Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
१९१ कुमरस्स मणे भावो न सुंदरो एरिसं कुणंतस्स । काहि के पि अणत्थं तदंसणमोहिओ एसो ॥६१२९।। ता वज्जाउहनामे देवि तुमं तह करेसु जह एसो। ने य वसंतसिरीए देहावयवं पि पेक्खेइ ॥६१३०।। तुज्झ अहं अट्ठदिणे जत्तं अइवित्थरेण कारिस्सं । इय चितंतो पत्तो कुमरेण समं इमो तत्थ ।।६१३१।। कयपूओ देवीए कुमरो हक्कारए वसंतसिरि । कयमुत्तरं इमीए दिट्ठीए अत्थि मह बाहा ।।६१३२।। कुमरो भणावइ तओ तमहं पडिजागरेमि आगंतुं । तीए भणावियंतो पडिजागरण कयं चेव ।।६१३३।। तुम्हेहिं अम्ह वत्तं पुच्छंतेहिं इहट्ठिएहि पि । ता न खडप्फडियव्वं महाए गरुया जओ तुब्भे ।।३१३४।। तो दूसलेण भणिओ कुमरो जं किंचि समुचियं तुम्ह। तं कयमिन्हि तु इओ गम्मइ गुलखेडनयरम्मि ।।६१३५।। तो वीरपालकुमरो तह चेव करेइ उदिउं तत्तो। वच्चइ गुलखेडपुरे एत्तो मुणियस्स स्वेण ।।६१३६।। माहवराएण सुदंसणस्स गंतूण साहियं एवं । जह दोन्हं तिन्हं वा दिणाण मज्झे वसंतसिरिं ।।६१३७।। वोलाविऊण निवसूरपालपुत्तो नियस्स देसस्स । सीमं छड्डावेउं नरपुंगवदेससीमाए ।।६१३८।। नेऊण नियत्तिस्सइ तओ सयं वीरपालवरकुमरो। इय तव्वयणं सोउं सुदंसणो नियमणे तुट्ठो ।।६१३९।। चिंतइय जह नियत्ते तत्तो कुमरम्म वीरपालम्मि । सज्झा मज्झ भविस्सइ वसंतसिरिकन्नया नूणं ॥६१४०।। तो एत्तो जम्मि दिणम्मि वीरपालेण सह वसंतसिरी। वच्चिस्सइ तम्मि दिणे रयणीए पयाणयं दाउं ॥६१४१।। नियमंडलमज्झणं गंतणं गोविएण सेन्नेण । पविसेउं नर पुगवमंडलमज्झे वसंतसिरिं ।।६१४२।। एगागिणि गहिस्सं इय चितेउं तओ विसज्जेइ । माहवरायं एसो एत्तो सिरिवम्मकुमरेण ।।६१४३।। जे आसि दोन्नि पुरिसा पट्टविया ते समागया तत्था । तेहि वसंतसिरीए कहियं सिरिवम्मसंदिळें ॥६१४४।। सिरिवम्मेणं अम्हे तुज्झ समीवम्मि पेसिया एवं । तेसि वयणं सोउं पढमं जाया वसंतसिरी ।।६१४५।। उच्छलियबहलपुलया पहरिसपगलंतनयणजलनिवहा। अहिणववियसियसयवत्तविउलविमलाणणच्छाया६।१४६ । तयणंतरं तु सामलमरणे निसुयम्मि जायसोया वि । नयणेसु जलपवाहं तहट्ठियं चेव उव्वहइ ॥६१४७।। नवरं विसरिसमेयं देहे सयलो वि मउलिओ पुलओ । संकुइयं झत्ति मुहं तीसे जायं च अलिमलिणं ।।६१४८।। सिरिवम्मो तुम्ह समीवमेइ एयं निसामिउं तत्तो। उल्लसियगरुयहरिसा पुव्वसरूवा पुणो जाया ॥६१४९।। इय बद्धामरिसेहि मल्लेहि व तक्खणे वि अन्नोन्नं । तीसे मणम्मि रंगे व्व हरिस-सोएहिं विप्फुरियं ।।६१५०॥ मज्जणभोयण-तंबोल-वत्थमाईहिं गरुयसम्माणं । तेसिं दोन्हं पि हु कारवेइ अह सा वसंतसिरी ।।६१५१।। अह अणुजाणावेउं वसंतसिरिकन्नयं तओ चलिया । दूया दो वि सुदंसणकुमारकडयम्मि गंतुमणा ।।६१५२।। संझाए संपत्तो तत्थ तओ पुवकहियसेन्नेण । संजुत्तो सिरिवम्मो पुरबाहि लेइ आवासं ।।६१५३।। नाऊण वसंतसिरी सिरिवम्म कु मरमागमं तत्थ । उल्लसियगरुयहरिसा न माइ देहे न वा गेहे ॥६१५४।। अह सिक्खवणं दाउं सा पेसइ पियवयंसियं निययं । वणसिरिनाम सिरिवम्मकुमरपायाण पासम्मि ।।६१५५।। वत्थाहरण-विलेवणतं बोलाई पयत्थसंजुत्तं । गंतण तत्थ सा ढोइऊण तं तस्स सव्वं पि ।।६१५६।। जंपइ जोडियहत्था तं एवं अम्ह सामिणीकुमर । विन्नवइ वसंतसिरी तुम्ह पयाणं जह मणेमे ॥६१५७।। तुह संगमाहिलासो तुह गुणसवणेण पढममंकुरिओ । चित्ताभिलिहियरूवावलोयणे तयणु पल्लविओ ॥६१५८॥ जणयाणुन्नाए एत्तियम्मि दूरे समागमेण पुणो । साहपसाहावित्थरमणुपत्तो गमणविक्खंभे ।।६१५९।। दुव्वाइओ मणं पि हु पुणो वि तुह दूयकहियसंदेसे । लद्धसुवाओ जाओ तुम्हागमणेण पुण इन्हि ।।६१६० ।।
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