Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 177
________________ १४४ सिरिचंदकित्तचरियं चंकमणवेयकंपियकणंतकलकिंकिणीवियाणेहिं । नीहरिय-महुर-महयर-झंकार-रवाउलेहिं च ॥४६३६।। विज्जाहररज्जं साहिऊण निय नयरमावयंतस्स । गयण-पहेणं तस्सेव खेयरिंदाणचक्किस्स ।।४६३७।। गयणसिरीए गयणंगणम्मि हरिसेण पयरिएहि व । वियसियतामरसेहिं नाणाविहवन्नसुहएहि ।।४६३८।। वसुकेउ-वासवेहिं दोहिं वि खयरेहि चंदउरनयरे । गंतूणं निवभवणे निवसेवयलोयमज्झम्मि ।।४६३९॥ पवरम्मि आसणे संठियस्स सुहुममइ-सचिव-तिलयस्स । पुरओ कहियं जह चंदकित्तिखरिदवरचक्की।४६४०।। संवहमाणो चिट्ठइ आगमणत्थं इमम्मि नियनयरे । पट्टविया तेणम्हे तुम्हं जाणावणट्ठाए ।।४६४१।। इयविज्जाहरवयणं सोऊणं सुहममइमहामंती । हरिसियचित्तो सह सव्वरायलोएण कारेइ ।।४६४२।। कोडुंबियपुरिसेहि सव्वत्थ महूसवं पुरे तम्मि । कुंकुम-रस-सित्त-समग्ग-मग्गमूसिय-पडायं च ॥४६४३।। अहिणवपट्टसुय-वेढिएहि मुत्ता-वऊल-रुइरेहिं । विहियबहुभूमिएहिं आलिंगंतेहिं गयणयलं ॥४६४४।। ऊसिय-धवलधएहि रणंतकलकिंकिणीकलावहिं । विरइयसब्बुत्तमवेस-वेसविलयाहिं कलिएहि ।।४६४५।। ठाणेठाणम्मि निवेसिएहिं उच्चेहिं मंचनिवहेहिं । अच्छरसासहिएहि व सुरिंदपेसियविमाणेहिं ।।४६४६।। सोहंतरायमगं मग्गम्मि अलब्भमाणअवयासं । पुरिसेहिं पहरिसाओ इओ तओ संचरंतेहिं ॥४६४७।। गेहेगेहम्मि निबद्धतोरणं गिज्जमाण-मंगलयं । अप्फालिय-वरतूरं हरिस-पणच्चंत-तरुणियणं ॥४६४८।। वसुकेउ-वासहिं विज्जासामन्यओ नयरबाहि । कारियपासाएहि खरिदाणं निवासकए ।।४६४९।। मणुइंद-नयर-सोहा विणिज्जिएणेव अमरनयरेण । विरइज्जमाणसेवं विरायमाणं विसेसेण ।।४६५०।। वसुकेउ-वासवा मंतिअणुमया सम्मुहा तओ चलिया । एतस्स चंदकित्तिस्स नहयले अंतरे मिलिया ॥४६५१।। साहेति पणमिऊण जह चंदउरम्मि देवनयरम्मि। सुहुममइमंति पमुहो चिट्टइ उक्कंठिओ लोओ ।।४६५२।। तुम्ह पयपंकयाणं दंसणकज्जम्मि कयपवेसमहो । मंतिपुरओ कहामो तुम्हागमणं पुरो गंतुं ।।४६५३।। सिरिचंद-कित्तिणा ते अणुनाया आगया पुणो तत्थ। मंतिस्स कहंति जहा नियडो पत्तो खयरचक्की ॥४६५४।। तं सोऊणं मंती विणिग्गओ सम्मुहं नरिदस्स । सामंति-मंति-मंडलिय-तंतवालाइलोएण ॥४६५५।। थडढेहि हयवराणं घडाहिं तह मत्त-गयवराणं च । पंतीहिं रहवराणं संघाएहि पयवराणं ॥४६५६।। नायर-जणो वि सव्वो निय नियविदेण झत्ति नीहरिओ। अणुमग्गेणं चिय तस्स मंतिणो सव्वविभूईए ॥४६५७।। पमयाउलाई गायण-वायण-बंदाई बंदि-निवहो य । पहरिसपरवसप्पा सब्बो नीहरइ नयराओ॥४६५८।। एवं कयसमुदाओ ताव गओ सो जणो समग्गो वि । जाव कमेणं पत्तो मणोरमुज्जाणपरभाए ॥४६५९।। पत्ता विमाणपंती नयणपहं तत्थ तस्स लोयस्स। तं दटठं सो जाओ अणिमिसनयणो सूरजणो व्व ॥४६६०।। विम्हइयमणो चितइ सबो विहु पुरजणो जहा पेच्छ । केरिसमच्छरियमहो इमस्स अम्हाण सामिस्स।।४६६११ एक्केण विमाणेणं एक्कंगे णेव निग्गओ तइया । नियनयराओ गिरिकाणणाओ केसरिकिसोरो व्व ॥४६६२।। संपइ पुण संपत्तो बयसहस्सेहिं सह विमाणाणं । विज्जाहर-कोडीहि य भिच्चत्तणमुव्वहंतीहिं ।।४६६३।। सप्पुरिसाणं जायइ सोहाए निमित्तमेवपरिवारो। सिद्धी पुण कज्जाणं ताणं निय भुयबले वसइ ॥४६६४।। इय चितंतस्सेव य पच्चोणी निग्गयस्स लोयस्स । सो संपत्तो सह सत्ति तस्स पासे खयरचक्की ॥४६६५।। नूमीए आसन्नं कारावेऊण तो नियविमाणं ! मणिचूडबाहुलग्गो तत्तो उत्तरइ नरनाहो ॥४६६६।। वसुकेउ-वासवा पुण कहंति मंतिस्स पुच्छिया तेण । एक्केक्केणं नामाई खेयरिंदाण सव्वेसि ॥४६६७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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