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२९. १०.१२] हिन्दी अनुवाद
२४१ पत्ता-श्रीसे सेवित सुन्दर तीरपर मणिनिर्मित घर बनाया गया। देवीने सिंहासनपर स्थापित कर सुलोचनाको स्नान कराया ||८||
देवताओंके योग्य उसे वस्त्र दिये गये । और भी दूसरे-दूसरे आभूषण दिये गये। खिली हुई मन्दारमाला दी । अपने नरवर ( जय ) के साथ वह बाला विस्मयमें पड़ गयी। वह बोली"तुम कौन हो? और गजको किसने पकड़ा था? नदी कैसे पार हुई ? तारनेवाला कौन था ? सज्जनोंसे वन्दनीय हे सुरसुन्दरी, तुम बताओ बताओ?" तब वह भी बताने लगती है-"जिसमें शवर घूमते हैं, ऐसे विन्ध्याचलके निकट विन्ध्यपुरी नगरी है उसका राजा विन्ध्यकेतु था, जो अपनी शक्किसे हाथीको वशमें करनेवाला था। उसको सुन्दर महादेवी प्रियंगुश्री थी। मैं उसकी विन्ध्यश्री नामकी पुत्री थी। पिताने तुम्हारा प्रभाव जानकर और समस्त कला-कलाप सीखने के लिए हे सखी, मुझे तुम्हें सौंप दिया । क्या तुम याद नहीं कर रहो हो कि जब हम क्रीड़ा करने के लिए गये हए थे, विशाल वसन्ततिलक नन्दनवनके एक ल
ये हा थे. विशाल वसन्ततिलकनन्दनवन एक लताघरमें मैं सौपके द्वारा डंस ली गयी थी। तब तुमने 'असि आ उसा' आदि व्यंजनोंसे विशिष्ट पंच परमेष्ठीका पंचणमोकार मन्त्र मुझसे कहा था।
पत्ता-उन अक्षरोंको सुनकर और पापको नष्ट कर मैंने यह विभूति प्राप्त की । देवताओंक घर गंगाकूटमें गंगादेवो हुई ||२||
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पूर्व अपने सरस, कुत्सित विषधररूपी पतिके साथ क्रीड़ा करती हुई जिस नागिनको, तुम्हारे पतिने सरलपत्तोंसे कोमल, हाथके लीलारक्त कमलसे आहत किया था, और जो दुसरे मनुष्योंके द्वारा दण्डों और पत्थरोंसे कुचली जाकर मृत्युको प्राप्त हुई थी, हे प्रिय सखो सुनो, वह कालोके नामसे यहाँ जलदेवता हुई। पवनके आन्दोलनसे हिल रहे हैं विह्न जिसके ऐसे तथा बेरका अनुबन्ध करनेवाले जयकुमारको देखकर, क्रूर मगरी बनकर, कुद्ध उसने गजको खींचा। आसन काँपनेसे मैंने जान लिया कि जो मृगनयनी अकम्पन राजासे उत्पन्न हुई है वह दुष्टा कालोके द्वारा क्यों मारी जाये ? पापवृत्तिके द्वारा मुनिमतिका स्पर्श क्यों किया जाये ? यह विचार कर जब मैं यहां अवतरित हुई तबतक वह दुश्मन भागकर कहीं भी चली गयी। मैंने शक्तिसे गजका उद्धार किया, और तुम्हें अपने पुण्यके फलसे यह सुख प्राप्त हुआ।
घत्ता-मल ( पाप ) दूर होता है, बुद्धि प्रवर्तित होती है, धन-धाराओंसे दिशा दुहो जाती है, शत्रु नाशको प्राप्त होता है, निधि घरमें प्रवेश करती है। धर्मसे क्या नहीं प्राप्त किया जा सकता? ||१०||