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XXXII ] अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद
४५७ Xxx. सुलोचना पूर्वभवोंकी कहानी जारी रखती है खासकर उस भवको जब वह प्रभावतीके नामसे उत्पन्न हुई और जय हिरण्यवर्मा। वहां उन्होंने साधु-जीवनकी तपस्या की और संसार तथा स्वर्गमें कई जन्मोंको धारण किया। इन जन्मों में से वे एक जन्म माली और उसकी पत्नी बने । वे वहाँ जिनको फूल चढ़ाते थे। एक दिन दोनोंको सौपने काट खाया। वे मर गये। पर उनमें भोगकी अतृप्त कामना बनी रही। अगले जन्ममे देसकान्त और रतिवेगाके रूपमें उत्पन्न हए ।
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सुकान्स और रतिधेगा को अपने पूर्वभवका स्मरण हो आया । उस भव वे एक मुनिसे मिले थे कि जिन्होंने हाल ही में सांसारिक जीवनका परित्याग किया था और कहा था कि पवित्र नियमोंके विषय में वे अधिक नहीं जानते । फिर भी उन्होंने उन्हें जैनधर्मकी कुछ मुख्य बातें बतायी थीं। सुकान्तने तब मुनिसे पूछा, कि यौवनावस्थाम उन्होंने दीक्षा क्यों लो। इसपर मुनिने अपनी जीवनकथा उसे बतायी। प्रसंगवश उसमें सुकेतृ व्यापारी और उसके प्रतिद्वन्दी नागदत्तकी कहानी आती है। नागदत्तको सुदत्ता नामको पत्नी थी। एक बार सुकेतुकी पत्नी अपने पतिको भोजन में रही थी उसे एक भुनि मिले, उसने सम्हें भोजन दे दिया । उसने नागगृहके पास भोजन दिया जो उसके पति के शत्रुका घर था। इस दानके परिणामस्वरूप वहाँ पांच आश्चर्य हुए। विशेष रूपठे स्वर्ण और हीरोंको वर्षा हुई। नागदत ने कहा कि यह धन मेरा है क्योंकि यह नागगृहमें बरसा है । तब सुकेतुने नागदत्त से कहा कि धन वस्तुतः उसको पलीका है क्योंकि यह उसके दानका फल है । नागदप्त ने सारा धन इकट्ठा किया और वह राजाके पास ले गया। वह वहाँ नागदत्तके हाथ में राख हो गया, उसके अनुचर डर गये। नागदत्तने तब वह धन सुकेतुको दे दिया। दूसरे दिन नागदत्तको मन्दिर में एक और रत्न मिला। क्रोधर्मे उसने उसके टुकड़े करने चाहि, परन्तु रत्नने उल्टा उसपर नाघात कर दिया । नागदत्तने मन्दिरमें नागदेवताकी पूजा की, बोर उससे सेनाका वरदान मांगा जिससे वह सुकेतुको पराजित कर सके । भागने कहा कि सुकेतुको मारना असम्भव है। इसके फलस्वरूप सुकेतृमे संन्यास ग्रहण कर लिया। मृत्युके बाद वह देवता बना। उसकी पत्नी वमुन्धरा साध्वी बन गयो और मरकर लिंग परिवर्तनके साथ स्वर्गमें देव हई 1
XXXII. जयने सुलोचनासे उनके पूर्वभवोंकी घटनाओंको पूछा, खासकर उन घटनाओंको, कि जिनका कपन गुणपालने किया था। तब उसने श्रीपाल और उसके साहसिक कार्योका वर्णन किया। श्रीपाल और वसपाल राजा गुणपालके पुत्र थे, कुबेरश्री गुणपालकी रानी थी। गुणपालने सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास ले लिया । एक दिन कुबेरपीको यह खबर दी गयी कि गुणपाल नामक मुनि उद्यानमें ठहरे हुए है। रानी उनके दर्शन करने के लिए गयी। वटक्षके मीचे उद्यानमें एक यक्षका मन्दिर था, जहां लोग उत्सवके कार्यों में व्यस्त थे। वहीं दो स्त्रियों का जोड़ा, जिनमें एकको वेशभूषा मनुष्यको थो, नाच रहा था। राजा वसुपालने आदमी और औरत के तत्वको पसन्द नहीं किया जब कि उसके भाई श्रीपालने कहा कि वे दोनों स्त्रिया है। यह भविष्यवाणी की गयी थी कि जो दोनों में से पुरुषको बेशभूषावालो महिलाको पहचान लेगा, वह उसका निश्चित रूपसे पवि होगा। श्रीपालने जो बहुतसे साहसिक कार्य किये यह उसका प्रारम्भिक बिन्दु था। यह एक पोडेपर बैठा जो आकाशमें गायब हो गया। यह भविष्यवाणी की गयो कि श्रीपाल सात दिन में सुरक्षित लोट आएगा। वस्तुतः धीपाल अपवके रूपमें एक देवीके द्वारा ले जाया गया था। जब श्रीपालसे वेवीने संघर्ष शुरू किया तो उसकी सहायताके लिए जयपाल नामका एक विद्याधर वाया । उस देवसे
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