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२१. १.३]
हिन्दी अनुवाद हुई कुल-वधू कण्ठमें हार बांधती है। जहां प्रवर ऋद्धि शोभित होती है, जहाँ प्रत्येक आँगनमें बावड़ियाँ हैं, प्रत्येक बावड़ी में निकलते हुए परागोंकी रजसे शोभित कमल हैं। जहां प्रत्येक कमलपर हंस स्थित है, और प्रत्येक हंसका जहाँ कलरव शोमित है, जहां प्रत्येक कलरव में मनुष्यके मानको आहत करने वाला कामबाण कामदेवने समर्पित कर दिया है। जहां उपवनसे आकर गृहोंके शिखरोंपर पक्षो बैठते हैं, और फिर वापस वनमें चले जाते हैं। जहां अश्व-मुखोंके फेनों, गजमदों, और मनुष्योंके मुखोंसे च्युत ताम्बूलोंसे राजमार्गनें कीचड़ उत्पन्न हो गयी है। जिसमें चलते हुए यान, जम्पान और दुर्ग हैं। जहां मंगलसे प्रशस्त नित्य उत्सव होते हैं, जहां असि, मषी, कृषि और विद्यासे अर्थ कमाया जाता है। जहां लोग जिनधर्मसे आनन्वित होकर भोग भोगते हुए बिना किसी उपद्रवके निवास करते हैं ।
पत्ता-वहाँ अतिबल नामका प्रभु है, यद्यपि वह दोषाकर [ चन्द्रमा । दोषोंका आकर ] नहीं है, फिर भी वह कुवलय (पृथ्वीमण्डल ) को सन्तोष देनेवाला है, सौभ्य होकर भी सूर्यकी तरह प्रचण्ड है ॥७॥
जो कुलरूपी नभमें सवियार ( सविकार और सविता, सूर्य ) होकर भी निर्विकार पा, शुभशील होकर भी घरतीके भारको धारण करनेवाला था। इस लोकमें रहते हुए भी परलोकका भक था, गोपाल होकर भी ( गायों, धरतीका पालक ) राज्यवृत्तिको जाननेवाला था। बगके द्वारा गृहोत-गुण होनेपर भी जो अक्षयगुणसमूहवाला था। जो निर्वाह (बिना बाह, बिना वाषा) होकर मी गजकी सूड़के समान बाहुवाला था। जो बलवान होकर भी सैकड़ों अबलोंके द्वारा गम्य था। राहु न होते हुए भी ( अविडप्प ) जो सूर्यके तेजका उल्लंघन करता था, ( फिर भी विटात्मा नहीं था), ईश नहीं होते हुए भी उसका शरीर लक्षणोंसे लक्षित था । अपने स्वभावसे धीर होते हुए मी वह पापोंसे भीरु था। दूर होकर भी वह निकट था। शत्रुका नाश करनेवाला और रतिवन्त होकर भी परवधुओंके लिए ब्रह्मचारो था, श्रुत ( काम और शास्त्र ) में पूर्णमन होते हुए भी जो दृढचित्तवृत्तिवाला था, जो बहुपालितो ( वेश्याको ग्रहण करनेवाला होकर भी) दूसरे पक्षमें ( वधूपालक होकर ) दिशाओंमें कीर्ति फैलानेवाला था। स्वच्छ होकर भी वह स्वमन्त्राचारसे रक्षित था। गुरु (महान् ) होकर भी गुरुओंके प्रति छोटा और विनयशील था। संग्राममें अजेय होते हुए भी वह संगर ( रोग सहित ) होकर भी युद्ध में जोतनेवाला था। लक्ष्मीका निवास होते हुए भी वह तीबदण्डको जानता था। सुषुप्त ( अत्यन्त सोता हुआ, अत्यन्त नीतिबाला ) होकर भी चरोंके नेत्रोंसे देखता था। एक स्थानपर स्थित होकर भी वह उनके नेत्रोंसे घूमता था।
पत्ता-जो पृथ्वोरूपी लक्ष्मीका पर, पुरुषश्रेष्ठ, महिमावान और विश्वमें विख्यात था। जो अभिमानवाला, सुजन और शत्रुके लिए मानवाला था ॥८॥
___ उसकी मनोहरा नामकी कमलनयनी गृहकमलकी लक्ष्मी महादेवी थी, जो मानो प्रेमसलिलको कल्लोलमाला, मानो कामदेवकी परमलीला, मानो कामनाएं पूरी करनेवाली, चिन्तामणि, मानो तीनों लोकोंको रमणियोंको सौभाग्यसीमा, मानो रूप रत्नोंके समूहको खान, मानो हृदयका
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