Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं
अन्ने वि ह कइवि दिणे अज्जाओ तत्थ संवसेऊण। वंदिज्जंतीयो निवेण जंति तत्तो विहारम्मि ।।५२४९।। पन्नाइ उज्जमण य विणएण य वज्जकुंडलणगारो । निय नामं व समग्गं दुवालसंग कुणड सिग्धं ।।५२५०।। अणुओगमणुन्ना ठावेऊणं च गणहर-पयम्मि । तह जिणमित्ताईयं समप्पिऊणं च परिवारं ।।५२५२।। देसेसु विसज्जड वज्जकुंडलं गणहरं विहारेण । विमलजसो सूरिवरो सयं पि अन्नत्थ विहरेइ ।।५२५२।। अह वज्जकुंडलगणी अप्पाणं संजमेण य तवेण । भावेमाणो नाणाविहदेसेसुं विहरिऊण ।।५२५३।। पडिबोहमणगाणं काऊणं भवियकमलसंडाणं । नाऊण सयबलेणं नियड निय आउपज्जतं ।।५२५४।। ठविऊण नियठाणे तहाविहं कं पि गुणगणनिहाणं । अणगारं तस्स गणं समप्पिऊण समग्गं पि ।।५२५५।। काऊण विचित्तेणं तवेण संलेहणं सरीरस्स । कोहाइकसायाण य नीलम्मि नगम्मि गंतण ।।५२५६।। पच्चक्खिऊण भत्तं मासं दियहाण अणसणं काउं। पाओवगमणपुव्वं कालं पत्तो समाहीए ।।५२५७।। कप्पम्मि बंभलोए उप्पन्नो सुरवरो महिड्ढीओ। दससागरोवमाऊ तत्थ वि भंजइ विउलभोए ।।५२५८।।
इय सिरिमुणिसुव्वयजिणिदचरिए सिरिसिरिचंदसूरिविरइए पंचमं छठं च भवग्गहणं समत्तं सिरिम निसुव्वयजिणिदस्स सप्तमो भवो सिरिवम्मकुमार चरियं-- पंचमओ तह छट्टो सिरिमणिसुव्वजिणिंदचरियम्मि । कहिओ मए भवो सत्तमं तु इन्हि पवक्खामि ।।५२५९।। एत्थेव जंबद्दीवे भारहवासम्मि दाहिणे अद्धे । मज्झिम-खंडे वर-गाम-नयरनियरेहि संकिन्नो ।।५२६०।। देसो अस्थि समिद्धो सुपसिद्धो सयलमेइणीवलए । नामेण सुरसेणो कणेहिं सूरो बहुविहेहिं ।।५२६१।। जलयागमस्स समए घणमालासामलस्स गयणस्स । परिभमिरबलायावलयकलियबहुमज्झभायस्स ।।५२६२।। उबहइ सिरि पसरियनवहरियं जत्थ मेइणी वलयं । सइरं वियरंतअणेयधवलगोमंडलाइन्नं ।।५२६३।। सरए सियभ-निब्भरनहंगणाभोयविब्भमं वहइ । नवकलम-सालि-तंदुल-रासीहिं कुडुम्बिखलभूमी ।।५२६४।। हेमंतम्मि महाहिमहया वि संधिज्जए कमललच्छी । जत्थ जलागयजुवई वयणेहि खणं सरवरेसु ।।५२६५।। सिसिरम्मि काणणाणं तलेसु घणपडियपन्नपूरेसु । सिहरेसु नवुग्गयबहलपल्लवुल्लसियसोहेसु ।।५२६६।। चंकमणकिलंताणं मज्झन्हदिणिदतवियपहियाण । अकयपयत्ताण वि होंति सत्थरासीयलच्छाया ।।५२६७।। महरा वि परयरवा जत्थ वसंतम्मि तरुणपहियाण । संभरिय-पिययमा जंपियाण उब्वेयया होति ।।५२६८।। गिम्हम्मि वि उम्हघणे दिया वि दीहरपहे वि पहियजणो । आसन्नासन्नजलासयम्मि न कुणइ जलुबहणं ।५२६९। ठाणट्ठाणा वारियसत्ते लब्भंतमणहरा हारे । नाणाविहासु देसियकुडीसु संपत्तसुहवासे ।।५२७०।। मोहंधमणुयकारियकामुयजणदइयकामसत्तेसु । जुवइजणसंगमसुहे मुहाए संपज्जमाणम्मि ।।५२७१।। आरोग्गसालनिवहे सव्वचिगिच्छं गगणसमाइन्ने । नीरोगी कीरंतेसु सायरं रोगिपुरिसेसु । ।५२७२।। इय सव्वपयारेहि जम्मि समुप्पज्जमाणदेहसुहा । चिरपवसिया वि पहिया नियगेहसुहस्स न सरंति ।।५२७३।। इय एवमाइबहुगुणसुहए देसम्मि अत्थि पुरी। चंदउरी नामेण रमणिज्जा अमयनयरि व्व ।।५२७४।। बहु बुहगुरु-कइरिसिगणसहिया हसइ व्व जा सुरिंदउरि । एक्केक्क कइगुरुबुहं समन्नियं सहि रिसीहि।।५२७५ ।। देसे कत्थइ जं अत्थि किं पि सव्वं पि वत्थ तं तत्थ । कप्पतरुलयाए इव पाविज्जइ पुन्नवंतेहिं ।।५२७६।। तं नयरिं परिवालइ राया नरपुंगवो जयप्पयडो । अनिवारियकरपसरो सया विवाएय चावे य ।।५२७७।। वियडीरउकरोडघडकरडपाडणप्पयडपारिसप्पसरा। पसरतसियजसोहो सोहोहामियतियसनाहीं ।।५२७८॥ सव्वावरोहपवरा तस्स नरिंदस्स सहयरी आसि । पुन्नसिरी नामेणं पुन्नससिच्छायमहकमला ।।५२७९।। तीए समनिओ सो महानरिदो विरायइ जणम्मि। मयरद्धओ व्व नियभारियाए समलंकिओ सक्खं ।।५२८०।। पंचप्पयारनिरुवम-विसयसुहासत्तमाणसाण तओ। जिणधम्मरयाण य ताण वासरा अइगया बहुया ।।५२८१।।
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