Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 211
________________ १७८ सिरिवम्मकुमारचरियं तस्स य दाहिणभुयदंडसन्निहाणम्मि जाव उवविट्ठो। निवमुहनिविट्ठदिट्ठी चिट्ठइ सिरिवम्मवरकुमरो।।५७०७।। ताव पणिवायपुव्वं आगंतुं झत्ति दारवालेण । विन्नत्तो नरनाहो जोडियनियपाणिजुयलेण ।।५७०८।। जह देव! दारदेसे चिट्ठति समागया नरा दो वि । दुव्वलदेहामलिणियदंडीखंडेहि ठइय-तणू ।।५७०९।। बद्धवणपट्टया बाहु-जंघमूलेसु देव ! पायाणं । इच्छंति दसणं ते तेसि को देव ! आएसो ॥५७१०।। तो झत्ति पवेसेहि त्ति जंपिए नरवरेण पडिहारो। तेसिं पवेसणत्थं नियत्तिऊणं वयइ दारे ।।५७११।। राया वि कलुसियमणो चिंतइ जह केवि किं इमे वरया । केहि वि चोरेहि पहम्मि पमुसिया आहया य तहा गरुओ एस पमाओ मंडलआरक्खिएहितो विहिओ। जं एवमुद्दवकारओ जणो वियरइ जहिच्छं ।।५१३।। अह ते वि परोप्परमेवजुज्झिया कारणेण कणा वि। तह वि हु निओगियाणं पमायपरिविलसियं एयं ।।५७१४।। किमेमेहिं वियप्पेहि अहवा एए सयं मुहेणे व । इन्हि चिय जहवत्तं सरूवमम्हं कहिस्संति ।।५७१५।। एत्यंतरम्मि पत्ता पडिहारपवेसिया नरा दो वि । पुव्वकहियस्स रूवा नमिऊण निवं समवविठ्ठा।।५७१६।। भूसन्नाए पुट्ठा निवेण ते जोडिऊण करजुयलं । अन्नोन्नं वयणाइं पलोइऊणं तओ एक्को ।।५७१७।। इयरेण अणुन्नाओ विन्नवइ निवं इहत्थि भरहम्मि । वासवउरं ति नयरं वासवदत्तो तहिं राया ॥५७१८॥ वासवसिरी य भज्जा तस्स नरिंदस्स ताण संजाया । नामेण वसंतसिरी धूया अइसयपवररूवा ।।५७१९।। जीसे पासम्मि ठिया मयरद्धयसुंदरी वि दासि व्व । पडिहासइ सेसाणं नारीणं कहं पि को कुणइ ।।५७२०।। सा गह्यि समुचियकला कमेण अह जोव्वणं समणुपत्ता।देवाण विहरइ मणं मणुयाण न का वि पुण गणणा।५७२१। समहिगयसत्थपरमत्थसाहणे भारइ व्व पच्चक्खा । जुत्तिजुयं जपंती सक्खं मुत्ति ब्व सुरगुरुणो ।।५७२२।। उज्जाणसंठिया सा पडिम कामस्स पूयए निच्चं । अट्ठाहियं च कारइ वसंतसमयम्मि पहबरिसं ।।५७२३।। एत्तो दंतउरपुरे अत्थि नरिदो महाबलो नाम । तस्स य सुदंसणो नाम नंदणो अत्थि गुणकलिओ ।।५७२४।। तस्स य समीवसेवयनरेण एक्केण कज्जजोएण । तत्थागएण दिट्ठा सा अट्ठाहियसमयमझे ।। ५७२५।। तेण कयसकज्जेणं गंतूण तओ पुरम्मि दंदउरे । कहिया कुमरस्स सुदंसणस्स पुरओ वसंतसिरी ।।५७२६।। रूवाइगुणसमेया तं सोऊणं सुदंसणो जाओ । मयणसरपहरविहुरो अरइसमुद्दम्मि निबड्डो ।।५७२७।। तस्स वयंसेहि इमो अट्ठो नाउं महाबलनिवस्स । कहियो तेण वि दूयं पट्टविउं वासवउरम्मि ।।५७२८।। वासवदत्तो राया धूयं मग्गाविओ वसंतसिरि । नियसुयसुदंसणकए तेण वि कयमुत्तरं एयं ।।५७२९।। जह किर सयंवरामंडवो मए चिट्ठए समारद्धो । धूयाए वसंतसिरी नामाए विवाहकज्जम्मि ।।५७३०।। तत्थ महाबलराया कुमरो य सुदंसणो तहा अन्ने । रायाणो रायसुया य सुबहुणो आगमिस्संति ।।५७३१।। जो को वि तीए दिट्ठो पडिहासिस्सइ नियस्स चित्तस्स । तस्स खिविस्सइ एसा वरमालं कठदेसम्मि ।।५७३२।। वासवदत्तस्स इमं पडिवयणं तेण दूयपुरिसेण । गंतूण महाबलपस्थिवस्स कहियं इमेणावि ॥५७३३।। जयाणावियं सुदंसणकुमरस्स इमो वि तीए अणुरायं । नियहिययाओ न मुयइ बाहि जाणावए न उणो।।५७३४।। एत्तो य वसंतसिरी जत्ता समयम्मि मयणपडिमाए। देसंतरागयाणं बंदिजणाणं च वणियाणं ।।५७३५।। वयणेहि कुमरसिरिवम्मगुणगणुगन्भिणेहिं दढं । सवनप्पत्तेहि हया मयणसरेहिं व हिययम्मि ।।५७३६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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