Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 252
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं २१९ तो सिरिवम्मो पभणइ नयरपवेसे वि तेण विन्नत्तं । एवं मझे जहा हं अलक्खिओ आगमिस्सामि ।।७०३६।। वासवदत्तस्स पुरो अप्पाणं न पयर्ड करिस्सामि । लज्जावसेण तम्हा न मज्झ खूणं तए गिज्झं ।।७०३७।। भुंजते सिरिवम्म वासवदत्तेण कन्नमूलम्मि । सिक्खविउं पट्टविओ वरदत्तो तस्स पासम्मि ।।७०३८।। गंतूण तेण भणिओ सुदंसणो जह तुहाहवणहेउं । वासवदत्तनिवेणं पट्टविओ हं तओ तुब्भे ।।७०३९।। आगच्छह मिग्वं चिय भोयणसालाए चिट्ठइ निविट्ठो। सिरिवम्मो निवकुमरो तुब्भे एंते पडिक्खंतो।।७०४०।। भणियं सुदंसणेणं सिरिवम्म कुमरमहमणुन्नविउं । चिट्ठामि ठिओ इह सीसवेयणाबाहिओ बाढं ।।७०४१।। नयरपवेसे वि अहं न पविट्ठो तेण सह अओ चेव । तम्हा भुंजउ कुमरो कुमरस्स न खूणमिह कि पि ।।७०४२।। वरदत्तो भणइ तओ करिस्सए तुम्ह जंपियं कुमरो । सिरिवम्मो भंजिस्सइ परं न भुंजिस्सए राया ।।७०४३॥ वासवदत्तो जाव न तए कयं तत्थ भोयणं गंतु । भणियं सुदंसणेणं तओ जहा मज्झ विन्नत्ति।।७०४४।। तुमए सुणाविऊणं वासवदत्तो निवो परूसंतो । रक्खेयव्वो तत्तो वरदत्तो जंपए एवं ।।७०४५।। किं पि नियमाणसं पेसिऊण तुब्भे इमं भणावेह । पेसइ सुदंसणो अह तेण समं सारमं तत्थ ।।७०४६।। विनत्त तेण तओ वासवदत्तो सुदंसणावासे । पडिपुन्नं पेसइ सिद्धरसवइं सारमेण समं ॥७०४७।। चत्तारि पवरतुरए वत्थाहरणाई तह गहेऊण । वरदत्तं पि निरूवइ सुदंसणत्थं महीनाहो ॥७०४८।। वासवदत्तुवरोहेण तं समग्गं सुदंसणो गहिउं । सम्माणेऊण तओ पुणो विसज्जेइ वरदत्तं ॥७०४९।। जे य वसंतसिरीए समं गया आसि केइ गुरुपुरिसा । वासवदत्तस्स पुरो विन्नत्तं एरिसं तेहिं ।।७०५०। जं सिरिवम्मनिमित्तं ससुराईणं कए य ज नीयं । रहकरितुरंगमाई वत्थाहरणाई अम्हेहि ॥७०५१।। तं कस्स वि नो दिन्नं चिट्ठइ सव्वं पि इह समाणीयं । जेणद्धपहे जाओ संखेवेणं चिय विवाहो।।७०५२। परओ य न संजायं गमणं अम्हे इहेव आयाया । वासवदत्तेण तओ तेसि पासाओ तं सव्वं ॥७०५३।। आणावेउं कयभोयणस्स सिरिवम्मवरकुमारस्स । विहियविलेवणतंबोलकुसुमदामोवयारस्स ॥७०५४।। परिवारस्स य जहजोग्गयाए दाऊण तं विसज्जेइ । अह वासवदत्तनिवो वासवसिरिपमुहदेवीणं ॥७०५५।। साहइ जह कारिस्सं विवाहवद्धावणं दिणे चउरो । पउरपरिवारलोयं कमेण भुंजावइस्सामि ॥७०५६।। ता तुब्भे सयमेव य अंतेउरचारिनारिवग्गाओ। बद्धावयागयाणं पुरनारीणं महिड्ढीणं ।।७०५७।। कारिज्जह उवयारं पीप्पलितंबोलकुसुमदाणाई। तं निववयणं सव्वाहिं ताहिं तह चेव पडिवन्नं ॥७०५८। कमलसिरोपमुहाणं अट्ठन्हं कन्नगाण माऊहिं । विन्नत्तो नरनाहो जह पढममुवागए एत्थ ॥७०५९।।। सिरिवम्मम्मि कुमारे मंगलकरणुज्जयाहिं अम्हेहिं । सद्धि समागयाहिं कमलसिरीपमुहकन्नाहिं ॥७०६० जप्पभिई चिय दिट्ठो सो ताहि सिणिद्धदिट्ठिजुयलेहि। तप्पभिई चिय ईसाइएण वाणंगसुहडेण ।।७०६१।। हिययम्मि ताडियाओ निव्वरबाणेहि नियमणेण । ताओ वियणत्ताओ अज्ज वि गिण्हंति नाहारं ॥७०६२।। तो कारिस्सह तुब्भे उवयारं कं पि ताण कन्नाण । तं वयणं सोऊणं वासवदत्तो तओ राया ॥७०६३।। तत्थ वसंतसिरीए मुहं पलोएइ सा वि पणयसिरा । जंपइ जह अम्ह सहाइणीओ कीरंतु एयाओ ॥७०६४।। तो राया सिरिवम्म भणावए पेसिऊण वरदत्तं । परिणयणत्थं कन्नाण ताण अट्ठन्ह वि नियाण ।।७०६५।। तो सिरिवम्मो जंपइ वासवदत्तेण पुहइनाहेण । गरुओ अम्ह पसाओ कओ जमेवं समाइ8 ॥७०६६।। किंतु परं एक्केण वि जस्स कलत्तण निव्वुई होइ । कह सो बहुयकलत्ताइं परिणए निप्फलं चेव ॥७०६७।। अम्ह वसंतसिरीए एक्काए वि निव्वुई मणे जाया । तेणियरकन्नगाणं परिणयणं नेय इच्छामो ॥७०६८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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