Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिमुनिसुव्वयजिणिदरियं
१०३ जे अम्ह पेसिय नरा पच्छन्ना पउमखेडनयराओ। इह एंति ते कहंति य जइ कइ वि दिणे निवो जियइ ।।३२९९।। तस्स विरूवं मा होउ किं पि अम्हाण जीविएणा वि । सो सिंधुवीरनिवई जीवउकालं अइपभूयं ।।३३००।। किंतु जइ दिव्ववसओ जायइ सग्गम्मि तस्स पत्थाणं । रज्जम्मि सिंधुसेणो होइ तओ तम्मि समर्याम्म।।३३०१।। अम्हुवरि गुरुपसायं काऊणं वज्जनाहिनिवनाहं । विनविउं अम्हं खग्गवत्तलादावियवत्ति ।।३३०२।। देसस्सुवरि सुसेणस्स काउममेयं पि जुज्जइ न अम्ह । जम्हा तुम्ह पसाएण होइ अन्नह वि निव्वा हो ।।३३०३।। सो एक्क जणयजाओ लहुभाया होइ वीरसेणस्स । तो नियपुत्तो व्व इमो परिहवणिज्जो न एयस्स ।।३३०४।। अन्नो वि को वि जइ तस्स सिधुसेणस्स परिहवं काउं। इच्छइ सो वि इमणं निवारियन्वो समत्थेण ॥३३०५।। किंतु पियमित्तनामो पियमित्तं वीरसेणकुमरस्स । सुयणो परोवयारी बहुसयणाईसरो सेट्ठी ॥३३०६।। निक्कारणं पि सो देहविहवधम्माण पावए पीडं । निच्चं पि सिंधुसेणाउ वीरसेणप्पओसेण ।।३३०७।। एत्तियमित्तं पि दुहं वि सहतो तत्थ चिट्ठए एसो । जिणहरभंगस्स निवारणथमत्थपयाणेण ।।३३०८।। जो को वि सिंधुसणस्स पासवत्ती निसेवओ लोओ । तं पियमित्तो उवयरइ सव्वया अत्थदाणण ॥३३०९।। पियमित्तस्सेव न केवलस्स कज्जेण कीरए एवं । तस्स वि य सिंधुसेणस्स संतियं कारणमिहत्थि ।।३३१०।। जं सो निद्दोसविसिट्ठलोयपीडं च धम्मधंसं च । कुव्वंतो रक्खिज्जइ अन्नह बुड्डुइ महापावे ॥३३११।। एएसि दोन्हं चिय कज्जं एयं न केवलं चेव । निवलोयस्स हियमिणं सव्वस्स सुसेणदेसस्स ।।३३१२।। जम्हा नरिंदलोओ आसि समग्गोवि वीरसेणस्स । अइसय भत्तो तम्मि वि करिस्सए सो बहुपओसं ।।३३१३।। कोहेण य लोहेण य अविवेएण य समग्गदेसस्स । उप्पाइस्सइ जह तह उवद्दवं नीयजणसंगी ।।३३१४।। एएहि कारणेहि इमम्मि अह्र कुमार तुह पाया । अम्हेहि विन्नविज्जति संपयं अइपयत्तेण ।।३३१५।। अह वज्जकुंडलो सो माहवरायस्स वयणविन्नासं । सोऊण विम्हियमणो पडिवज्जइ सव्वमेवेयं ॥३३१६।। दावेऊणं तेसिं तंबोलं दो वि ते विसज्जेइ । सिरिवज्जकुंडलो अह सकिच्चकरणुज्जओ होइ ॥३३१७।। सिलियावसरे गतुं रायउले चक्कवट्टिणो पुरओ। साहेइ वीरसेणं समागयं अप्पणो पासे ॥३३१८॥ तस्स सरूवं पि समग्गमेव परिकहइ चक्कवट्टिस्स । सेसं मोत्तूणं खग्गवत्तलापत्थणं एक्कं ।।३३१९।। सोऊण चक्कवट्टी पउमसिरी सिंधुवीरचरियाई । चितइ नारीसु नराण पम्ममइदारुणविवागं ॥३३२०।। अह वज्जनाहिणा चक्कवट्टिणा वज्जकुंडलो भणिओ । जह तुमए दट्टन्वो सगोरवं वीरसेणो सो ।।३३२१।। तो वज्जकुंडलेणं मत्थयविणिहित्तहत्थजुयलेण । पडिवणं तं वयणं निय पिउणो चक्कवट्टिस्स ।।३३२२।। अह चक्कवट्टिणा सो विसज्जिओ वज्जकुंडलो कुमरो। नियमंदिरम्मि गंतुं सकिच्च साहणपरोहोइ ।।३३२३॥ अह तस्स वीरसेणस्स वज्जकुंडलकुमारपयसेवं । कुणमाणस्स गयाइं अन्नाइंवि कइवय दिणाई ।।३३२४।। अन्नम्मि दिणे पुरिसो समागओ पउमखेडनयराओ । कहियं तेण सरूवं एगते वीरसेणस्स ।।३३२५।। जह सिंधुवीररन्ना नाऊणं नियसरीरमइविहुरं । रज्जम्मि सिंधुसेणो निवेसिओ सव्व पच्चक्खं ।।३३२६।। सिक्खविओ जह सव्वं परिपालेज्जा नएण नियदेसं । तो तद्दियह निसाए दिवं गओ सिंधुवीरनिवो ॥३३२७।। बारसमं अज्जदिणं रज्जनिविट्ठस्स सिंधुसेणस्स । माहवरायस्स तओ तं कहियं वीरसेण ण ।।३३२८।। तो दो वि उढिऊण आइच्चे अणुइए वि गंतूण । पासम्मि वज्जकुंडलकुमरस्स कहंति तं सव्वं ॥३३२९।। तो जाव वज्जकुंडलकुमरो संवहइ चक्कट्टिस्स । पासम्मि गंतु कामो ताव खणद्धेण आगंतुं ॥३३३०।। कन्नम्मि कि पि कहियं पुरिसेणक्केण वीरसेणस्स। तेणा वि वज्जकुंडलकुमरस्स निवेइयं कन्ने ।।३३३१।।
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