Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
अह तीए वणसिरी पियवयंसिया निहुयमेवसवणम्मि। होउं भणिया जह जत्तकरणओ अज्ज मे भयवं ।।३७।। मयरद्धओ पसन्नो तीए भणियं कहं वसंतसिरी । आह तओ जइ न कुणसि रहस्स भेयं इमं मज्झ ॥५७३८ ।। तो साहेमि असेसं तुज्झ पुरो नियमणोगयं भावं । तो वणसिरी पयंपइ कुमरि किमेवं समुल्लवसि ॥५७३९।। कि कइया वि मए तुह रहस्सभेओ पुरा वि अत्थि कओ। तो वयइ वसंतसिरी मा रूससु पियसहि तुमं मे ।।५७४०। परिहासो एस कओ एमेव मए तए सह वयंसि । हिट्ठमणाए जं किर सिद्धं वसमी हियं मन्ने ।।५७४१ ।। जेण इह सव्वकालं कुओ वि देसंतराउ के विनरा । एंति तहा वन्नंति य नियनिय देसाहिवकुमारे ।।५७४२।। मज्झ मणं न मणगंपि हु अणुरायं तेसु बंधइ कया वि । चंदउरिसामिणो पुण नरपुंगवमेइणीवइणो ।।५७४३।। तणयस्स नाममेत्ते गहिए सिरिवम्मवरकुमारस्स । सहस त्ति गरुयपरिओ सपूरियं मे मणं जायं ।।५७४४।। चिट्ठतु ताव दूरे सरइं दुकरुज्जलागुणा तस्स । तइंसणूसुयत्तं जणेइ तन्नाममेत्तं पि ॥५७४५।। ता एस पभावो वम्महस्स सव्वो वि भगवओ तस्स । संकमिऊण मह मणे जेण कओ एरिसो भावो ॥५७४६।। अह वणसिरी पयंपइ वसंतसिरि पेसिऊण नियपुरिसं । अभितरयं कंचि वि चंदउरीए वरपुरीए ।।५७४७।। रूवाइगुणा सव्वे वि तस्स सिरिवम्मवरकुमारस्स । जाणिज्जंतु तओ पुण अणुराओ तम्मि तुह जुत्तो।।५७४८।। तो वयइ वसंतसिरी पियसहि ! को संसओ इमो तुज्झ। जंकिर तस्स गुणाणं ईहेसि परिक्खणं काउं ।।५७४९।। वम्महदेवेणं चिय तस्स कया चिट्ठए गुणपरिक्खा । तं अहिगिच्च कओ मे जेणेवं गाढमणुराओ ।।५७५० ।। तो भणइ वणसिरी जह सामिणि किं दूसणं हवइ एत्थ । जइ नियपुरिसो एगो पेसिज्जइ तस्स पासम्मि ।। जो तं पलोइऊणं वीसइदिणे पुणो वि इह एइ । तीए उवरोहेणं मन्नइ एयं वसंतसिरी ॥४७५२।। अभितरयं पुरिसं दिन्न दुइज्जं निरूवए तत्तो। चंदउरी गमणत्थं तो जंपइ वणसिरी एवं ॥५७५३।। एक्को चित्तयरजुवा पेसिज्जउ सह इमेहि तत्थ जहा । सिरिवम्मकुमररूवं सो लिहिऊणं इहाणेइ ।।५७५४।। एयं पि कयंतीए पट्ठविओ सो वि तेहि सह तत्थ । ते तिन्नि वि गंतणं चंदउरीए तओ तत्तो ।।५७५५।। विणियत्ता कयकज्जा वीसहि दिवसेहिं वासवउरम्मि। पत्ता पुणो वि मिलिया वासवदत्तस्स धूयाए ।।५७५६।। तत्थ वसंतसिरीए पुरओ फलयम्मि दंसियं लिहियं । सिरिवम्मकुमररूवं चित्तयरसुएण भणियं च ।।५७५७।। जं तस्स मए रूवं दिळेंतं सव्वमेवपडिपुन्नं । लिहिउं न सक्कियं किंतु किं पि उद्देसमित्तमिणं ॥५७५८।। लिहिऊण आणियं इह इय सोऊणं तओ वसंतसिरी। संजाया कसणमुही सा पुट्ठा वणसिरीए तओ ।।५७५९।। हरिसट्ठाणे वि तुमं सामिणि जायासि कीस कसणमुही । तो वयइ वसंतसिरी सहि! तुह पच्छा कहिस्सामि।५७६०। पुच्छामि ताव संपइ एयं पुरिसं समागयं तत्तो। सेसं सिरिवम्मकुमारसंतियं वरगुणकलावं ॥५७६१।। अह तीए पुच्छिओ सो पुरिसो साहेइ तस्स कुमरस्स। सोहग्गवयणविन्नासवायपमुहो गुणसमूहो ।।५७६२।। लेसेण वि वन्नेउं सक्किज्जइ ने य तियसगुरुणा वि । अम्हारिसो य मणुओ अप्पमई केरिसो तत्थ ।।५७६३।। दाऊण वसंतसिरी पसायमेए विसज्जए तत्तो । चित्तफलयं समीवे अप्पेउं वणसिरीए तओ ।।५७६४।। एगते होऊणं नियमुहकसणत्तकारणं कहइ । तीसे पुरओ पियसहि एयं पि हु चित्तफलयम्मि ।।५७६५।। जं अथिलिहियरूवं दीसंतं तं पि विम्हयं जणइ । जं पुण तस्स सरीरे चिट्ठइ साहावियं रूवं ।।५७६६।। तं किं पि अणन्नसमं लक्खगुणेणं पहाणयं होही। एय महं चितंती भीया जाया विविन्नमुही ।।५७६७।। को जाणइ तस्साहं पडिहासिस्सामि किन्न दिट्ठा वि। अह वणसिरी पयंपइ सच्चं सामिणि तए भणियं ।।५७६८।। किंतु परं सव्वे ण य वम्महदेवो समीहियवरस्स । जइ तुह दाया होही तुमं पि रुच्चसि तओ तस्स । ।५७६९।।
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