Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
२११ सिरिवम्मवसंतसिरीजुयलं अब्भत्थिउं मम गिराए । एत्थ समाणेयव्वं पाहुणयं मज्झ कइवि दिणे ।।६७७६।। सिरिवम्मो आह तओ वासवदत्तेण भाणियं जुत्तं । अम्ह वि काउं उचियं इमं परं असमओ एसो ॥६७७७।। तत्थागमणे अम्हाण संपयं पाउसो जओ नियडो । मग्गे वच्चंताणं जइ वि न बुद्धि कुणइ मेहो ॥६७७८।। तह विहु तत्थ गयाणं निवडइ नियमेण पाणियं तत्तो। विणियत्तिउंन सक्कं जाव न जाओ सरयसमओ।।६७७९।। तो जंपइ वरदत्तो कुमार! किं दूसणं तओ होही । जइ ठाइस्सह तुब्भे कइवयमासे कह वि तत्थ ।।६७८०।। तो पभणइ सिरिवम्मो एयं चिय दूसणं हवइ गरुयं । जं नरपुंगवरन्नो आणाए विणा चिरं अम्हे ।।६७८१।। देसंतरम्मि गंतुं चिट्ठामो तो भणेइ वरदत्तो । वासवउरम्मि तुब्भे वच्चह वच्चामि अहमिन्हि ॥६७८२।। एत्तो चंदउरीए नरपुंगवपत्थिवस्स जहवत्तं । साहेउं रूसंतं तमुवरि तुम्हाणं रक्खेमि ॥६७८३॥ पुण पभणइ सिरिवम्मो एयं न हु होइ संगयं कह वि । जं मुंडिऊण सीसं पुच्छिज्जइ तयणु नक्खत्तं ॥६७८४।। चेइयहरेसु इन्हि अहं गमिस्सामि तं वसंतसिरि । गंतुं पासह पच्छा तुम पि एज्जह जिणगिहेसु ॥६७८५।। तं इय भणिऊण तओ हक्कारेऊण वणसिरि भणइ । जह मह वयणेण तुमं गंतुमिमं भण वसंतसिरि ॥६७८६।। तुह पिउणा वरदत्तो पहाणपुरिसो इहत्थि पट्ठविओ । तं आलविऊण तुमं तेण समं जिणहरे एज्ज ॥६७८७।। इय वणसिरि भणेउं तंबोलं दाविऊण वरदत्तं । पट्ठावइ तीए सह वसंतसिरिअंतिए कुमरो ॥६७८८।। अह सावयपट्टवियं पत्तं हक्कारयं जिणगिहाओ । कुमरस्स तह। कहियं केणइ पल्लाणिया करिणी ॥६७८९।। तो उट्ठिऊण कुमरो आसणओ वयइ ओवरयमज्झे । वरवत्थाहरणेहि काऊणं तत्थ सिंगारं ॥६७९०।। जा निग्गओ करेणुं आरुहिउमणो तओ वणसिरीए । सो विन्नत्तो जह पह ! सामिणिपासे खणं एह ।।६७९१।। अह वणसिरिवयणेणं गओ कुमारो वसंतसिरिपासे । उठेउं वरदत्तो तत्तो बाहिम्मि उवविट्ठो ॥६७९२।। कुमरस्स वसंतसिरी दाऊणं आसणं सहत्थेण । विन्नवइ मउलियकरा जह वरदत्तेण मह पुरओ ।।६७९३।। कहियं नियमागमणप्पओयणं तह य तस्स तुम्हेंहिं । जं दिन्नमुत्तरं तं पि साहियं तेण तो इन्हि ।।६७९४।। काउं गरुयपसायं मझुवरि कुमार ! निययविन्नत्ति । एरिसयं पट्टावह तुब्भे नरपुंगवनिवस्स ॥६७९५।। वासवदत्तनिवेणं हक्कारयमत्थि अम्ह पट्टवियं । वासवपुरगमणत्थं तत्थुचियं किच्चमाइसह ॥६७९६।। अज्ज दिणेण सह जओ सत्त दिणाई भविस्सए एत्थ । तुम्हाणमवत्थाणं तेत्तियदियहेहिं पुरिसो वि ।।६७९७।। तुम्हच्चओ गहेउं नरपुंगवनिवइणो समाएसं । एत्थागमिस्सइ तओ तस्साइटें करिज्जासि ॥६७९८॥ तीसे उवरोहेणं कुमरेणं तक्खणे विलंबेउं । विन्नत्ती पट्टविया पिउणो नरपुंगवनिवस्स ॥६७९९।। आरुहिण करेणुं तओ गओ जिणहरम्मि सिरिवम्मो । तयण वसंतसिरीए सह वरदत्तो वि तत्थ गओ।।६८००।। जह पढमदिणं अन्ने वि पंच दियहा तहेववइक्कता । सिरिवम्मस्स कुमारस्स जिणहरासत्तहिययस्स ।।६८०१।। अह सत्तमम्मि दियहे नरपुंगवनिवइणो समीवाओ । पडिलेहं गहिऊणं पेसियपुरिसो समायाओ ।।६८०२।। गोसग्गे गिहपडिमापूयं काऊण उट्ठियस्स तओ । सिरिवम्मस्स समप्पइ तं लेहं सो पणमिऊण ।।६८०३।। कूमरो वि छोडिऊणं तं वायइ जाव ताव तत्थ लहं। तस्स नरपुंगवणं वासवपुरगमणमणुनायं ।।६८०५ हक्कारिउं वणसिरिं तं अप्पावइ वसंतसिरिहत्थे । लेहं सयं तु पुच्छइ वत्तं लेहारयसमीवे ॥६८०६।। सो कहइ इओ चलिओ चंदउरीए अहं दिणे तइए। पढमे पहरे पत्तो अत्थाणगए नरवरम्मि ॥६८०७।। तं पणमिऊण तप्पायअग्गओ ठाविओ मए लेहो । सो आसन्ननिसन्नेण वियडिउं अप्पिओ हत्थे ।।६८०८।। नरपुंगवस्स रन्नो पहिट्ठचित्तेण तेण सव्वं पि । लेहत्थं अवगमिऊण विम्हिएणं अहं पुट्ठो ॥६८०९।।
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