Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 251
________________ सिरिवम्मकुमारचरि गंतूण इमं जंपइ पुरओ वासवसिरीए देवीए । धूयापरिणयणेणं वद्धाविज्जसि तुमं देवि ।।७००३ || देवी पडिभणइ तओ धूया जामाउयाण आगमणे । वद्धाविज्जह तुब्भे वि देव ! तो विम्हिओ राया ।।७००४ ।। देवि पुच्छर तुम कह विन्नायं इमं तओ देवी । जंपइ जह कह वि तए तह चैव मए वि नरनाह ! ।।७००५ ।। तो भइ निवो निउणो देवि ! इमो तुज्झ पणिहिवावारो। सा बेइ इमं नाउं ऊणं कम्मं करिज्जासि ।। ७००६ ।। इय काऊणं गोट्ठि खणं पि देवीए सह तओ राया । निग्गंतु तं पुरिसं पेसइ वरदत्तपासम्मि ।। ७००७।। दाऊणं जह वरदत्तो तर भणेयव्वो । आसने सिरिवम्मे संपत्ते तं अणुन्नविडं ||७००८ || जह सो पुरओ होउं आगंतु मिलइ मज्झ अह एसो । गंतूणं वरदत्तस्स एरिसं कहइ निववयणं ।।७००९ ।। पच्चासन्नम्म गए कुमरे वासवउरस्स सिरिवम्मे । तं अणुजाणावेउं तत्थ सयं जाइ वरदत्तो ।।७०१०।। वासवदत्तस्स पुरो सिरिवम्मं आगयं निवेएइ । तव्विसए करणिज्जं मंतइ राया वि तेण समं । । ७०११ । । अह वासवदत्तनिवो सह वरदत्तेण बीयदियहम्मि । तस्स नियविभूतीए पच्चोणीए वि णीहरइ ।। ७०१२।। वासवउरसीमाए गंतूण सयं विलंबए राया । पेसइ वरदत्तं पुण समुहं सिरिवम्मकुमरस्स ॥७०१३।। तेण सहागंतूणं वासवदत्तं कुमारसिरिवम्मो । करिणिगओ वि पणमइ पंजलियाए निहियसीसो || ७०१४।। वासवदत्तो वि स सागओ समालिंगिऊण सिरिवम्मं । संभासिऊण किंचि वि पवेसए नयरमज्झम्मि ।।७०१५ ।। ऊसियबंयतोरणपुन्नकलसकय मंगलोवयारम्मि । देवउल-हट्ट-घर-तरु-पायारट्ठियपुरजणम्मि ।। ७०१६।। अइगरुयपमोएणं तं उत्तारइ नियम्मि पासाए । पढमं पि वसंतसिरी वि तत्थ आगंतु पणमेइ ।।७०१७।। पिउणो पाएसु पिया वि तं समालिंगिउं णिउच्छंगे । उववेसिऊण चुबइ सिरम्मि तह देइ आसीसं ।। ७०१८।। अह रयणमए पट्टे कोमलवरतूलियासणाहम्मि । ठवइ वसंतसिरीए समन्नियं कुमरसिरिवम्मं ।।७०१९।। वासवसिरिपमुहाओ हक्कारेऊण सव्वदेवीओ । बहुमंगलाई कारइ तेसि दोन्हं पि ताहि तो ।। ७०२०।। सिरिवम्मो उठेउं कमेण तासि समग्गदेवीणं । कुणइ पणामं ताओ आसीसं देंति तस्स इमं ।। ७०२१ ॥ होसु अजरामरो तं उट्ठेऊणं तओ वसंतसिरी । अवगूहिऊण देवीउ ताओं अतिनिब्भरसिणेहा ।।७०२२ ॥ पणमइ पसु तासि तीसे इय देति ताओ आसीसं । सयकालं पि तुमं पुत्ति ! अविहवा सूहवा हवसु ।।७०२३।। सिरिवम्मकुमारं पेक्खिऊण राया सहावरोहेण । पहरिसपूरियहियओ सविम्हओ इति विचितेइ || ७०२४।। कयमणुरूवं विहिणा वसंतसिरिकन्नयं विहेऊण । जं सिरिवम्मेण समं एईए संगमो विहिओ ।।७०२५ ।। अम्हाण वसंतसिरी अणुरूववरोवलंभविसयम्मि । अइगरुययरी चिंता आसि मणे सा गया इन्हि ॥ ७०२६।। दट्ठूणं सिरिवम्मं नियरूवविणिज्जियामरसिरीयं । सव्वगुणाण निहाणं भत्तारमिमीए संपत्तं ॥ ७०२७|| इच्चा चितिऊणं विसज्जिओ तेण पत्थिवेणेसो । अन्तम्मि चित्तयम्मोवसोहिए पवरपासाए ।। ७०२८|| वासवसिरिदेवीए धरिया तत्थेव पुण वसंतसिरी । सिरिवम्मस्स निमित्तं पट्टवियं मज्जणाईयं ।। ७०२९ ।। कयमज्जणाइकम्मो कयसिंगारो जिणिदभवणेसु । गंतूणं देवे वंदिऊण पत्तो नियावासे ।।७०३० ।। वासवदत्तस्स सुओ सुरिददत्तोत्ति निययदेसाओ । तम्मि दियहम्मि पत्तो आएसेणं सजणयस्स ।।७०३१।। हक्कारिण भोयणसमए निवमंदिरे समाणीयं । सो सिरिवम्मकुमारं पणमइ अइगरुयविणएण ||७०३२।। तं सिरिम्स कइ नरवरो एस सलाओ तुम्ह । होइ वसंतसिरीए सहोयरो जेहओ भाया ।। ७०३३ ।। तो बाहुदंडजुयलं पसारिऊणं कुमारसिरिवम्मो । गाढं आलिंगइ तं सुरिंददत्तं सिणेहेण ॥ ७०३४।। वासवदत्तो भोयणकए निसन्नं कुमारसिरिवम्मं । पुच्छइ सुदंसणो कह न दीसए आगओ एत्थ ।। ७०३५ ।। २१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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