमस्सेव । अप्पेमि इमे अन्नह एरिसए देमि नेव अहं ॥६९८४॥ सेणावइरणसीहं इय बोहेऊण तस्स पासाओ। तुरए पट्टावेउं सुदंसणकए सयं तत्तो ॥६९८५।। काऊण मज्जणाई गिहपडिमं पूइऊण मुणिवग्गे । पडिलाभियम्मि भुत्ते सावयवग्गे समग्गे य ॥६९८६।। भोयणसमयम्मि तओ हक्कारेउं सुदंसणं कुमरं । सिरिहरिसं वरदत्तं अन्ने वि य दूसलाईए ॥६९८७।। तेहिं समं भोत्तूणं दावेऊणं सुदंसणाईणं । तंबोलं गहिऊणं सयं च घणसारसंजुत्तं ॥६९८८।। खणमेगं गमिऊणं कहाहि आइसइ दूसलं तत्तो । रहजत्तं कारिस्सं पभायपभिई दिणे तिन्नि ॥६९८९।।। तेण तए मोत्तव्वा गोत्ती सव्वा वि तिन्नि वि दिणाई। कारेयव्वममारीघोसणयं सयलनयरम्मि ।।६९९०।। एवंविह आएसे ससंभमं दूसलेण पडिवन्ने । सेसं विसज्जइ जणं सकज्जनिरओ सयं होति ॥६९९१॥ नवमदिणाओ पभिई रहजत्तं कारिऊण भूईए । संघं वत्थाईहिं सम्माणेऊण नीसेसं ॥६९९२।। खामेउं अणुजाणाविउं च वासवपुरम्मि गमणत्थं । पत्थाणे ठाइ सयं जत्ता अणुकूलदियहम्मि ॥६९९३।। सम्माणिउं विसज्जइ सिरिहरिसं तेण सह निरूवेउं । नियपुरिसं केलपसायनामयं सिक्खवेऊण ।।६९९४।। एगं सुवन्नलक्खं दाऊण सुदंसणस्स कुमरस्स । तत्तो देइ पयाणं पुरओ वासवपुराभिमुहं ।।६९९५।। गहियावासम्मि तओ सहप्पणा भोयणं करायेउं । दूसणसेणाहिवई सम्माणेउं विसज्जेइ ।।६९९६।। वच्चइ सयं तु पुरओ सिरिवम्मागमणसाहणनिमित्तं । वासवदत्तसमीवे वरदत्तो पेसए पुरिसं ॥६९९७।। तत्तो पुरिसाओ निसामिऊण सिरिवम्मकुमरपरिणीयं । नियधूयं तह सेन्नेण तस्स लीलाए बंधेउं । ६९९८।। गहियं सुदंसणं पहरिसेण पूरिज्जमाणसव्वंगो । वासवदत्तनरिंदो तस्स बहु कुणइ सम्माणं ॥६९९९।। एत्तो कज्जवसेणं केणइ तत्थागयाए तम्मि खणे । वासवसिरिदेवीसंतियाए दासीए तं निसुयं ॥७०००।। तत्तो तीए रहसूसुयाए राया न किं पि नियकज्जं । विन्नत्तो विन्नत्तं तं पुण गंतूण देवीए ॥७००१।। जा तीए समं देवी चिट्ठइ पहरिसकहाओ कुव्वंती । वासवदत्तनरिंदो ताव सयं चेव ओरोहे ॥७००२।
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