Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिवम्मकुमारचरियं
तो कालिएण एवं विचितियं माणसम्मि निययम्मि। जह एए मह वयणे जाया कय पच्चया दो वि ॥६५५१।। तम्हा वीसासकए कहेमि अन्नपि किं पि एतेसिं । इय चितिऊण जंपइ दुज्जोहणदंडनाहस्स ॥६५५२।। को वि कहतो निसुओ दूरगएणं मए इमं वयणं । जह धाडी पट्टविया कि तु न सम्म मए नायं ।।६५५३।। कि सिरिवम्मस्सुवरि तुम्हेहि पेसिया उया हु पुणो। सिरिवम्मेणं कुमरेण पेसिया सामि तुम्हुवरि ॥६५५४।। दुज्जोहणेण तत्तो सिक्खविउं पेसिओ अहं एवं । जह गंतूण सुदंसणकडयम्मि तुम कुणह सुद्धि ।।६५५५।। पक्खरिऊणं तुरए अम्हे होऊण गहियसन्नाहा। तुह पट्ठीए एमो इय सिक्वं तस्स गहिऊण ॥६५५६॥ जाव अहं इह पत्तो कडए पेच्छम्मि ताव सव्वंपि । सुत्थं चेव तओ हं विम्हयपत्तो विचितेमि ।।६५५७।। तुम्हाणं चिय धाडी सिरिवम्मुवरि भविस्सए पगया। तो दुज्जोहणसमुहं गंतूणं तं निवारेमि ।।६५५८॥ पक्खरइ जह न तुरए सन्नाहं गाहए न वि य सुहडे । पत्तो सुदंसणेणं भणियं गंतुं कुणह एवं ॥६५५९।। तो सारमेण भणियं कयसन्नाहो वि एउ सो एत्थ । जह सामग्गी दीसइ तह सो पेसिज्जइ पुरो वि ।६५६०। नरसीहदंडवइणो संवाहे मा कया वि (वि)णियत्तो । सो वीरपालकुमरेण जाणिउं होज्ज पडिरुद्धो॥६५६१।। तत्तो निवारिओ सो कुमरेण सुदंसणेण वच्चंतो। दुज्जोहणस्स समुहो विन्नत्तो तेण तो कुमरो ॥६५६२।। तह वि ह वच्चामि अहं गंतुं दुज्जोहणस्स साहेमि । तुम्ह कडयस्स सुत्थं जह सो थिरमाणसो एइ ॥६५६३।। तो अणुनाओ एसो कुमरेण सुदंसणेण मह पासे । आगंतूणं साहइ उत्तरपच्चुत्तरं सव्वं ॥६५६४।। तं चेव पुरो काउं समागओ हं सुदंसणावासे। तम्मि समयम्मि जाओ पहाविया सो दिणिदस्स ।।६५६५।। सुज्झइ मुहं महेणं सिरिक्कसन्नाह छाइयं किंतु । सेन्नं तेहिं न नायं अप्पणयं किं परस्सेयं ॥६५६६।। पुव्वं पि मए सव्वं संकेयं गाहिऊण नियसेन्नं । मुक्कं जह अमुगखणे अमुगं अमुगं करेयव्वं ॥६५६७।। अह गड्डदारगओ ओयरिऊणं अहं तुरंगाओ । मज्झे जया पविट्ठो अन्ने वि तया बहू सुहडा ॥६५६८। पडिहारवारिया वि हु झत्ति पविट्ठा पणोल्लिउं एयं । पुरओ कयप्पणामस्स मज्झ आलिंगणनिमित्तं ।।६५६९।। बाहू सुदंसणेणं पसारिया दो वि तो मए गहिओ। गाढं हियएण समं सेसा सेसेहिं पडिरुद्धा ।।६५७०।। केहि वि करिणो रुद्धा केहि वि तुरया रहा य अन्नेहिं । उग्घुळं गरुयसरं एवं कडयस्स मज्झम्मि ॥६५७१।। जह सिरिवम्मकुमारो कुमरस्स सुदंसणस्स आरुट्ठो। सोऊण इमं सदं भीओ लोओ पलाणो य ॥६५७२।। अहि जणेहिं सद्धि बद्धो कुमरो सुदंसणो झत्ति । खित्तो रहम्मि अन्ने अन्नेसु रहेसु पक्खित्ता ॥६५७३॥ एत्थंतरम्मि पत्ता पुरिसा नरसीहकडयमज्झाओ। भीया पलायमाणा ते गहिया अम्ह पुरिसेहिं ॥६५७४।। आणीया मह पासे पुच्छिस्सं जाव ते अहं किं पि। ता केलुयओ पत्तो तुम्हेहिं पेसिओ तत्थ ।।६५७५।। सव्वं पि तेण कहियं तुम्ह समाइट्ठमग्गओ मज्झ । ते वि मए तो पुट्ठा नरसीहनरा तह कहिंसु ॥६५७६।। बद्धो रहम्मि पच्छा सुदंसणो दंसिओ मए तेसिं । भणिया य ते जहेयं जोहारह अप्पणो सामि ।।६५७७।। तेहिं वि काऊण तहा मुक्को नयणेसु अंसुजलनिवहो । पच्छा मए वि मुक्का भणिया वच्चइ जहेच्छं ।।६५७८॥ तो तुम्ह पयसमीवे पुरिसो संपेसिओ मए अन्नो । गहिय सुदंसणकुमरस्स संतियं वत्तमक्खेउं ॥६५७९।। पहवियरणपरिसंतो धरिओ तत्थेव केलुओ उ मए। कुमरसुदंसणकडयस्स संतिया तयणु आवासा ।।६५८०॥ उप्पाडावेऊणं सव्वे तस्सेव करहमाईसु । आरोहावेऊण य मए समाणाविया एत्थ ॥६५८१॥ गुडपक्खरसन्नाहाउहपमुहं सव्वमेववक्खरयं । तस्सेव वाहणेसुं आरोवेऊण आणीयं ॥६५८२॥
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