Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१८५
सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
सो चंदउरिपुरीए आगामी भाडएण तो तस्स । वसहेसु समारूढा दसमदि एत्थ संपत्ता ।।५९३१ ।। भोट्टे अम्हेहि तस्स निययवत्थाई । दिन्नाई चलिट्ठाई गहियाई इमाई जिन्नाई ।।५९३२ ।। देव ! वसंतसिरीए वासवदत्तस्स मेईणीवइणो । धूयाए तुम्ह पायाण कारिया एस विन्नत्ती ।। ५९३३।। वित्ता अम्हेहि संपइ देवो पमाणमिह अट्ठे । जइ न करिस्सह तुब्भे सिग्धं चिय तप्पडीयारं ।। ५९३४ ।। तो निसुणिस्सह तुरियं तीसे परलोयमग्गपत्ताए । वत्तं नीसंदेहं जं जुत्तं कुणह तं इन्हि ।। ५९३५।। जं सामलस्स मरणं जायं मग्गम्मि नूण तं तेण । माहवराएणं चिय कारवियं इय वियक्केमो ।। ५९३६।। नरपुंगवेण भणियं एवंचिय एयमिह न संदेहो । तुम्हे पुरमज्झाओ नीगंता पेक्खिया तेग ।। ५९३७।। तुम्हेहि तओ गंतु ं पुव्वं तस्सेव पुच्छियं नामं । अप्पाणं तु न कहियं एमेव य निग्गया तुब्भे ।।५९३८।। तस्स स परिवारस्स वि तो जाया तुम्ह संतिया संका । पट्टिए तिन्नि जणा पट्टविया हे । तत्तो ।।५९३९ ।। अन्ने पुण बहुयजणा पच्छन्ना तेण पेसिया कहवि । तो तेहि तिहि जणेहिं तुम्हेच्चय / पासाओ ।। ५९४० ।। नाऊण मूलसुद्धि जह एए वाहरं चडावेउं । वच्चति गहियलेहा नरपुंगवर (पासम्म ।। ५९४१ ।। तुम्हेच्चएण केइ पुरिसेण न नायमेरिसं जमिमे । दुट्ठहिययत्ति कि पुण पहिया केचित्ति विनायं । । ५९४२ ।। तव्वेलं चिय एए तुम्ह न लग्गा इमेण कज्जेण । दियहो वहइ य मग्गो आसन्नं तह य गुलखेडं । । ५९४३ ।। एण कारणेणं दूरे गंतूण रुक्खगहणम्मि । रत्तीए अंधयारे लग्गा तुम्हाण वियणम्मि ।। ५९४४।। तो जारिसं चिय इमं तुम्हहिं वियक्कियं तहेव तयं । दूएहि तेहि भणियं जं देवो आणवेइति । । ५९४५ ।। जं पुण अम्हे छुट्टा तं केवलमेव देव ! तेएण । तह य वसंतसिरीए महया पुन्नप्पगरिसेण ।।५९४६ ।। ताण कहंताण इमं रायसहासन्निविट्ठलोयस्स । सव्वस्स वि संजाओ अइगरुओ विम्हओ हिय ।। ५९४७ ।। सिरिवम्मकुमारोवरि तीसे पेम्मं मणे वि भावंतो । जाणइ रायजणो जइ संवाहे गम्मए तीसे ।। ५९४८ ।। किंतु परं नरपुंगवनरवइणो मुहविणिग्गयं वयणं । पडिवालितो चिट्ठइ न किं पि जंपेइ निवभीओ ।।५९४९।। विनवणं दो वि तेसु ठिएसु निवो पडिहारं । आइसइ जहा एए कारेउ मज्जणं तत्तो ॥ ५९५० ।। परिहावेउं सुंदरवत्थाई भोयणं च कारेउं । आवासे वीसामह हक्कारिस्सामि तो पच्छा ।।५९५१।। विहु या भणिया नरपुंगवपत्थिवेण जह तुम्भे । उट्ठेह ताव इन्हि सव्वं लट्ठ करिस्सामि ॥। ५९५२।। इय आइट्ठा रन्ना उट्ठेउं पणमिऊण रायाणं । ते दो वि हु नीहरिया या तत्तो समतेहि ।। ५९५३।। नियपुरिसो पडिहारेण पेसिओ रायदिन्नमाएसं । तेसि संपाडेउं तो राया संधिविग्गहियं । । ५९५४ । । पुच्छे भट्टपुत्तो कोवि हु तुह संतिओ समायाओ । देसाउ सूरपालस्स जाणए जो इमं सुद्धि ।। ५९५५ ।। ते तओ विन्नत्तं सपणामं जोडिऊण पाणिजुयं । देव ! समओ इयाणि चिट्ठइ कस्स वि य आगमणे ।। ५९५६।। अह रन्ना पडिभणियं संधीरण राधि-विग्गहनिउत्ते । एएहि विन्नत्तं परिहासइ केरिसं तुम्ह ।। ५९५७ ।। सच्चं उयाहु मोसंतो जंपइ संधिविग्गही एवं । पडिहाइ देव ! सच्चं व सव्वमेएहि विन्नत्तं ।।५९५८।। जम्हा सुत्ति जुत्तं यं सव्वंपि न उण अघडतं । इह अक्खरं पि एक्कं संभाविज्जइ नियमम्मि ||५९५९।। तोरन्नानिक्खिवियादिट्ठी अन्नेसु मंति पमुहेसु । अह ते वि जोडियकरा सप्पणिवाया वयंतेवं ।। ५९६०॥ जं चेव देव ! संधीरणेण देवस्स पायपरमाणं । विन्नत्तं अम्हाण वि तं चेव मणम्मि विप्फुरइ ।। ५९६१ ।। तो पत्थवेण भणियं अम्हाण वि एस चेव अभिपाओ । जो तुम्हेहिं पवृत्तो जाव इमं जंपए राया ।। ५९६२ ।। ताव पुणो पडिहारो विन्नवइ नरेसरं कयपणामो । वामणसामिपहाणेण सह गया आसि जे पुरिसा ।।५९६३।।
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