Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 240
________________ २०७ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं तो गहपालो जंपइ सिरित्रम्मो ताव जाणए एवं । जह तुम्हाण पएसुं खित्ताइं संति नियलाइं ।।६६४६।। तेण परं तव्विसए आएसो को वि नेय मह दिन्नो। भोयणमेव गहेउं तुम्ह कए पेसिओ मि अहं ।।६६४७।। ता एवं चिय तुब्भे भुंजह मा कं पि कुणह (हा? )मण (णे? ) खेयं । तो आह तं सुदंसणकुमरो खेओ मह न को वि एमेव मए पुटं तुम्ह समीवे सरूवमेवेयं । अवयारिणो वि मह तेण भोयणं पेसियं जमिमं ॥६६४९।। तं पि अहं बहमन्ने अन्नं पुच्छामि जं पुणो कि चि । तं दळूणं तस्सेव हिययगरुयत्तणं विउलं ॥६६५०।। आह तओ गहपालो कुमार ! जह जंपियं तए एवं । तं तह चेव न थेवं पि अन्नहा तस्स गरुयत्तं ॥६६५१।। सच्चाइ जंपिऊणं परिवेसेऊण तस्स गहपालो । गंतूण सारमाई भोयणहेउं तओ भणइ ॥६६५२।। ते वि सुदंसणकुमरं भुत्तं संपुच्छिऊण भुंजंति ।। भुंजते काउं सयं गओ झत्ति गहपालो ।।६६५३।। गुलखेडे नयरम्मि पासाए वीरपालकुमरस्स । सिरिवम्मकुमाराइसु भोत्तणं उट्ठमाणेसु ।।६६५४।। भुत्तुट्टियस्स पुरओ कहियं रणसीह दंडणाहस्स । गहपालेण सुदंसणकुमरो जह मुक्कअहिमाणं ।।६६५५।। कयनियपच्छायावं सिरिवम्मकुमारगणगहणपुव्वं । वयणं पयंपिऊण नियलगओ चेव य पभुत्तो ॥६६५६।। इय सेणावइ रणसीहकन्नलग्गो कहं तओ दिट्ठो । गहपालो सिरिवम्मेण पुच्छिओ किं कहेसि त्ति ।।५७।। जोडियकरेण तत्तो रणसीहेणं निवेइयं तस्स । जह कहियमिमेणेयं सुदंसणो जेमिओ कुमरो ॥६६५८।। तेणेव सरूवेणं ठिओ तओ वीरपालवरकुमरो । आइसइ दूसलं गहपालं भुंजावह इमं ति ।।६६५९।। नेऊण तेण एसो गहपालो गोरवेण गरुएण। भुंजाविओ तओ सो भोत्तूण समागओ तत्थ ।।६६६०।। कप्पूरागुरुमयनाहिमीसवरचंदणेण निम्मवियं । संचरियं तयणु विलेवणं च कमसो समग्गाण ।।६६६१।। घणसारचंदणेहिं सुरहीकयपवरपूगफालीहिं । नवसरसनायवल्लीदलाण तह बीडएहि च ।।६६६२।। तत्तो कमेण दिन्नं तंबोलं सधणसारमइपउरं । एलालवंगकवकोलजाइफलपमुहवत्थुजुयं ।।६६६३।। अह वीरपालकुमरो सिरिवम्मेणं सणंकुमारेण । काऊण चिरं कालं पीइकहाओ बहुविहाओ ॥६६६४॥ वत्थालंकारेहिं पवरतुरंगेहिं करिवरेहि च । तं सम्माणेऊणं जहजोग्गं सपरिवारं पि ।।६६६५।। हत्थे जोडेऊणं विसज्जिउं तह वसंतशिरिदेवि । तस्स पिया वीरमई अणुगंतूण य नियत्तेइ ।।६६६६।। सिरिवम्मो वि कुमारो सभारिओ सपरिवारसंजुत्तो । तत्तो निग्गंतुणं निययावासम्मि संपत्तो ।।६६६७।। चितइ जह सिद्धपओयणो वि चिट्ठामि केत्तिए वि दिणे। एत्थेव जाव घाइयपुरिसा तुरया य होंति खमा।।६६६८।। जं व वसंतसिरीए सह वोलावयमुवागयं सेन्नं । तेत्तियदिणाइं तं पि हु चिट्ठउ एत्थेव गोट्ठीए ।।६६६९।। अह कुमरवीरपालो दूसलदंडाहिवेण सह गोटुिं । कुणमाणो रयणीए पमुइयचित्तो वयइ एवं ॥६६७०॥ चारु तए कयमेयं जमेत्थ हक्कारिया वसंतसिरी । तसणेण जम्हा नयणफलं गहियमम्हेहिं ।।६६७१।। लोओ जं वन्नंतो तीसे रूवं तमप्पयं चेव । जं दिटे अम्हेहि तं तत्तो लक्खगुणियं तु ॥६६७२।। इच्चाइ जंपिऊणं सुत्तो पवरम्मि वासभवणम्मि । उठेऊण पभाए वच्चइ पासम्मि नियपिउणो ॥६६७३।। दूसलसेणाहिवई तं अणुगतूण तेण सिक्खविउं । विणियत्तिओ सठाणे पत्तो सिरिवम्मकुमरस्स ।।६६७४॥ पेसेउं नियपुरिसं कहावइ जहज्ज वीरपालेण । पिउपासे वच्चंतेण मज्झ सिक्खा इमा दिन्ना ॥६६७५।। जाव सिरिवम्मकुमरो इह चिट्ठइ ताव तस्स पासम्मि । गंतव्वं निच्च तए कायव्वं तह तयाइ॥६६७६।। ता इन्हि पि समीवे तुम्हाण उतओ अहं किंतु । तस्सेव य कज्जेणं अक्खप्पिओ कि पि चिट्ठामि ।।६६७७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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