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३६.७.११]
हिन्दी अनुभाव
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पहने मशनिवेग मुझसे ईष्या रखता था। मायावी अश्वके द्वारा मेरा अपहरण किया गया। मुझे विजयाध पर्वतपर छोड़ दिया गया। मैं उस गम्भीर जंगल में घूमा। फिर मैंने अपनी गतिसे आकाशतल और मेघोंका अतिक्रमण करनेवाले विद्यापरोंके छल-कपट देखे। मैंने ईजिनक कितने ही साहसी कार्य किये। उन्हें देखकर, जो अपने चंचल हाथोंमें चंचल हल और मूसल घुमा रहे हैं, ऐसे वे गर्थीले दुधजन अप्रसन्न हो उठे। जलाने में प्रचण्ड प्रलयकालके सूर्यफे समान, शत्रु विद्युमाली और अश्ववेग विद्याधर, दुःशासन, दुर्मुख, कालमुख, हरिवाहन और धूमवेग प्रमुख, दुष्टोंके लिए भी दुष्ट ये मेरे दुश्मन है ( हे मृगनयनी )। तब प्रिया अपने प्रियसे कहती है-शत्रुके बल और मदका दमन किया जाता है क्या घोसे दावानलको ज्याला शान्त होती है। जबतक तलवार और धनुषसे न लड़ा जाये, तबतक दुष्ट हृदय क्षमासे शान्त नहीं होता।
धत्ता-इस संसारमें जीवित रहते हुए जिस महापुरुषने दीनका उद्धार नहीं किया, जिससे सज्जन आनन्दमें नहीं हुए और दुर्जन विनायको प्राप्त नहीं होते, उससे क्या किया जाये ( वह किसी कामका नहीं है )
महादेवीने कार्य निश्चित किया। राजाने भी इस प्रकार उसको इच्छा को । भोगावतीको कुलश्रेष्ठ विशाल बलवाले हरिकेतु नामक भाईका अभिषेक कर पट्ट बांध दिया। वह विद्याधर राजा सेनापति होकर चला गया । वह शत्रुओंको जीतकर और बांधकर ले आया मानो गरुड़ सोरोंको पकड़कर लाया हो। अश्वपर आरूढ़, हाथ में दण्ड लिये हुए और प्रणाम करते हुए उन मनुष्योंको राजाने देखा। जिनके नेत्र आँसुओंकी प्रचुरताके कारण आई हैं ऐसी विलाप करतो हुई विद्याधर पुत्रियोंने अपने स्वामीसे दोन शब्द कहे, और इस प्रकार बहनोंने अपने बन्धु समूहको मुक्त करा दिया। वे सबके सब बढ़ रही कुपासे युक्त राजाके चरणाग्रमें गिर पड़े। राजाने उनपर करुणा कर और उनका उद्धार कर अपने-अपने दिशों में भेज दिया।
घत्ता--महीतलका पालन किया जाये, याचकको दान दिया जाये, जिनेन्द्रके चरणोंमें प्रणाम किया जाये, पैरोंमें पड़े हुए व्यक्तिको न मारा जाये, और अच्छे मार्गपर चला जाये, राजाओंका यही चरित्र है 1॥७॥
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