Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 255
________________ २२२ सिरिवम्मकुमारचरियं पंचमधाराणुगए तुरए कुसलो वि वाहगो जम्हा। कम्मकरणम्मि अखमो होइ महावेगविहुरंगो।।७१३५।। होंति नवमंडलाइं अट्ठारसधणुहपरिमियं पढमं । दो दो धणुह वि हीणाइं होंति सेसाइं अणुकमसो ।।७१३६।। दो धणुहपरीमाणं संजायइ जाव मंडलं नवमं । कमसो इमेसु तुरओ वाहेयव्वो सुबुद्धीहि ।।७१३७।। साहेयव्वा धारा पढम चिय पढममंडले पढमा। तीए सिद्धाए अह सेसाओ तिन्नि धाराओ ।।७१३८।। साहेयव्वाउ यस्स मंडले तम्मि चेव तत्तो य । दुइयाइमंडलेसु वि चउरो चउरो य धाराओ ।।७१३९।। साहेयव्वाउ कमेणिमिणा जा होइ मंडलं नवमं । नवभेयमंडले इय चउ चउ धारा जुए सिद्धे ।।७१४०।। दिज्जइ मुहम्मि कवियं तुरयस्स तहेव मंडलद्धेण । गोमुत्तीनाम भवे धारा एसा वि सव्वत्थ ।।७१४१।। साहेयव्वा पइमंडलं पि एक्केक्कपुव्वधाराए। अट्ठमनवमे परिवज्जिऊण दो चेव मंडलगे ॥७१४२।। उज्जुपभिईण भणिओ एसो पाएण साहणम्मि कमो। कम्मावेक्खाए वइक्कमो वि कत्थइ करेयव्यो ।।७१४३।। नट्टायारं वित्तं तुरयाणं रूवदायगं होइ । ते य पमाणजुया वि न तुरया रेहंति जेण विणा ।।७१४४।। तं पुण वित्तं तिविहं झंपाकरणं च कूडनामं च । समपायाइयभेया पुणो भवे तं दुवालसहा ॥७१४५।। उड्ढं वग्गागहणे रागाइहओ य होइ जं तुरओ । सममुप्पडतपाओ सा झंपा तइयधाराए ॥७१४६।। करणं दुइज्जधाराणुगयं समपायपभिइभेएहिं । भणियं पंचपयारं तं हयवाहणविहिन्नहिं ॥७१४७।। पढम समपायं तह दुइज्जयं वत्तदाहिणं होति । तइयं तु वत्तवामं चउत्थयं हरियदाहिणयं ।।७१४८।। पंचमयं हियवामं कूडं पुण होति पढमधाराए । तं चलथिरभेएणं दुविहं विबहेहिं निद्दिढें ॥७१४९।। तत्थ चलं चंकममाणपायमेगत्थ संठियं च थिरं । तत्थ चलं पुण तिविहं तत्थेगं दिस्स दाहिणयं ॥७१५०।। दुइयं तु दिस्सवामं विक्खित्तपयं तु तइययं होति । तिविहं थिरं पि नेयं अग्गट्ठियदाहिणं एगं ॥७१५१।। दुइयं पायडवामं तइयं समपायमेव नायव्वं । भरहुत्तं जह नटं तंडवलासेहि दुविभेयं ॥७१५२।। कूडं पि तहा नेयं तंडवनामं च लासनामं च । इय वन्नियस्सरूवं दढं पि चित्तं पि तं तुरयं ।।७१५३।। कारेऊणं सो आसरायनामो तुरंगदमगवरो । तुरियाए धाराए उट्ठावेउं निवाभिमुहं ।।७१५४।। थडयस्स नियडदेसे आणेउं खंचएझड त्ति तओ । खंचणसमकालं चिय उड्ढे सो संठिओ तुरओ ।।७१५५।। रेहाए चेव तओ परितुटुमणो निवो पयंपेइ । पेक्ख कुमार ! कहेसो इमेण सिक्खाविओ तुरओ ।।७१५६।। कुमरो उ निरिक्खेउं तं तुरयं कन्नदिट्ठिपमुहेसु । देहावयवेसु तहेव चिट्ठए जंपइ न कि पि ॥७१५७।। तो राया तं कुमरं पुणो वि पुच्छइ तहेव सविसेसं । कुमरो वि जोडियकरो होउं चिट्ठइ कयपणामो ।।७१५८।। न उणो जंपइ किंचि वि तओ नरिंदो पुणो वि जंपेइ। किं कुमर! तं न जंपसि किंचि वि तुरयस्स गुणदोस।।७१५९।। तो सिरिवम्मकुमारो जंपइ तुब्भेहिं देव ! पच्चक्खे । दिढे तुरयसरूवे किं अम्हे एत्थ जंपामो ।।७१६०।। अह वासवदत्तनिवो कुमारवयणं इमं सगन्भं ति । नाऊण संकियमणो पुणो वि कुमरं भणइ एवं ।।७१६१।। दिलृ चिय पच्चक्खं तुरयसरूवं मए कुमार! परं । पुच्छामि अभिप्पायं तुज्झ अहं विम्हयपवन्नो ।।७१६२।। अत्थाणनिविट्ठणं मए जया आसरायहयदमगो । पुट्ठो तुरयसरूवं तया सयं नियमईए तए ।।७१६३।। वीमंसिऊण भणियं समत्थियं तेण आसरायस्स । वयणं मज्झ पुरो जं तहेव तं जायमवियप्पं ।।७१६४।। । इन्हि नियदिट्ठीए दळूण वि तुरयचेट्ठियं सक्खं । पुट्ठो वि मए न तुम जंपसि किंचि त्ति मे संका ।।७१६५।। अह मउलियकरकमलो सपणाम भणइ कुमरसिरिवम्मो । बेमि अहं नियभावं जइ देवो देइ अच्छलियं।।७१६६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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