Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 182
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरिय आह् गुरुमिच्छत्तं तं भन्नइ जस्स उदयओ जीवा । वीवरीयं सव्वं पिहु तत्तं पेच्छेति विउसा वि ॥ ४८०० ।। देवत्तगुणो एक्को विनत्थि जस्सेह तंपि देवं ति । मन्नंति गुरुगुणेहिं मुक्कं पि गुरुत्तबुद्धीए ||४८०१ ।। पाप हु बुद्ध धम्मस्स गर्णेति एरिसं एयं । मिच्छत्तं तित्थयरेहिं वन्नियं मुणसु नरनाह ।।४८०२ ।। जो देव - गुणेहिं जुओ सो देवो जो य गुरुगुणसमेओ । सोउ गुरु निरवज्जो जो उण सो निच्छिओ धम्मो ॥। ४८०३ || सो अवसओ जायइ जीवस्स कोवि जो विमलो । तं संमत्तं ति वयंति जिणवरा विमलनाणधरा ।।४८०४ ।। नय रागो न य दोसो न य मोहो होइ जस्स 'देवो । जो रागाईहिं जुओ सो उण नेओ अदेवो त्ति ।।४८०५ ।। रागो कलत्तसंगेण नज्जए पहरणाण वहणेण । दोसो फुडो मुणिज्जइ मोहो वि अजुत्त वयणेहिं ॥४८०६॥ रागादोसको अरहंतो चेव सो परं देवो । तस्सेवाणाए ठिया गुरुणो वि सुसाहुणो नेया ||४८०७ ॥ कोह- माणमुक्का माया -लोभेहिं वज्जिया निच्चं । रुद्धेति इंदियपसरा दयावरा सव्वजीवेसु ||४८०८|| सत्सु य मित्ते य समचित्ता चत्तपुत्त-संबंधा । इच्चाइगुणगणजुया परोवाएसम्म उज्जुत्ता ||४८०९ ।। सोच्चि धम्मो जत्थ य मणेण वयणेण तह य कारण । वारिज्जइ परपीडा कीरंती निच्चकालं पि ।। ४८१० ।। अलिय-वयणं न भन्नइ गिन्हिज्जइ ने य परधणमदिनं । मुच्चइ मेहुणवंछा मुच्छा न निए वि देहम्मि ।।४८११ ।। रणी-भोयणविरई एवं सावज्जजोगपरिचत्तो । सव्वत्थ वि निरवज्जो धम्मो पडिवज्जियव्वोउ ।।४८१२ ।। एवं कहियगुणेहिं रहिओ न गुरू ने य धम्मो वि । जो तं पि गुरूं मन्नइ धम्मं वा तस्स मिच्छत्तं ॥ ४८१३।। भवं पुदुक्ख इन्हि चिय वन्नियं पुरो तुम्ह । ता मिच्छत्तं मोत्तुं सम्मतं गिन्ह जह भणियं ॥। ४८१४ । । सम्मत्तम्मि पवन्ने रुद्धारं नरय- तिरिय-गमणाई | नर - सुर-सिव - सोक्खाई हवंति करयलगयाई व ।। ४८१५।। अह आह चंदकित्ती भयवं ! तुम्हेहिं जह इमं कहियं । मिच्छत्तं सम्मत्तं भवस्सरूवं च तं सव्वं ॥ ४८१६ ।। चित्तम्मि अवयं में तहत्ति इन्हि समाइसह किच्चं । अह ओहीनाणेणं नाऊण गुरु जहाएसो ||४८१७।। सम्मत्तमेत्तजोग्गो संपइ तं चेव तो पयच्छामो । एयस्स इय विचितिय भणइ जहा राय गिन्हाहि ||४८१९।। मिच्छत्तचायनियमं सो वि य गिन्हेइ उट्टिऊण तओ । जह अज्जप्पभिइ मए तिविहं तिविहेण मिच्छत्तं ।।४८१९॥ परिचत्तं सम्मत्तं पुण पडिवनं तहेव जा जीवं । संका - कंखाईया परिचयव्वा य अइयारा ।।४८२० ।। सामंत-मंतिमाई वि के वि सम्मत्तमहिणवं पत्ता । जेसि न आसि पुव्वं तहावरोहं गणाओ वि ।।४८२१ ।। अह पुण विन्नवइ गुरुं नरेसरो जह जुयाइजिणभवणे । कल्ले कल्लाणदिणा आरम्भे भविस्सए जत्ता ||४८२२ || ता काऊ पसायं अम्हाणं उवरि तेत्तियदिणाणि । एत्थ पडिक्खेयव्वं आगंतव्वं च जिण - भवणे ||४८२३ ।। तह पडिवन्ने गुरुणा तं नमिउं जिणहरम्मि गंतूण । देवमभिवंदिऊणं राया पत्तो नियावासं ।।४८२४।। सेसं विसज्जिऊणं मणिचूडनरेसराइपरिवारं । आइसइ सुत्तहारं हक्कारेऊण जह एगं ।। ४८२५ ।। फलिहरयणामयं कुण जुयाइजिणदेवसंतियं पडिमं । सव्वावयवविभत्तं नयणमणानंदसंजणयं ॥ ४८२६ ।। जिणभद्दसावयं तह हक्कारेऊण भणइ नरनाहो । जह एस मुत्तहारो तज्जेयव्वो तए निच्चं ।। ४८२७।। निष्फायइ जह सिग्धं जुयाइजिणपडिममेत्थआभारो । तुज्झ च्चिय मीसेसो अम्हे पुण इह निराभारा ।।४८२८। तो पविन्ना से दोवि विसज्जेइ सो महाराओ । तंबोलपयाणाई काऊणं गरुयसम्माणं ।।४८२९।। सिरिचंदकित्तिराया सयं सकज्जेसु वावडो होइ । जायम्मि पभायम्मिओ हक्कारेउं समाइसइ ||४८३०।। नयरारक्खं दुज्जोहणमेवं जं तए समग्गो वि । चारयगिहाउ लोओ मोत्तव्वो झत्ति इन्हि पि ।।४८३१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only १४९ www.jainelibrary.org

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