________________
PA
सन्धि २५
प्रतिदिन वह प्रियभावको उत्पन्न करनेवाले रमणी रमण में दर्शन, सम्भाषण, दान संग और विश्वास तथा विशेष विलासके साथ कीड़ा करता है।
१
खिले हुए कमलोंके समान अपने मुखोंसे हँसते हुए, अरहन्त भगवान्का कल्याणस्नान और पूजा करते हुए, मृदु सुन्दर और मार्मिक बोलते हुए, विशाल उरोजोंको अपने हाथोंसे सहलाते हुए, आलिंगनके लिए हाथ फैलाते हुए, मुल और कण्ठोंके मूल भागमें चुम्बन करते हुए रतिजलसे स्वजन समूहको हटाते हुए, केश पकड़ते हुए, अधरोंका मधुरासव पीते हुए, कृत्रिम क्रोधकी सम्भावना करते हुए, लीला कटाक्ष चलाते हुए, इस प्रकार वञ्चजंध और श्रीमती वर-वधूको बहुत से दिन कीड़ा करते हुए बीत गये । वह श्रीमती रूप और सोभाग्य में अद्वितीय पो चन्द्रमाको कान्तिके समान, वस्त्रबाहूकी कन्या । श्रीमतीके वर वज्रजधकी छोटी बहून मृगाक्षिणी, मानो खिले हुए कमलोंके समान हाथवाली स्वयं लक्ष्मी हो। अनुन्धरा नामकी सुखकी कारण । उसका ( वादन्तका ) अपना पुत्र था जो मानो कामदेव था, लक्ष्मीमती देवीके गर्भसे पैदा हुआ। राजाने अमिततेजका उससे विवाह कर दिया ।
पत्ता- -गृहभारको धारण करनेवाली वसुन्धरा ( वञ्चजंघको मां ) की कन्या अनुन्धरा उसके हाथ लगी हुई ऐसी मालूम देती है मानो कुलपुत्र के साथ लज्जा (हू) कृष्णके साथ श्री और ऋषिके साथ धृति लगी हुई हो ||१||
दूसरे दिन उसने प्रस्थानका नगाड़ा बजवाया । शुक्र दसों दिशाओंमें कांप उठे । राजाने हाथोके समान दोघं बाहुवाले वज्रबाहुको अपने नगरके लिए भेज दिया। अपनी बहू, पुत्र एवं चन्द्रमुखी अपनी पत्नी के साथ, इष्ट और विशिष्ट बन्धुओंसे पूछकर चन्द्रार्क चिह्नवाला वह सृजन चला। उत्पलखेड़का वह राजा, अपनी सेना के साथ कितना मार्ग चलनेके लिए बाहर