Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१५२
वज्जकुंडलचरियं जाणावइ मणिचूडं वेयड्ढनगम्मि सेसखयरेवि । संगामसीहपमुहे पेसेउं तत्थ खयरदुगं ।।४८९७।। तत्तो नायसरूवा समागया ते वि रायपासम्मि । तो अरिसीहकुमारं रज्जे अहिसिंचइ नरिंदो ।। ४८९८।। विमलमई सहममइस्स नंदणं ठावए य मंति-पए। अहि-अरिसीहरिदस्स रज्जलोयं समप्पड ॥४८९२।। अरिसीहमहाराओ जिणहर-पूया इयं महामहिमं । कारेइ विभूईए निक्खमणे चंदकित्तिस्स ।।४९०० ।। अह कय सुहसिंगारो आरूढो मत्तसिंधुरक्खंधे । गंतूण सूरिपासे गिन्हइ दिक्खं निवो झत्ति ।। ४९००१ सुहुममइमंतिपमुहा पुरिससयातिन्नि निवइणा सद्धि । पव्वइया भूगोयरखेयरवग्गाण मज्झाओ ।।४९०२।। देवीओ वि पभावइ पमुहाओ सपरिवारसहियाओ। गिन्हंति वयं संसारदुक्खनिम्विन्नहिययाओ ।।४९०३।। जह चंकमणं ठाणं भोयण-सयणासणं च कायव्वं । जह भासियव्वमेमाइसिक्खवेऊणसव्वं पि ।।४९०४।। जइजणकिरियं गुणसिरिपवत्तिणीए समप्पए सूरी । गुणभद्दो पंचसए पभावई पमुहअज्जाणं ।।४९०५।। साहूण चंदकित्तिप्पमुहाणं सयतिगं सपासम्मि । सिक्खविऊणं किरियं अज्झावइ अइपयत्तेण ।।४९०६।। साहू य चंदकित्ती बारसअंगाइथेवदियहहिं । पडिपुन्नाइं अहिज्जइ अह सूरिपए पइट्टविओ ।।४९०७।। सो नियगुरुणा तं चिय समप्पिउं सयतियं सुसाहूणं । अह चंदकित्तिसूरी विहरइ सह तेहि देसेसु ।। ४९०८।। पडिबोहंतो बहु भविय-कमल-संडाई चंदभाणु व्व । दिक्खेउं बहुसीसे सुहअज्झवसाण संपन्नो ।। ४९०९।। उप्पन्नविमलनाणो सूरिपए ठाविउं नियं सीसं । मासं विहियाणसणो धूय-कम्मो सो सिवं पत्तो ।।४९१०।। एत्थंतरम्मि मउलिय-कर-जुयलं मत्थए निवेसेउं । कुणइ पणामं सिरिचंदकित्तिणो सूरिणो कुमरो ।।४९११।। सो वज्जकुंडलो तह जिणमित्तं सावगं पसंसेइ । जह अज्ज तए अम्हे अमयरसेणेव संसित्ता ।। ४९१२।। सिरिचंदकित्तिचरियं जं कहियं वित्थरेण इय एवं । तो जिणमित्तो पभणइ अज्ज वि संखित्तमेवेयं ।। ४९१३।। तुम्ह मए परिकहियं तेण पुणो सुजससूरिणा तइया । मासेणं दियहाणं सवित्थरं एयमक्खायं ।।४९१४।। पुव्वभवरिद्धिवन्नणनियकारियपूयदंसणपमोओ । रायभवजणय-जणणीवन्नणसुमिणाइवन्नणयं ।।४९१५।। गब्भम्मि डोहलो जम्मकालवद्धावणं कलागहणं । जोव्वण-कीलावन्नण-रज्जहिसेयाइयं सव्वं ।। ४९१६।। तेहि अइवित्थरेण कहियं मुक्कं मए पुण समग्गं । पुव्विल्लं रज्जाओ आरम्भ निवेइयं तुम्ह ।।४९१७।। तो वज्जकुंडलेणं भणियं जिणमित्त तुज्झ वि न तुच्छा। अवहारणम्मि सत्ती जेण तए एत्तियं कहियं ।।४९१८।। इय भणिऊणं दिन्नाइं तस्स वत्थाई कणयसंकलिया । हत्थकडयाइं चारुयबीडं कुमरेण तुट्टेण ।।४९१९।। अह जंपियं सुहासयपुरिसेणं कुमररंजिएण तए। दिन्नं एयस्स इमं अहं तु किं देमि तुट्ठो वि ।।४९२० ।। जस्स मह नत्थि किं चि वि भणियं तो वज्जकुंडलेणेवं । मज्झ वि पासाउ तए बहु चिट्ठइ दिन्नमेयस्स ।। ४९२१।। सो जंपइ कह एवं बेइ कुमारो न जो तुम देसि । कस्सइ पसंसवयणं पसंसिओ तेण एस तए ।।४९२२।। तेण भणियं पसंसा करेइ कि दाणवज्जिया संती । कुमरेण तओ भणियं तं जायइ नेय दाणेण ।।४९२३।। जं होइ पसंसाए सो भणइ कुमार जाणिओ तसि । जेण पसंसं पुरओ करेसि निदेमि दाणं तु ।। ४९२४।। कुमरेण तओ भणियं कहेह किं कारणं तए नायं । सो भणइ कारणमिणं न किपि इच्छसि तुम मज्झ ।। दाउं कवड्डियं पि हु निग्गमिउं केवलं पसंसाए । वंछसि तो तीए न किंपि मे विज्जए कज्ज ।।४९२६।। गालीसयं पि दिज्जसु अम्ह तुमं बहुयदविणदाणजुयं । बहुयाहिं वि गालीहिं देहाउ न फिट्टए खंडं ।।४९२७।। दव्वेण पुणो गेहे अल्लानिल्लाय होइ सारवणा । कीरंति विलासा बहुविहाय हियइच्छिया तेण ।। ४९२८ ।। इच्चाइ तेण सद्धि केली किल केलिएण कुणमाणो । सुवियड्ढवयणगोट्टि जा चिट्ठइ चक्किणो तणओ ।। ४९२९।।
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