________________ XXXVII अगरेजो टिप्पणिय समयमें उसके यहाँ आयुधशाला चक्र भी प्रकट हुआ / उसे जो कुछ सम्पत्ति मिली, वह असवइकी देखरेख में थी / परन्तु सुखावतीने उसे कंजूस समझा / परन्तु मन्त्रीने कहा कि जसकइ, जिनकी मां होनेवाली है, उनका नाम गुणपाल है। समय आनेपर जसबहने गुणपालको जन्म दिया। समयको अवधिमें भोपालने सुखावतीके पुत्रको गद्दोपर बैठाया, और अपने पुत्र जिन गणरालके आश्रयमें तप किया। मुलोचनाने यह कथा जयको सुनायो। उसने तब पूर्वभवोंके जीवनका अच्छो तरह अनुभव किया, और उसे समस्त विद्या प्राप्त हो गयीं कि जो उसे तन्ध प्राप्त थीं। प्रियं गश्रोने यह सोचा कि सुलोचनाने जो कहानी कहो है वह सच नहीं है / उसे विश्वास दिलाने के लिए, जय राजा और सुलोचना ऋषभ जिनकी वन्दना-भक्ति करने के लिए गये। उनके रास्ते में इन्उने जयको प्रभित धरमेका प्रलोभन दिया, परन्तु वह उसमें खरा चतरा / इन्द्र ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया। जय कैलास पर्वतपर आया। उसने चौबीसों जिनोंकी पन्दना को जिनके मन्दिरोंका निर्माण भरतने कराया या / XXXVII राजा जयने सुलोचनाके साथ होनेवाले जिनौको प्रतिमाओंको नमस्कार किया, और तब ऋषभ जिनके समवशरणमें गया। ऋषभ देवों, साधु-साध्वियों, मनुष्यों और मनुष्यनियों के बीच में बैठे हुए थे। उसने वहाँ अपने पिता और चाचाको देखा कि जो साधु बनकर यहाँ बैठे हुए थे। सुलोचनाने अपने पिता अकम्पनके दर्शन किये, जो और उनके साथ दुसरे कई सम्बन्धो मुनि हो गये थे। जयने ऋषभकी प्रशंसामें एक गीत कहा जिसके बाद उसने भरतसे मुनि बनने के लिए अनुमति मांगी / भरतने पहले तो इसे स्वीकार नहीं किया, परन्तु इन्द्र के हस्तक्षेप करनेपर उसने अनुमति दे दी। मुलीचनाने भी साध्यो बननेकी अनुमति दे दो। ससे मुनिकी बीक्षा दी गयी / उसने पवित्र प्रन्धों का अध्ययन किया। उसके बाद सुलोचना भी साध्वी बन गयी। अब, ऋषभ जिनने भरतके लिए जैनधर्म के सभी सिद्धान्तोंको व्याख्या की। भरत घर लोट माया और उसने उसी रात एक सपना देखा जिसमें मेरु कम्पायमान हो रहा था। अगले दिन सबेरे उसने पुरोहितसे स्वप्नका आशय पूछ। पुरोहित ने कहा-ऋषभ मोक्ष प्राप्त करनेवाले हैं। भरत शीघ्र कैलास पर्वतपर गया / इन्द्र भी वहाँ निर्वाण कल्याणका उत्सत्र मनाने के लिए बाया / इन्द्र और दूसरे देवोंने अग्निवृक्षोंकी चिनगारिया ले ली। अग्निकुमार देवोंने सुलमाने के लिए आग जलायी। उनका शरीर जलकर राख हो गया / देवोंने उसकी बन्दना की। माघ माहके शुक्ल चतुर्दशीको उनका निर्वाण हो गया / भरत अयोध्या वापस आ गये। एक दिन अपने सिरके एक बालको सफेद देखकर भरतने अपने पुत्रको राज्यभार सौंप कर संसारका परित्याग कर दिया। उसे केवलज्ञान प्राप्त हया और उसने मोक्ष प्राप्त कर लिया।