Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 458
________________ ४५४ महापुराण [XXIII. XXII. तब श्रीमतीको धाय ने ललितांगका चित्रपट ले लिया और वह जिनमन्दिर गयी। यहां उसने लोगों से कहा कि जो इस चित्रपटपर अंकित घटनाओंको सही-सही पढ़ देगा वह श्रीमतीसे विवाह करेगा। विभिन्न देशों के राजकुमारोंको भीड़ वहां इकट्ठी हुई, उन्होंने अपना-अपना भाग्य आजमाया, पर व्यर्थ । इस बोर श्रीमतीके पिता विजययात्रास लौट आये। उसने से पूर्वजन्मको कहानी बतायी । वनदन्तने कहा-मेरे पांचवें पूर्वजन्ममें मैं अर्ध-चक्रवर्तीका चन्द्रकीति नामका पुत्र था। जयकीति मेरा एक मिष था । लम्बे समय तक हमने राज्यका उपभोग किया, उसके बाद तपस्या की। मुत्युके बाद अगले भवमें स्वर्गमें देवेन्द्र हुए। उसके बाद हम दोनों बलदेव और वासुदेव हुए; क्रमशः श्रीवर्मन्, विभीषण, श्रीपर और मनोहरा हमारे माता-पिता थे 1 जद हम युवक हुए हमारे पिताने हमें राज्य सौंप दिया। उन्होंने तपकर केवकज्ञान प्राप्त किया। मां घरपर रहीं। परन्तु वे पवित्र धार्मिक कार्य करती रहीं। वह मरकर ललितांग देव हुई। कुछ समय के भीतर, हमारे छोटे भाई, "विभीषण' की मृत्यु हो गयी। मैं उसके शवको कन्धेपर लादकर एक स्थानसे दूसरे स्थानपर भटकता रहा । ललितांग देव (हमारी पूर्वमाता ) ने पइ देखा और मुझे समझाने के लिए वह सामने खड़ा होकर रेतमें-से तेल निकालने लगा। मैंने पूछा-तुम क्या कर रहे हो? और उससे उसका उद्देश्य जानकर मैंने कहा, "तुम रेतसे तेल नहीं निकाल सकते ?" देवने पूछा-"तुम शवको लेकर क्यों घूम रहे हो? क्योंकि यह मुर्दा जीवित नहीं हो सकता ?" तब मैंने अनुभव किया कि मेरा भाई मर गया है। मैंने उसका दाह-संस्कार किया 1 मैंने राज-पाट पुत्रको देकर संन्यास ग्रहण कर लिया। और मरकर अच्युत स्वर्गमें उत्पन्न हमा। दबवन्त फिर ललितांगके पूर्वजन्म बताता है, अन्त में वह उत्पलखेडमें बनजंघ नामसे जन्म लेता है। XXIV इस बीप श्रीमतीकी बुद्धिमती पाय चित्रपट लेकर बाहर गयी और कई देशोंका परिभ्रमण करने के बाद उत्पलखेड आयी। वहां उसने मन्दिरमें चित्रपट रखा। बच्चधमे उसे देखा और यह बेहोश हो गया। अब वह होशमें आया तो उससे पूछा गया कि क्या मामला है? उसने अपने मित्रोंसे कहा कि चित्रपट में उसके पिछले जम्मकी घटनाओं का अंकन है जिसमें स्वयंप्रभासे उसके प्रेमका भी चित्रण है। वह प्रेम-वेदनाके दुःखको सहने में असमर्थ है। उसने घायसे पूछा कि उसकी पूर्वजन्मकी प्रेयसी कहाँ उत्पम्न हुई है। वनजंय के पिता वनभानुको यह समाचार दिया गया। उसने आश्वासन दिया कि वह उसके लिए उक्त कन्याका प्रबन्ध करेगा। वह पुण्डरीकिणी नगरी गया। ववदन्तने उसका स्वागत किया और बानका कारण पूछा । चित्रपट की घटमा सुनने के बाद उसने अपनो कन्या श्रीमती वन्यजंघके लिए दे दी। इस प्रकार दोनों प्रेमी-प्रेमिकाओंका संगम हो गया। xxv. विवाह के बाद वनजंघ और श्रीमती उत्पलखेड लोट आये । उनके 51 युगल बच्चे उत्पन्न हुए। एक बार शरद् ऋतुमे वज्रभानुने एक बादलको एक क्षण में लुप्त होते देखा 1 उसने अनुभव किया कि संसार में प्रत्येक वस्तु क्षणिक है। उसने दीक्षा लेनेका निश्चय किया । वदन्तने भी एक कमल देखा जिसमें एक भ्रमरी मरी हुई थी। वह कमलकी शौकीन यो, वह कमलको नहीं छोड़ सकी हालांकि सन्ध्या समय वह संकुचित हो रहा था। यह देखकर वह उस आनन्दके प्रति उदास हो गया कि जो जीवनमै मृत्यु का कारण होता है । उसका पुत्र अमिततेजने भी घरतीपर शासन नहीं करना चाहा और उसने अपने पिताका अनुकरण किया । तब वदन्तका पोता पुण्डरीक गद्दीपर बैठा । फि वह छोटा । इसलिए उसकी

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