Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 235
________________ २०२ सिरिवम्मकुमारचरियं पुच्छइ सव्वसरूवं विन्नवइ इमो वि मूलओ पभिई । जह वज्जाउह देवी भवणनिविद्वेहिं तुम्हेहि ।।६४८७।। अइगयदिणस्स तइए जामम्मि अहं इमं समाइट्ठो। अम्ह पमायं जह किर सुदंसणेणं विगप्पेउं ।।६४८८।। अम्हुवरि कया पउणा चिट्ठइ धाडी निसाए विरमम्मि । तो अप्पबलो होही एमो पच्छा तए गंतुं ।।६४८९।। छन्नेणं सेन्नेणं जीवंतो चेव एस गहियव्वो। तो तक्खणं चिय मए तुम्ह समीवाउ आगंतुं ॥६४९०।। पढमं पि तुम्ह सिक्खं कन्ने कहिऊण पेसिओ समुहो। सह दसहिं आसवारेहि सुंदरो एंतसिबिरस्स ।।६४९१।। तो मंडलियाइभडा सिक्खविया जह मुहेण तुम्हेहिं । भणियव्वं एरिसयं जह सामी अम्ह पेच्छणए ।।६४९२।। वज्जाउहदेवीए आसत्तो चिट्ठए समग्गंपि । रणि तत्थ गमिस्सइ तो अम्हे अज्ज नीसंका ॥६४९३।। निय निय कज्जाइं साहिऊण अन्नन्न नियडनयरेसु । पुण एसामो सिग्धं सूरुग्गमणसमय म्मि ।।६४९४।। इय काऊण पधोसं निय निय विदेण थोव-थोवेण । आउहसहिया सन्नाहविरहिया तुरयमारूढा ॥६४९५।। नीहरिउमिओ तुब्भे पढमं अन्नन्ननयरगग्गेसु । सूरत्थमणाउ आरओ वि सब्वे वि गच्छेज्जा ।।६४९६॥ पच्छा रयणीए मुहे पसरते बहलतिमि निउरंबे । जो जत्तो सो तत्तो नियत्तिउं निहुयं निहुयपयं ।।६४९७।। निवसुरपालमंडलमज्झगवणवल्लिगामपरभागे । वासवपुरमग्गठिए अइविविन्नम्मि वणसंडे ।।६४९८।। मिलियव्वं सब्वेहि वि तुम्हेहि तओ जया परो को वि । पुच्छेज्ज तःथ तुम्भे तो एवं तस्स साहेज्जा ।।६४९९।। वासवदत्तनिवेणं वसंतसिरिनामियाए ध्याए । सह पट्टवियं सेन्नं जं आसि तयं नियत्तमिणं ॥६५००।। परिणीयाए तीए विसज्जियं सव्वमेव इण्हि तु । वासवपुरम्मि वच्चइ इय सिक्खविया तह गया तो।।६५०१।। गहपालो वि हु एवं सिक्खविउं पढममेववणसंडे। तम्मि मए पट्टविओ बलेण सह केत्तिएणा वि ॥६५०२।। अह तेसु निग्गएसुं अइविरलतुरंगमाणुसं जायं । सव्वं पि अम्ह कडयं कलियं केवलकरिबलेण ।।६५०३।। पच्छा निग्गयसेसं पायलसेन्नं जमासि कि पि ठियं । तं मज्झाओ नीहारिऊण कडयस्स बाहिम्मि ।।६५०४।। सव्वत्तो कंडनिवायजुयलपज्जतभूपएसम्मि । ठाणंतरेसु ठवियं निरंतरं तो मए सव्वं ।।६५०५॥ किंतु परंपरसेन्नागमणमुहे तं मए पभूययरं । मुक्कं इयरठाणेसु ठावियं थेव थेवंतु ।।६५०६।। तह ते ठाणंतरिया इय भणिया जह कमेण जग्गंता । तुब्भे रक्खेज्जह सव्वरयणिमिहपरनरपवेसं ॥६५०७।। परसेन्नागममुहठाविया नराइयविसेसओ भणिया । जइया परबलधाडि एंति पासह तया तुब्भे ।।६५०८।। तत्तो पलाइऊणं आगंतुं ज्झत्ति कडयमज्झम्मि । ठिय पुरिसाणं पकहेज्ज जह तओ ते वि नासेउं ।।६५०९।। दुइएणं पक्खेणं नीहरिऊणं पुरम्मि गुडखेडे । वच्चंति तेहिं सद्धि तुम्हे वि वएज्ज तयभिमुहा ॥६४१०॥ इय ते भणिउं पच्छा सोहेउं कडयमज्झमइनिउणं । नीहारियं उवरिमं लहु तत्तो माणुसमसेसं ॥६५११।। एत्यंतरम्मि तरणी अत्थगिरिंदग्गसिहरमारूढो। तो कज्जपेसियाणं हयाण सुहडाण य निमित्तं ।।६५१२॥ पक्खरसन्नाहाई आरोहेऊण, करह-रहउवरि । पवणीकाऊणमए मुक्कं जा होइ घणतिमिरं ॥६५१३।। हक्कारिउं मए तो पीलुवई तुम्ह वयणओ भणिओ । जह अद्धरत्तसमए गहिउं गयसासणं सव्वं ।।६५१४।। निहुयं घंटाहिं विणा पयनिगडयवज्जियं तुम एत्तो। कडयाउ नीहरिउं दूरे गुलखेडपुरपासे ।।६५१५।। गंतूणं ठाएज्जा गुढेचरमाइयं पि जाणेसु । आरोवेउं सह अत्तणा तए तत्थ नेयव्वं ।।५६१६।। तह आवासेसु ठिया जे के वि तुरंगमा तयारोहा। सव्वे भणिया जह करिबलेण सह नीहरंतेण ॥६५१७।। तुम्हेहिं वि गंतव्वं आरुहिउं निय निएसु तुरएसु । पक्खरसन्नाहाई सह नेयव्वं रहारूढं ॥६५१८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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