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४५२ महापुराण
[xx 17. स्वयंबुद्धने तब राजा महाबलको उसके पूर्वज अरविन्दकी कथा सुनायो । उसके हरिश्चन्द और कुरुविन्द नामके दो पुत्र थे। एक दिन अरविन्दके शरीरमैं भयानक बलन हुई। और उसने पाया कि यह किसी भी दवाईसे ठीक नहीं हो सकती; तो उसने अपने पुत्र कुबिन्दसे पशुओं के रक्तका तालाव बनाने के लिए कहा कि जिस में नहानेसे उसका रोग शान्त हो जायेगा। कुरुविन्दने अपने पिताको आज्ञाका पालन किया, परन्तु उसने कृत्रिम रक्त ( लाक्षारस ) के तालाबका निर्माण कराया। अरविन्दने जन द्रालाबमें प्रवेश किया और रक्तका स्वाद लिया तो उसने पाया कि उसके पुत्र ने उसे धोखा दिया । वह उसे मारने के लिए दौड़ा परम्तु रास्ते में गिर पड़ा और अपनी ही तलवारसे मारा गया ।।
महाबलका एक और पूर्वज था दण्डक नामका राजा । उसके पुत्र का नाम मणिमाली था। दण्डकन बहुत-सा धन इकट्ठा किया और मरकर अजगर हुआ। वह घनकी रखवाली करता था। एक दिन मणिमाली घर आया और उसने द्वार पर सांपको देखा । साँपको भी पूर्वभवका स्मरण हो बापा और मणिमालीको अपमा पुत्र समझते हुए उसने उसे नहीं काटा। यह देखकर मणिमालीको आश्चर्य इमा। वह मुनिके पास गया और उसने पूछा कि सौप कौन है? यह जानकर कि वह उसके पिता है, वह घर आया और सापको जैनधर्मका उपदेश दिया। उसने इसका अभ्यास किया और अगले जन्म में देवके रूपमें उत्पन्न मा। देव, मणिमालीके पास आया और उसे एक हार दिया कि जो महाबल पहनते थे।
17. 2-5 चार तत्त्व (परती, पवन, अग्नि और जल) का न कोई आदि है और न शन्त, इन्हें किसीने उत्पन्न नहीं किया | जब ये चार तत्त्व आपसमें मिलते हैं तब चेतनाका चिह्न प्रगट होता है । इन तत्त्वोंमें चेतना उसी प्रकार आती है जिस प्रकार गुड़, जल और मिट्टीसे मदशक्ति उत्पन्न होती है, इसलिए शरीर और बात्मामें कोई अन्तर नहीं है यह चार्वाक सम्प्रदायका सिद्धान्त है ।
18.98 पोरन्दरका सिद्धान्त अर्थात् इन्द्रका सिद्धान्त, जो बृहस्पतिके साध, चार्वाक सिद्धान्तके संस्थापक माने जाते हैं। 10-11 यदि ये तत्त्व विना जीव और आत्माके अपने आप चेवनाका निर्माण करते हैं और एक जारमें शरीरकी रचना कर लेते हैं। तब उस जारमै शरीर उत्पन्न होना चाहिये कि जिसमें उक्त चीजोंका मिश्रण है । दूसरे शब्दोंमें ओवित शरीर पूबमें उत्पन्न हो सकते है ।
19. वह जो ऋषभ मुनिक सिद्धान्तका भक्त है । अर्थात् जिन । 12 बिना निरन्तरता के।
21. टिट्टिभ पक्षी यह कहते हुए कि आकाश गिर पड़ेगा, डर जाता है और अपनी टाँगें उठाकर स्थित हो जाता है गिरते हुए आकाशको सहारा देने के लिए।
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स्वयंप्रबुद्ध ने आगे महाबलको बताया कि उसके पिता पितामह बड़े महापितामहन अपने पवित्र जीवनसे विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है । यह सुनकर वह भी मन्दराचलपर जिनको बन्दना करने के लिए गया। ठीक इसी अवसरपर, दो पारणमुनि माये । स्वयंबुद्धिने उन्हें प्रणाम किया । और उसने अपने स्वामी महाबल के विषय में पूछा। इसपर उन लोगोंने कहा, कि दसवें भवमें बह निश्चित रूपसे तीर्थकर होनेवाले हैं। लेकिन अपने अतीव कालमें वह राजा श्रीषेण और रानी सुन्दरीका जयवर्मा नामका पुत्र था। चूंकि राजाने अपने छोटे पुत्र श्रोवर्माको राज्य दे दिया, इसलिए जयवर्मान मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। इसो अवसरपर एक विद्याधर खूब ठाटबाटसे भाया । नब मुनि जयवर्मा उससे अत्यधिक प्रभावित हुआ, और उसने यह संकल्प किया कि तपस्याके फल स्वरूप वह भी उसी राजाकी तरह सम्पन्न हो । यही कारण है कि आगामी जन्मम वह महाबलके रूप में उत्पन्न हुआ। स्वयंबुद्ध तब महाबलके पास गया, और उसको दूसरे मन्त्रियोंसे सुरक्षा की कि जो उसे गलत रास्तेपर ले जा रहे थे। महाबलके पास केवल एक वर्ष की आयु वची यो ।