Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 198
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं अह् सो पंर्चाहं धाइहिं परिगओ पइदिणं पि वड्ढतो । नवससहरो व्व गयणे भवणे नरपुंगवनिवस्स ।।५३१४।। । नीसेसरिजणस्स खीरनीरायरम्मि व मणम्मि । सलिलस्स व कल्लोले हरिसस्स पवित्थरं नेइ ।। ५३१५ ।। संचरइ कराउ करं महग्घरयणं व थेवकयमुल्लं । सिरिवम्मकुमारो निवजणस्स विम्यपवन्नस्स ।। ५३१६।। अह जंपिउं पवत्तो अव्वत्तक्खरगिराहिं सो कुमरो । संजणइ परमसोक्खं कस्स ण सवणंतरासु ।। ५३१७।। तं चिय संभासंतो अवरोहजणो खणं न विरमेइ । नियसद्दविणिज्जियमत्त कोइलावेणुवीणरवं ॥ ५३१८।। अवरोहसुंदरीणं सोउं तस्सेव वयणमहिलासो । सिढिलीकयसुय-सारियविहंग - पाढणपयत्ताण ||५३१९।। निरुवमरूवं नवणीयमउयफासं सुगंधिनीसासं । परहुय - सुमहुर - सद्दं सिरिवम्मकुमारमणवरयं ।। ५३२०।। नयणेहिं निहालतो आलिंगंतो य निययहियएण । नासाए नीसासं अग्घायंतो य तह तस्स ।। ५३२१ । । सवणेहि निसुतो वयणं नरपुंगवाइरायजणो । सुहमिदियाण पावइ तेणेक्केण वि चउन्हं पि ॥ ५३२२।। arrafsयम्मि सगडे नाणाविहरयणजालजडियम्मि । अह सो लग्गकरग्गो चंकमणविलासमब्भसइ ।।५३२३ अइकोमलाई सुहलक्खणाई अहिणवकइ व्व संकंतो । सणियं सणियं ठावइ पयाइं सिरिवम्मवरकुमरो ।। ५३२४।। इयपइदिणं कुणंतो कमेण चंकमणपच्चलो जाओ । सो कत्थइ अविलग्गो वि कुट्टिमे चलइ लीलाए ।।५३२५ ।। कुंकुम - रसच्छडा सेयसोहिरे कुट्टिमम्मि मणिबद्धे । तम्मि चलते कुमरे पयपडिबिबे सुउट्ठति ।।५३२६।। सत्थिय-सरोय-कलस-च्छत्तायाराई लंछणवराई | काई पि जाई तेसुं घणसाररएण रेहाओ ।।५३२७।। अवरोहवहूओ पूरयंति कोऊहलेण सिक्खेउं । तारिसख्वाइं सयं पि जेण जाणंति आलिहिउं ।।५३२८ ।। नाणावन्नमहामणिविणिम्मिएहिं तुरंगमाईणं । पडिरूवेहि जहिच्छं अह सो कीलइ निवकुमारो ।।५३२९ ।। कुमरो परिप्फुडक्खरवाणीए जंपिरो जया जाओ । न तया कस्सइ सो जंपिऊण विरमंतओभिमओ ।। ५३३० ।। नियकणयपंजराणं पासे कुमरस्स संचरंतस्स । गिहकीर - सारियाओ कुणंति बहुचाडुवयणाई || ५३३१ ।। तप्पडिवयणायन्नणसयन्हहिययाउ कंखमाणीओ । सिक्खेडं तस्स परिप्फुडक्खरुच्चारसक्कारं ।।५३३२।। चउ-पंच-वरिसजम्मो सिरिवम्मो जाव सो निवकुमारो । जाओ ताव उरब्भं, तरुणं आणाविरं राया ।।५३३३ ।। चारेऊणं हरियं जवाइयं कारिऊणं बलवंतं । मुहदिन्नलोहकडियालियं च हत्थे गहियवग्गं ॥ ५३३४।। एक्केणं पुरिसेणं दक्खणं भूमिसंठिएव । कारिय चकमणसमं जाणाविय वग्गसंचारं ।। ५३३५ ।। परिकम्मिऊण एवं कंचणकवियं मुहम्मि दावेउं । कयपट्टसूत्तवग्गं आरोवियपवरपल्लाणं ॥ ५३३६।। आय पट्टां कंठमि कर्णत किंकिणीजालं । चउसु वि चरणेसु तहा वज्जिरसंजमियघग्धरियं ॥ ५३३७।। आरुणत्थं अप्पइतं सिरिवम्मस्स तस्स कुमरस्स । कयसिंगारो सो वि हु तत्थारूढो परिब्भमइ ।। ५३३८ ।। पासायांगणे दसुदिसासु पासट्ठिएहि पुरिसेहिं । धारिज्जतो आसणथेज्जत्थ कइ विदिहाई || ५३३९।। तयतरं सयं चिय आरोहइ तत्थ अवरपुरिसाण | साहेज्जेण विणा वि हु वाहेइय तं जहिच्छाए ।।५३४० ।। पुरओ धावंतेहि समाणजम्मे हि सेवयसुएहिं । दाहिणकरग्गसंठियमसिकसिणियकट्टखग्गे हि ।। ५३४१ ।। वामकरुप्पाडियखेडएहिं इयचाडुयं भणतेहि । जयजीवनंदसुइरं अवहारह आसणं कुमर || ५३४२।। अवरोहचारिणीओ दासीओ पइखणंपि तस्सुवरि । उत्तारिऊण लोणं खिवंति सव्वासु विदिसासु ||५३४३ ।। दक्खा खज्जूराईणि खाइमाई तहा बहुविहारं । तस्सुवरि भमाडेउं खिवंति तह चैव सव्वत्तो ॥ ५३४४।। मत्तू खगखेडयजुलाई महीयलम्मि अह तुरियं । सेवर्याडभा अहमहमियाए धावंति गहणत्थं ॥ ५३४५।। Jain Education International १६५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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