Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१४८
सिरिचंदकित्तचरियं
इय भणिउं दाऊणं तंबोलं ते विसज्जए सड्ढे । जाइ सयं मणिचूडो पासे निवचंदकित्तिस्स ।।४७६७।। गंतूण तस्स सो विन्नवेइ जह देव ! आगओ एत्थ । अत्थि गुणभद्दसूरी मणोरमुज्जाणआसन्नो ।।४७६८।। पासम्मि जस्स ताओ पव्वइओ अम्ह रयणचूडनिवो । ता तस्स वंदणत्थं गम्मउ संपइ मुणिदस्स ।।४७६९।। तुम्हेंहिं जस्स भवणे जुयाइदेवस्स अत्थि पारद्धा । जत्ता संपइ जाणइ तस्स गुणे एस नीसेसे ।।४७७०।। अन्नं पि अत्थि नाणं एयस्स अइंदियं जओ मुणइ । पुट्ठमईयं सव्वं अणागयं वट्टमाणं च ।।४७७१।। आगंतूणं कहियं एएण मुणीसरेण तायस्स । वीसदिणाणं मज्झे आउं तह चेव तं जायं ।।४७७२।। विन्नत्तिमेवमायन्निऊणमणिचूड-खेयरिदस्स । मुणिदंसणाहिलासी जाओ सिरिचंदकित्तिनिवो ।।४७७३।। सूरिस्स समागमणं कुओ वि नाउं पभावई एवि । पट्टविया मंजुलया नरिंदपासम्मि विनविउं ।।४७७४।। तीए वि तम्मि समए आगंतुं चंदकित्तिनरनाहो । विन्नत्तो जह देवी पभावई देवपायाणं ।।४७७५।। एवं विन्नवइ जहा गुणभद्दमुणिंदवंदणनिमित्तं । जामि अहं आएसं जइ देवो देइ मह इन्हि ।।४७७६।। तो भणइ चंदकित्ती मंजुलयं जह तुम भणहि गंतुं । देवि जह संवहिउं सा चिट्ठइ संपयं सिग्धं ।।४७७७।। अम्हे वि तस्स वंदणकज्जेणं झत्ति जं गमिस्सामो। तो अम्हेहि समं सा वि जाइ तुह सामिणी जेण ।।४७७८।। गंतूण तीए कहियं पभावईए तओ पहिट्ठासा । संवहिउँ झत्ति ठिया रायाहवणं समीहंती ।।४७७९।। नियदासी पासाओ पभावईए कहावए राया। जह अम्हे संचलिया तुम पि आगच्छ सिग्घं पि ।।४७८०।। अन्नाहिं वि देवीहिं समन्निया सा वि तो तयं सोउं । साहइ अन्नासि पि हु देवीणं ताउ सोऊणं ।। ४७८१।। एवं पहिठ्ठहियया संवहिउं तो पभावईए वि। सह जंति रहारूढा अणुमग्गेणं नरवइस्स ।।४७८२।। गंतणं उज्जाणे ओयरिउं वाहणाउ नरनाहो । सिरिचंदकित्तिनामो नमइ मुणिदं कयाणंदो ॥४७८३।। देवीओ वि सव्वाओ उत्तरिउं तयणु रहवरहितो। वंदति तं मुणिदं तहेव मणिचूडखरिदो ॥४७८४।। सेसो वि हु परिवारो नीसेसो पणमए मुणिवरिंदं । अह रन्ना सह सव्वे उचियपएसे निसीयंति ।।४७८५।। सूरी वि धम्मलाभं तेसिं दाऊण देसणं कुणइ । जं किर अणाइजीवा अणाइकम्म अणाइभवो ।। ४७८६।। मिच्छत्ताईया वि हु अणाईया कम्मबंधणनिमित्तं । जीवाण हुंति बद्धा तेण तओ ते भमंति भवे ।। ४७८७।। नरएसुं तिरिएसु य कुच्छियमणुएसु हीणदेवेसु । दुक्खाइं सुतिक्खाइं निरंतराइं पि विसहंता ।।४७८८।। तत्ताउ वि भट्ठाओ अणंतगुण ताव संगया नरया । तेसुप्पन्ना जीवा खणे खणे निरयवालेहिं ।। ४७८९।। सिय-भल्ल-कुंत-तोमर-सएहिं विज्झंति तिक्ख-वासीहि । कटुं व तच्छ्यिंति य पच्चंति य तेल्ल-कुंभीसु ।। कंदंति य विलवंति य करुणाई भणंति पायपणयसिरा । तह वि हु ते दीणमुहा मुच्चंति न निरयपालेहिं ।४७९१। तिलमित्तखंडिया वि हु पव्वयपडणेण चुन्नियंगा वि । दड्ढा वि हु भग्गा वि हु न मरंति पुणो तहा हुंति ॥४७९२।। इह माहहिमाओ वि हु अणंतगुणसीयला महानिरया । चिळंति केइ तेसु य तत्तेहिं तो दुहमणं तं ।।४७९३।। इच्चाइनरय-दुक्खं वास-सहस्सेण जीहसहसजुओ । जइ कहइ को वि तह वि हु न तरइ सव्वं पि तं कहिउं ।। मणुएसु दासपेसत्तणाइदुक्खं तु तुम्ह पच्चक्खं । आरा-कसंकुसाई घाय-वहाईयतिरिएसु ।।४७९५।। हीणेसु सुरे दुहं परआणा करणओ अइ महंतं । पररिद्धिदंसणे तह जायइ ईसानलसमुत्थं ।।४७९६।। इय नाउं मिच्छत्तं पढम चिय ताव होइ चइयव्वं । गहियव्वं सम्मत्तं सोक्खनिमित्तं तयत्थीहिं ।।४७९७।। अह पुच्छइ नरनाहो मिच्छत्तं होइ केरिसं जस्स । परिहारो कायव्वो केरिसयं तं च सम्मत्तं ।।४७९८।। तुम्हेहिं जस्स गहणं कायव्वं कहियमम्ह तं सव्वं । पुण स वियारं अक्खह करिमो जह तह तहच्चेय ।।४७९९।।
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