Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 459
________________ XXVIII ] अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद ४५५ मने चाहा कि वज्रजंघ-जैसे मित्र उसकी सहायता करें और इसलिए उसने पत्र भेजा। वह उसके स्थानपर छाया । जब वह जंगलमें पड़ाव डाले हुए था उसे युवक साधुओंका जोड़ा मिला जो उसके ही लड़के थे? उसने उनको अपने पूर्व जन्मोंको बतानेके लिए कहा, (जैसे जयवर्मन, महाबल, ललितांग और वज्रजं । तब उन्होंने श्रीमतोके पार पूर्वभव बताये - धनश्री, निर्नामिका, स्वयंप्रभा और श्रीमती । उन्होंने उसके पूर्वभव मन्त्री, पुरोहित, मित्रों और नृत्योंके भी पूर्वभवों का वर्णन किया। उन्होंने यह भी कहा कि आठवें भवमें वह तीर्थंकर होगा । श्रीमती श्रेयांस राजकुमार होगी। यह सुनने के बाद वह पुण्डरी किणी नगर गया। वहाँ उसने अपनी बहुत अनुन्धरीको और युवराज पुण्डरीकको देखा । राज्यकी उचित प्रशासनकी व्यवस्थाके बाद वह घर लौट आया । XXVI Aaja और श्रीमती उत्तर कुरुमें अनिन्द और अज्जया नामसे युगल सन्सान के रूपमें उत्पन्न हुए। वहां उन्हें अपने पूर्वभवका स्मरण हो आया, जबकि चारणमुनियोंका जोड़ा वहाँ आया था। उनमें से एक, और कोई नहीं, महाबलका मन्त्री स्वयंबुद्ध था। इन चारणमुनियोंने भी महाबलके तीन मन्त्रियों की परवर्ती भवपरम्परा बतायो । श्रीधर देव अगले भवमे राजा शुभदर्शी और नन्दासे सुविधि नामका राजकुमार, हुआ। उसने मनोरमासे विवाह किया जो राजा अभयघोषकी कन्या थी। देव स्वयंप्रभा सुविधिका केशव नामक पुत्र हुआ । सुविधि फिर अच्युत स्वर्ग में इन्द्र उत्पन्न हुआ, और केशव प्रतीन्द्र हुआ उसी स्वर्ग में । 2. विद्धासु ( प्राकृत विउ ) का अर्थ जानना है, अतः वेदका अर्थ ज्ञान है; असः वेदोंको जीवोंके प्रति दयाकी शिक्षा देनी चाहिए। और इसलिए जो ग्रन्थ जीवहिसाका उपदेश देते हैं, उन्हें वेदके बजाय तलवार कहना चाहिए 1 XXVII. अच्युतेन्द्र और प्रतीन्द्र दोनों ही क्रमशः राजकुमार बञ्चनाभि और वणिक् धनदेव के नामसे उत्पन्न हुए। वज्रनाभि अपने पुत्र यजदन्तको राज्य देकर संन्यासी हो गया, धनदेव उसका शिष्य हो गया। कठोर तपश्चरण-द्वारा वचनामिने तीर्थंकर नाम और गोत्रका बन्ध कर लिया, और उचित समयमे सर्वार्थसिद्धि में अहमेन्ट उत्पन्न हुआ । उसके बावके जन्ममें वचनाभि ऋषभ तीर्थकर हुए और धनदेव श्रेयांसके रूपमें इसी प्रकार ऋषभके बहुत से अनुयायियों (जिनमें उनके पुत्र भी सम्मिलित थे ) के पूर्वजन्मोंका वर्णन किया । सब भरतने पूछा कि अभी भविष्यमें कितने तीर्थंकर, बलभद्र, वासुदेव, प्रतिवासुदेव तथा चक्रवर्ती होंगे। भने उनकी संख्या बतायो । भरतने की विनय को । 12. 5-8 यह अवतरण बताता है कि भरीबि ( भरतका पुत्र ) चौबीस तीर्थंकर होगा । यह सुनकर वह आमन्दके मारे नाच उठा। उसके आनन्द और घमण्डका प्रदर्शन हो लम्बे समय तक संसारमें घूमनेका कारण था। उन्हें कपिलका गुरु होना पड़ा कि जिसने सांख्य शास्त्र की रचना की । XXVIII. भरत तथ अयोध्या लौट आये | और स्वप्नोंके लिए पौरोहित्य अनुष्ठान किया । उसने पवित्र जीवन बिताया और जरूरतमन्द तथा गरीब लोगों को दान दिया । उसमे दवार और अ राजाके रूपमें शासन किया। महावीर के शिष्य गौतमने आगे भी वर्णन जारी रखते हुए श्रेणिकसे इस प्रकार कहा, राजा सोमप्रभके चौदह पुत्र थे । उनमें सबसे बड़े का नाम जय था । उसे मुकुट बांधकर, राजगद्दीपर बैठा दिया गया। एक दिन राजा जय जय नन्दन वनमें गया तो उसने एक मुनिको उपदेश देते और नाग

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