Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 247
________________ २१४ .... सिरिवम्मकुमारचरियं रणसीहं भणिऊणं हक्कारावइ सुदंसणं तत्थ । अप्पट्ठमो वि एसो आगंतुं नमइ सिरिवम्मं ।।६८७४।। उक्खिवियबाहुजुयलो सिरिवम्मो नियडमागयं एयं । आलिंगइ अइगाढं दाविय उचियासणे तत्तो ॥६८७५।। उववेसइ आसन्नं देइ सहत्थेण तस्स तंबोलं । वरकप्पूरसणाहं सो गिन्हइ दोहि हत्थेहि ॥६८७६।। अह एयं सिरिवम्मो संभासइ संभमेण गरुएण। जह किर महाबलेणं रन्ना इह अम्ह पासम्मि ।।६८७७।। कज्जतरेण केणइ पट्टविओ आणओ इमो अज्ज । वड्डमणुस्सो सिरिहरिसनामओ सो उ अम्हेहिं ।।६८७८।। अज्जेव सिद्धकज्जो कओ गमस्सइ पुणो वि दंतउरे । एएण तुम्ह विसए जइ वि हु नाम पि नो गहियं ।।६८७९।। तह वि हु अम्हेहिं तुमं मुक्को सि जओ महाबलनिवेण । अम्ह जणएण सद्धि साजन्नं काउमारद्धं ।।६८८०।। अम्हेहि वि तस्स तओ कायव्वं पीइवद्धणं किं पि । तं पुण इमम्मि समए तुह मोयणओ हवइ पवरं ।।६८८१।। जंपइ सुदंसणो तो जइ पिउणो अम्ह पीइमिच्छेह । काउं तुब्भे तोहं धरियव्वो होमि गुत्तीए ।।६८८२।। जं चित्ते धारिता जंपंता तह य चिट्ठह मुहेण । तं न कुणह कितु इमं विवरीयं आयरह तुब्भे ।।६८८३।। तो पभणइ सिरिवम्मो दुविणयं तस्स तुज्झ संजमणं । इच्छइ महाबलनिवो न उणो तुह देहमेत्तस्स।।६८८४।। तं पुण दुविणयत्तं विसमावडियं तुमं विमोत्तूण । नळं कह पि संपइ तो तं जाओसि निदोसो ॥६८८५।। जइ तुम्हं पडिहासइ तो इन्हि वयह सपिउणो पासे । जंपइ तओ सुदंसणकुमरो विणओणओ एवं ।।६८८६।। सव्वो वि जणो चिट्ठइ तत्थ गुणो जत्थ अत्तणो होइ । सव्वगुणेणं पवरो पुरिसस्स गुणो पुणो एसो ।।६८८७।। जंगुरुजणस्स वयणे बहुमाणो होइ सो उ मह जाओ। तुम्ह समीवाओ तओ तुमं न इच्छामि तो तुमहं ।।६८८८।। सोऊण तओ एवं सुदंसणं सविणयं पयंपंतं । विम्हियमणो विचितइ सिरिहरिसो एरिसं चित्ते ।।६८८९।। अन्नं कि पि सरूवं कुमरस्स सुदंसणस्स संजायं । संपइ जमिमो सुव्वइ जंपतो अवरवाणीए ॥६८९०।। परपरिभवदोसो वि हु इमस्स ता परिणओ गुणत्तेण । जच्चस्स सुवन्नस्स व हुयवहतावो विसुद्धिकए ।।६८९१।। तो पभणइ सिरिवम्मो किमजुत्तं किर इहेव चिट्ट तुमं । जामि जया दंतउरे अहं तया तं पि वच्चेज्जा ।।६८९२।। किर चिट्ठसि एत्थ तुम मज्झ समीवे महाबलनिवेण । हक्कारिओ निउत्तो सुदंसणो तो वयइ एवं ॥६८७३।। नेयं मन्नामि अहं जओ महाबलनिवस्स लंघेउं । आणं इहागओ तो होमि कहं तेण विणिउत्तो ॥६८९४।। हसिऊणं सिरिवम्मो मोणं काउं खणं तओ भणइ । रणसोहदंडणायग! तए सुदंसणकुमारस्स ।।६८९५।। चत्तारिसहस्साइं दावेयव्वाइं पवरतुरयाणं । एगो करहसहस्सो मज्झाणाए पसाएण ॥६८९६।। एयस्स संतिओ तह अप्पेयव्वो समग्गआवासो । कारेथव्वा वित्ती भिच्चसहस्साण पंचन्हं ।।६८९७।। अह सिरिवम्मस्साणं तह त्ति पडिवज्जिऊण रणसीहो । काऊण अंजलि मत्थयम्मि आरोवए तत्तो ।।६८९८।। अह चितंति सुदंसणसिरिहरिसा दो वि नियमणम्मि इमं । सिरिवम्मस्स कमेयस्स वन्निमो गुणमिहेक्केक्कं ।। किं सुयणत्तं किं वा गरुयत्तं किमुय समुचियन्नुत्तं । किं व कयण्णुत्तं किं व अज्जवं कि व दक्खिन्नं ।।६९००।। बंधेऊणं गहिओ जस्स सुओ सह समग्गविहवेण । तस्स पिया पियवयणाई जंपए जइ वि बहुयाइं ॥६९०१।। तह वि कह तेसु जुज्जइ विबुहस्स तह त्ति पच्चओ काउं । कयपच्चओ उ एसो अज्जवमेयस्स तो एयं।।६९०२।। पुव्वं कलत्तगहणे जीवियविहवाण तयणु अवहरणे । जो होइ अज्झवसिओ बंधेउं तम्मि गहियम्मि ।।६९०३।। अट्ठदिणाणं मज्झे कह मोक्खो तस्स कीरए झत्ति । मोक्खे वि कए कह वा सुहायमाणं वयणमेवकं ।।६९०४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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